UP Fasal Bima Scam: अन्नदाता की जेब पर पड़ा डिजिटल डाका, बीमा घोटाले के साक्ष्यों को मिटाने की खौफनाक साजिश
UP Fasal Bima Scam: उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और मौसम आधारित बीमा योजना के नाम पर एक ऐसा खेल खेला गया है, जिसने व्यवस्था की जड़ों को हिलाकर रख दिया है। महोबा से लेकर मथुरा तक फैली इस (Agricultural Insurance Fraud) की जड़ें इतनी गहरी हैं कि अब जांच शुरू होते ही सबूतों को खुर्द-बुर्द करने का खेल शुरू हो गया है। महोबा जिले के कई गांवों में किसान वही हैं और जमीन का रकबा भी जस का तस है, लेकिन जांच की आंच पहुंचते ही सरकारी पोर्टल पर क्लेम की राशि जादुई तरीके से बदल गई है।
पोर्टल के रहस्यमयी आंकड़ों ने खोली भ्रष्टाचार की पोल
अगस्त महीने में जब पोर्टल पर डेटा देखा गया था, तब क्लेम भुगतान की राशि कुछ और थी, लेकिन दिसंबर आते-आते यह पूरी तरह बदल गई है। खरीफ सीजन 2024 के दौरान बांटे गए क्लेम में हुई इस (Digital Data Manipulation) की शिकायत अब स्थानीय प्रशासन तक पहुंच चुकी है। किसानों का आरोप है कि जब तक घोटाला दबा रहा तब तक राशियां बड़ी थीं, लेकिन जैसे ही जांच की तलवार लटकी, वैसे ही पोर्टल के साथ छेड़छाड़ कर साक्ष्यों को मिटाने की कोशिश की जा रही है।
महोबा के संतोषपुरा और लुहारी गांव का चौंकाने वाला सच
भ्रष्टाचार का सबसे नग्न रूप संतोषपुरा गांव में देखने को मिला, जहां अगस्त में 113 किसानों को 55 लाख का भुगतान दिखाया गया था, लेकिन 10 दिसंबर को पोर्टल पर वही किसान और वही रकबा होने के बावजूद (Insurance Claim Disbursement) की राशि घटकर महज नौ लाख रुपये रह गई। इसी तरह लुहारी गांव में भी 147 लाख रुपये का भुगतान अचानक 39 लाख रुपये में सिमट गया। यह बदलाव साफ इशारा कर रहा है कि कहीं न कहीं बड़े स्तर पर धांधली को छिपाने के लिए तकनीकी हेरफेर किया जा रहा है।
बंजर और सरकारी जमीन पर भी बांट दिया गया बीमा क्लेम
जांच में यह बेहद चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि बीमा कंपनियों और अधिकारियों की मिलीभगत से नाले, बंजर और सरकारी जमीनों पर भी क्लेम की बंदरबांट की गई है। झांसी, ललितपुर और फर्रूखाबाद (Government Land Misuse) जैसे जिलों में फर्जी लाभार्थियों की एक लंबी सूची तैयार की गई। महोबा और झांसी में इस मामले को लेकर एफआईआर भी दर्ज हो चुकी है, लेकिन अब किसान नेता गुलाब सिंह का आरोप है कि साक्ष्य मिटाने के लिए पोर्टल के रिकॉर्ड बदले जा रहे हैं, ताकि जांच अधिकारी कभी सच तक न पहुंच सकें।
बाहरी लोगों को मिला लाभ और गांव का किसान रह गया खाली
कुलपहाड़ तहसील के इंदौरा गांव की दास्तां तो और भी अजीब है, जहां एक करोड़ 10 लाख की बीमा राशि का खेल हुआ। ताज्जुब की बात यह है कि इस गांव के 33 बाहरी लोगों को (Fraudulent Beneficiary List) के तहत 83.49 लाख रुपये दे दिए गए, जबकि वे उस गांव के निवासी तक नहीं थे। उरई, हमीरपुर और अन्य तहसीलों के लोगों को इस सूची में शामिल करना यह साबित करता है कि स्थानीय किसानों की आंखों में धूल झोंककर सरकारी धन को लूटा गया है।
मथुरा में ऐप बंद होने से किसानों के बीच मची खलबली
मथुरा जिले में भी फसल बीमा में बड़ी गड़बड़ी की शिकायतें जिलाधिकारी तक पहुंची थीं, लेकिन कार्रवाई के बजाय अचानक ‘क्रॉप इंश्योरेंस ऐप’ को ही बंद कर दिया गया। किसानों में इस बात को लेकर भारी आक्रोश है कि ऐप बंद (Technical System Disruption) करके उनके पुराने डेटा को बदला जा रहा है। हालांकि, तकनीकी टीम इसे नेटवर्क की समस्या बता रही है, लेकिन किसान इसे अपनी शिकायतों को दबाने और डेटा में हेरफेर करने की एक सोची-समझी साजिश मान रहे हैं।
विभागीय सफाई और मंत्रालय के पाले में गेंद
कृषि विभाग के अधिकारियों और उप कृषि निदेशक का कहना है कि पोर्टल सीधे शासन से संचालित होता है और इसमें किसी प्रकार की छेड़छाड़ संभव नहीं है। निदेशक कृषि डॉ. पंकज त्रिपाठी ने कहा कि पोर्टल (Ministry of Agriculture Portal) से सीधे जुड़ा है, इसलिए डेटा बदलना मुश्किल है। फिर भी, यदि किसानों की ओर से बदलाव की कोई पुख्ता शिकायत मिलती है, तो उसे तकनीकी जांच के लिए दिल्ली स्थित कृषि मंत्रालय को भेजा जाएगा ताकि सच सामने आ सके।
क्या कभी अन्नदाता को मिलेगा उसका असली हक?
इस पूरे प्रकरण ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की पारदर्शिता पर एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। उत्तर प्रदेश के हजारों किसानों की उम्मीदें अब निष्पक्ष जांच पर टिकी हैं। अगर पोर्टल पर (Evidence Tampering Investigation) की पुष्टि हो जाती है, तो यह देश का सबसे बड़ा डिजिटल घोटाला साबित हो सकता है। फिलहाल, किसान धरने पर बैठे हैं और सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि उनके नाम पर लूटी गई रकम के असली गुनहगारों को जेल की सलाखों के पीछे भेजा जाए।