Uttarakhand Air Quality Crisis: बारिश की बेरुखी और रिकॉर्ड तोड़ गर्मी ने बढ़ाई उत्तराखंड की धड़कनें
Uttarakhand Air Quality Crisis: उत्तराखंड जिसे हम अपनी शुद्ध आबोहवा के लिए जानते हैं, आज वहां के हालात चिंताजनक मोड़ पर पहुंच गए हैं। लंबे समय से बादलों की बेरुखी ने न केवल धरती की प्यास बढ़ाई है, बल्कि हवा की सेहत भी बिगाड़ दी है। आलम यह है कि राजधानी देहरादून में (Air Quality Index) का स्तर 200 के पार पहुंच गया है, जो सीधे तौर पर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक श्रेणी में आता है। मैदानी इलाकों में बारिश न होने के कारण धूल और धुएं के कण वायुमंडल की निचली सतह पर जमा हो गए हैं, जिससे लोगों का सांस लेना दूभर हो रहा है।
कोहरे का डबल अटैक और बिगड़ते हालात
मौसम वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि आने वाले दिनों में स्थिति और भी विकट हो सकती है। जैसे-जैसे तापमान में गिरावट आएगी, मैदानी इलाकों में कोहरा छाने लगेगा और यह कोहरा (Atmospheric Pollution) के साथ मिलकर ‘स्मॉग’ का रूप ले लेगा। फिलहाल मैदान से लेकर पहाड़ तक सूखी ठंड का प्रकोप जारी है, जिसने जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है। नमी की कमी के कारण हवा में भारीपन महसूस हो रहा है, जो आने वाले हफ्तों में प्रदूषण के स्तर को और ऊपर ले जा सकता है।
आंकड़ों में छिपी खतरे की घंटी
मंगलवार को दर्ज किए गए आंकड़े बताते हैं कि उत्तराखंड के प्रमुख शहरों की स्थिति क्या है। देहरादून में एक्यूआई 207 दर्ज किया गया, जबकि औद्योगिक शहर काशीपुर में यह 128 और ऋषिकेश में 85 रहा। इस प्रदूषण की मुख्य वजह (Winter Rainfall Deficit) को माना जा रहा है, क्योंकि अक्टूबर और नवंबर के बाद दिसंबर का आधा महीना बीत जाने पर भी बारिश का आंकड़ा शून्य बना हुआ है। जब तक तेज बारिश नहीं होती, तब तक हवा में मौजूद ये हानिकारक कण साफ नहीं होंगे।
जलवायु परिवर्तन और सामान्य से अधिक तापमान
मौसम का बदला हुआ मिजाज केवल प्रदूषण तक सीमित नहीं है, बल्कि तापमान में भी असामान्य बढ़ोतरी देखी जा रही है। देहरादून का अधिकतम तापमान सामान्य से पांच डिग्री अधिक यानी 26.0 डिग्री रिकॉर्ड किया गया। यह (Climate Change Impact) का ही नतीजा है कि सर्दियों के चरम पर होने के बावजूद लोगों को दिन में गर्मी का अहसास हो रहा है। रात का तापमान भले ही सामान्य के करीब हो, लेकिन दिन की चिलचिलाती धूप और सूखी हवा ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चिंताएं बढ़ा दी हैं।
स्वास्थ्य पर संकट और डॉक्टरों की सलाह
राजकीय दून मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञों का कहना है कि हवा में जमा धूल के कण फेफड़ों के लिए घातक साबित हो रहे हैं। डॉ. विजय भंडारी के अनुसार, बारिश न होने से (Respiratory Diseases) जैसे अस्थमा, एलर्जी और ब्रोंकाइटिस का खतरा कई गुना बढ़ गया है। हवा में मौजूद प्रदूषक तत्व न केवल फेफड़ों को संक्रमित कर रहे हैं, बल्कि दिल की बीमारियों को भी न्योता दे रहे हैं। डॉक्टरों ने विशेष रूप से बुजुर्गों और बच्चों को सुबह की सैर से बचने और घर से बाहर निकलते समय मास्क अनिवार्य रूप से लगाने की सलाह दी है।
दिसंबर की गर्मी ने तोड़े पिछले कई रिकॉर्ड
इस साल दिसंबर का महीना अपनी पुरानी तासीर भूल चुका है। मौसम विभाग के दस साल के आंकड़ों को देखें तो 16 दिसंबर को इतनी गर्मी कभी नहीं पड़ी। (Record Breaking Temperature) का यह दौर 8 दिसंबर से ही शुरू हो गया था जब पारा 27.9 डिग्री तक जा पहुंचा था। दिसंबर के महीने में पहाड़ों पर बर्फबारी और मैदानों में बारिश की उम्मीद की जाती है, लेकिन इसके उलट खिली धूप और शुष्क मौसम ने खेती-किसानी के साथ-साथ पर्यावरण के संतुलन को भी बिगाड़ कर रख दिया है।
कोहरे के कारण थमी रेल और सड़क की रफ्तार
शुष्क मौसम और बढ़ते प्रदूषण के बीच मैदानी जिलों जैसे हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में कोहरे का असर दिखने लगा है। रुड़की और लक्सर के इलाकों में घने कोहरे के कारण (Transport Disruption) की स्थिति पैदा हो गई है। कई ट्रेनों की रफ्तार धीमी पड़ गई है और कुछ को निरस्त भी करना पड़ा है। हाईवे पर चलने वाले वाहन हेडलाइट्स जलाकर रेंगने को मजबूर हैं, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा भी बढ़ गया है। प्रशासन ने चालकों को सावधानी बरतने के निर्देश दिए हैं।
चार दिन बाद मिल सकती है बड़ी राहत
इतने संकटों के बीच मौसम विभाग ने एक राहत भरी खबर भी दी है। 20 दिसंबर तक मौसम शुष्क रहने के बाद 21 दिसंबर से प्रदेश के पर्वतीय इलाकों में (Weather Shift Prediction) की संभावना जताई गई है। उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग और पिथौरागढ़ जैसे जिलों में बारिश और 3500 मीटर से ऊंचे क्षेत्रों में बर्फबारी हो सकती है। अगर यह पूर्वानुमान सही साबित होता है, तो हवा साफ होगी और वायु प्रदूषण के स्तर में भारी गिरावट आएगी, जिससे आम जनता को राहत मिलेगी।