Bihar Fire Tragedy: मातम में बदली शहनाइयां, डोली उठने से पहले ही राख हुए बेटी के अरमान
Bihar Fire Tragedy: पश्चिमी चंपारण जिले के सरिसवा बाजार में मंगलवार की रात जो कुछ भी हुआ, उसने मानवीय संवेदनाओं को झकझोर कर रख दिया है। एक पिता, जिसने अपनी पूरी जिंदगी की कमाई अपनी लाडली बेटी की शादी के लिए सहेज कर रखी थी, उसकी आंखों के सामने ही सब कुछ राख हो गया। इसी महीने की 19 तारीख को जिस घर में शहनाइयां बजनी थीं और मेहमानों की चहल-पहल होनी थी, वहां आज सिर्फ (Devastating Fire Incident) के बाद पसरी राख और सिसकियां सुनाई दे रही हैं। असगर देवान के परिवार के लिए यह आग सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि उनके सपनों की सामूहिक कब्र बन गई है।

संदूकों में सहेजे गए गहने और कपड़ों का ढेर बना कोयला
शादी की तैयारियों के लिए घर के हर कोने में खुशियां बिखरी (Bihar Fire Tragedy) हुई थीं। बेटी के लिए खरीदे गए महंगे कपड़े, पारंपरिक बर्तन और बरसों की मेहनत से जुटाए गए सोने के गहने आग की भेंट चढ़ गए। जिन संदूकों को बड़े अरमानों से सजाकर रखा गया था, वे अब काले पड़े लोहे और राख के सिवा कुछ नहीं हैं। परिवार के सदस्यों का कहना है कि (Household Property Loss) इतना व्यापक है कि वे अब दोबारा शुरुआत करने की स्थिति में भी नहीं हैं। नकदी से लेकर राशन तक, सब कुछ चंद मिनटों में धुएं में तब्दील हो गया, जिससे अब शादी की तारीख नजदीक आने पर परिवार के सामने गहरा संकट खड़ा हो गया है।
राख के ढेर में अपने अरमान तलाशती बेबस दुल्हन
इस पूरी त्रासदी का सबसे हृदयविदारक मंजर वह था, जब होने वाली दुल्हन अपने जले हुए आशियाने के मलबे में बैठी नजर आई। वह उन अवशेषों को तलाश रही थी, जो कभी उसकी नई जिंदगी का हिस्सा बनने वाले थे। अपनी मां की गोद में सिर रखकर खामोशी से बहते उसके आंसू (Emotional Trauma Recovery) की जरूरत को बयां कर रहे थे। एक तरफ बेटी की शादी टूटने का डर था, तो दूसरी तरफ पिता की लाचारी। असगर देवान की आंखों में जो बेबसी थी, वह किसी भी पत्थर दिल इंसान को रुलाने के लिए काफी थी। उनके पास अब अपनी बेटी को विदा करने के लिए न तो घर बचा है और न ही संसाधन।
आठ भाइयों का संयुक्त परिवार और एक रात की तबाही
सरिसवा बाजार का यह घर आठ भाइयों के संयुक्त परिवार का निवास था, जहां महीनों से उत्सव का माहौल बना हुआ था। रिश्तेदारों को कार्ड भेजे जा चुके थे और घर के बच्चे शादी के गानों पर रिहर्सल कर रहे थे। लेकिन एक ही रात में कुदरत या बदकिस्मती का ऐसा प्रहार हुआ कि सब कुछ उजड़ गया। आग ने न केवल (Residential Building Damage) किया, बल्कि उस सामाजिक भरोसे और प्रतिष्ठा को भी चोट पहुंचाई है जो एक गरीब पिता बड़ी मुश्किल से बनाता है। संयुक्त परिवार की खुशियां अब सामूहिक विलाप में बदल चुकी हैं और पूरा गांव इस दुख की घड़ी में उनके साथ खड़ा है।
डोली उठने की तैयारी और सन्नाटे में डूबा सरिसवा बाजार
जिस आंगन में हल्दी और मेंहदी की रस्में होनी थीं, वहां अब दमकल की गाड़ियों के पहियों के निशान और बुझी हुई आग की गंध है। ग्रामीणों ने अपनी जान पर खेलकर आग बुझाने का प्रयास किया और दमकल विभाग ने भी कड़ी मशक्कत की, लेकिन जब तक (Fire Safety Measures) प्रभावी होते, तब तक सब कुछ खत्म हो चुका था। आज चंपारण का यह इलाका इस बेटी के दर्द से कराह रहा है। घर के बाहर टंगे हुए शामियाने के फटे हुए टुकड़े अब भी उस त्रासदी की गवाही दे रहे हैं, जिसने एक मध्यवर्गीय परिवार की कमर तोड़ कर रख दी है।
सरकारी इमदाद और प्रशासन से न्याय की उम्मीद
प्रशासनिक अधिकारियों ने मौके का मुआयना किया है और पीड़ित परिवार को हर संभव सरकारी सहायता दिलाने का वादा किया है। अंचल अधिकारी और पुलिस प्रशासन ने नुकसान का आकलन करना शुरू कर दिया है ताकि (Government Compensation Scheme) के तहत परिवार को तुरंत राहत पहुंचाई जा सके। हालांकि, सरिसवा बाजार के ग्रामीण मांग कर रहे हैं कि बेटी की शादी को देखते हुए विशेष सहायता प्रदान की जाए। प्रशासन ने भरोसा तो दिलाया है, लेकिन कागजी औपचारिकताओं और हकीकत की मदद के बीच का समय परिवार के लिए पहाड़ जैसा भारी बीत रहा है।
क्या फिर से लौट पाएगी असगर देवान की बेटी की मुस्कान?
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या समय पर मिलने वाली मदद उस अधूरी शादी को फिर से मुकम्मल कर पाएगी? क्या समाज के दानवीर और सरकारी तंत्र मिलकर इस (Social Welfare Initiative) के जरिए उस बेटी की डोली उसी तारीख को विदा कर पाएंगे? सरिसवा बाजार की यह घटना हमें याद दिलाती है कि एक पल की असावधानी या हादसा कैसे किसी के जीवन भर की पूंजी को छीन सकता है। आज पूरा चंपारण असगर देवान और उनकी बेटी के लिए दुआ कर रहा है कि कहीं से कोई चमत्कार हो और उस घर से शहनाई की गूंज फिर से सुनाई दे।



