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राजकुमारी के प्यार में पागल तांत्रिक ने बना दिया इस किले को भारत की सबसे भूतिया जगह

राजस्थान न्यूज डेस्क् !!! भानगढ़ किला! मैं आपको इसके बारे में एक कहानी सुनाता हूँ – एक परी-कथा जिसमें एक मोड़ है. यह एक खूबसूरत राजकुमारी की कहानी है. वह राजस्थान की एक पहाड़ी पर एक भव्य किले में रहती थी. पास में ही एक गरीब जादूगर को उससे प्यार हो गया.

फिर परी कथा में मोड़ आता है – राजकुमारी उससे प्यार नहीं करती… यह देखने के लिए पढ़ें कि संभवतः क्या हुआ था और आप अभी भी इस किले का दौरा कैसे कर सकते हैं… कुछ शर्तों के तहत… हिंदुस्तान गवर्नमेंट आगंतुकों को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले किले में प्रवेश करने से रोकती है. कारण? रात के समय किले में भूत घूमते हैं. और रात में किले का दौरा करने वाला कोई भी आदमी जीवित बाहर नहीं आया है!हाँ, यह जगह अभी भी उपस्थित है! यह उत्तर-पश्चिमी हिंदुस्तान में राजस्थान के अलवर जिले का एक गाँव भानगढ़ है. यह मशहूर सरिस्का टाइगर रिजर्व के ठीक बगल में है. इस जगह का क्षेत्रीय नाम भूतियागढ़ या भूतों की भूमि है. भानगढ़ में किले के आसपास के गांवों में लगभग 2000 से भी कम लोग भूतों के साए में रहते हैं.

भानगढ़ कुछ बहुत पुराने मंदिरों और हवेलियों (पारंपरिक घरों) के साथ एक प्रागैतिहासिक बस्ती है. यहां का सबसे प्रसिद्ध नजारा भानगढ़ किला है. 16वीं शताब्दी में, आमेर जयपुर के कछवाहा राजपूत राजा, राजा भगवंत दास ने इस शहर की स्थापना की थी. उनका इरादा इसे अपने दूसरे बेटे माधो सिंह का घर बनाने का था. उनके बड़े भाई, मान सिंह प्रथम, मुगल सम्राट अकबर की सेना में एक जनरल थे और अकबर के मशहूर नवरत्नों में से एक थे. माधो सिंह की मौत के बाद, उनके बेटे छत्र सिंह ने शहर पर शासन किया. 1630 में छत्र सिंह की मौत हो गई और उसके बाद, भानगढ़ का पतन प्रारम्भ हो गया. छत्र सिंह के पुत्र अजब सिंह ने पास में ही अजबगढ़ नामक एक किला बनवाया – उन्होंने छत्र सिंह की मौत के बाद भानगढ़ पर धावा किया और उनकी सौतेली बहन रत्नावती और उनकी सेना को मार डाला.

इसके बाद मुगल साम्राज्य में औरंगजेब की मौत हो गई और मुगल कमजोर हो गए. 1720 में, पड़ोसी राजा और राजा मान सिंह के पुत्र, राजा जय सिंह द्वितीय ने भानगढ़ को अपने क्षेत्र में मिला लिया. और फिर ताबूत में अंतिम कील आई – 1783 का अकाल. तब से यह शहर हाल के दिनों तक वीरान पड़ा है. गुरु बालू नाथ एक साधु थे जो पास की एक गुफा में रहते थे और अपना समय अलगाव और ध्यान में बिताते थे. अब भी, पास में तांत्रिक की छतरी नामक एक छोटी सी पत्थर की झोपड़ी है. जब राजा माधो सिंह ने अपने किले का विस्तार करना चाहा तो साधु ने राजा से वचन लिया कि उन्हें इससे कोई कठिनाई नहीं होगी. हम भारतीय अब भी अतिशयोक्ति और नाटक के प्रति काफी प्रवृत्त हैं. सोचिए तब हम कैसे होते

युवा माधो ने बूढ़े बालू से वादा किया कि इस नए किले की छाया भी उसकी गुफा पर नहीं पड़ेगी. निःसंदेह, सूर्य के कुछ और ही विचार थे – सर्दियों में, छायाएँ लंबी हो जाती थीं और गुफा को छूने लगती थीं. क्रोधित साधु बालू नाथ ने शहर और उसके लोगों को श्राप दिया कि वे कभी भी अपने घर पर छत नहीं डाल पाएंगे. बोला जाता है कि अब भी जब भी यहां कोई घर बनता है तो छत गिर जाती है… मुझे दूसरी कहानी पसंद है जो एक दुखद, एकतरफा प्रेम कहानी की बात करती है.

भानगढ़ की खूबसूरत राजकुमारी रत्नावती राजा छत्र सिंह की बेटी थीं. पास में ही सिंघिया नामक एक तांत्रिक (काला जादू में माहिर) रहता था. वह राजकुमारी से प्रेम करता था. दुर्भाग्य से, यह एकतरफ़ा था. एक बार बाजार में इत्र खरीदते समय उनकी मुलाकात रत्नावती की नौकरानी से हुई. उसने इत्र पर काला जादू किया. जैसे ही राजकुमारी उस परफ्यूम का इस्तेमाल करती, वह उसकी ओर आकर्षित हो जाती. रत्नावती को इस बारे में पता चला और उसने बोतल को खिड़की से बाहर फेंक दिया. बोतल एक चट्टान पर टूट गई, जिससे तांत्रिक आकर्षित होकर उसके ऊपर लुढ़क गया और उसे कुचल दिया. अपनी मौत से पहले, उन्होंने छत्र सिंह, उनके परिवार और क्षेत्रीय लोगों को श्राप दिया था.

अगले वर्ष, किले पर मुगलों द्वारा धावा किया गया (या वह उसका सौतेला भाई अजब सिंह था?) और किले में अन्य लोगों के साथ रत्नावती की मर्डर कर दी गई. किंवदंती है कि तांत्रिक की आत्मा रात में रत्नावती की तलाश में किले में घूमती है… किला तीन तरफ से अरावली पर्वतों से सुरक्षित है. इसमें 5 द्वार हैं जिनमें से एक मुख्य द्वार है. मुख्य द्वार के बाद, कुछ मंदिर (हनुमान, गणेश, आदि) हैं जिनमें सुंदर नक्काशी अभी भी दिखाई देती है, पुजारी का आवास, एक बाज़ार जगह और नर्तकियों का घर (नाचने की हवेली). इसके बाद रानी के निवास वाला मुख्य किला क्षेत्र है. बेशक, वे सभी खंडहर में हैं, लेकिन कोई कल्पना कर सकता है कि यह एक समय कैसा रहा होगा… अब, खंडहरों के चारों तरफ और उसके आर-पार बड़े-बड़े बरगद के पेड़ उग आए हैं, जिससे यह डरावना हो गया है. कुछ हद तक बेहतर स्थिति में एकमात्र संरचना सोमेश्वर मंदिर है. यहां की खूबसूरत बावड़ी को देखें. किला पूरी तरह से खंडहर हो चुका है – इसकी सभी तीन मंजिलें.

इस जगह में प्रवेश करते ही एक अजीब सा खतरा दिखाई देता है. लेकिन शायद ऐसा उन कहानियों के कारण है जो उस जगह के बारे में प्रचलित हैं. मैंने इसे रात में नहीं देखा है, लेकिन मैंने जो सुना है, वह काफी डरावना है. खासकर किले के कुछ हिस्से जैसे रानी का निवास क्षेत्र. भानगढ़ किला भुतहा किला माना जाता है. असली और काल्पनिक, भूत-प्रेत की कहानियाँ प्रचुर मात्रा में हैं. बुद्धि की असाधारण गतिविधि की कहानियाँ रही हैं

रात में किले में – खंडहरों से हंसी, संगीत, नृत्य, मर्डर आदि की आवाजें आती हैं. ये कहानियाँ ही इसे घूमने के लिए इतनी सुन्दर स्थान बनाती हैं… ऐसी कई कहानियाँ भी हैं जिनमें ऐसे लोग शामिल हैं जो रात में वहाँ गए और फिर कभी नहीं लौटे, या रहस्यमय परिस्थितियों में मारे गए, आदि. वास्तव में, यदि नियमों की बात करें तो गवर्नमेंट भी भूत-प्रेत की कहानियों से सहमत दिखती है.

यह किला हिंदुस्तान गवर्नमेंट की संस्था ASI (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) के अधीन है. किले के द्वार पर एक एएसआई साइनबोर्ड कानून निर्दिष्ट करता है कि सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद किले में प्रवेश की अनुमति नहीं होगी. यहाँ तक कि ग्रामीणों को भी सूर्यास्त के बाद अपने जानवरों को चराने की अनुमति नहीं है! इसलिए आप किले का दौरा सिर्फ़ सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे के बीच ही कर सकते हैं

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