UPCL Consumer Complaint Redressal: 10 साल बाद जागा बिजली विभाग और भेज दी आरसी, यूपीसीएल की इस भारी चूक ने उड़ा दी उपभोक्ता की नींद
UPCL Consumer Complaint Redressal: उत्तराखंड पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) की एक ऐसी लापरवाही सामने आई है जिसे सुनकर किसी भी आम नागरिक का सिस्टम पर से भरोसा डगमगा सकता है। नैनीताल जिले के एक उपभोक्ता ने जिस बिजली कनेक्शन को एक दशक पहले नियमानुसार कटवा दिया था, विभाग की सुस्ती ने उसे कागजों पर वर्षों तक जिंदा रखा। यह मामला केवल (Electricity Billing Errors) का नहीं है, बल्कि उस मानसिक प्रताड़ना का है जिससे एक आम आदमी को तब गुजरना पड़ता है जब विभाग अपनी गलती का बोझ जनता के कंधों पर डाल देता है। नैनीताल के धारी तहसील का यह प्रकरण अब बिजली विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।

विमल चंद्र लोहनी की ईमानदारी और विभाग की गैर-जिम्मेदाराना हरकत
सिडकुल रुद्रपुर में कार्यरत विमल चंद्र लोहनी का पैतृक निवास नैनीताल जिले के धारी तहसील के ढोली गांव में स्थित है। उन्होंने 8 अगस्त 2016 को पूरी ईमानदारी के साथ यूपीसीएल के कार्यालय में जाकर अपने बिजली कनेक्शन को स्थायी रूप से बंद करने का लिखित अनुरोध किया था। उन्होंने उस समय के सभी बकाया देयकों का भुगतान कर औपचारिकताएं पूरी की थीं, लेकिन विभाग की (Administrative Negligence) का आलम यह रहा कि सिस्टम में उस कनेक्शन को कभी मृत घोषित ही नहीं किया गया। नतीजा यह हुआ कि बंद घर के नाम पर विभाग हर महीने बिल बनाता रहा और बकाया राशि का पहाड़ खड़ा हो गया।
राजस्व विभाग की आरसी ने उड़ाए होश और मचा दिया हड़कंप
विमल चंद्र लोहनी के पैरों तले जमीन तब खिसक गई जब उन्हें तहसील प्रशासन से एक नोटिस मिला। 14 नवंबर को तहसील धारी से उन्हें अवगत कराया गया कि उनके नाम पर बिजली बिल के 8500 रुपये बकाया हैं और इसके साथ ही 10 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क तहसील में जमा करना होगा। विभाग ने इस फर्जी बिल की वसूली के लिए (Revenue Recovery Process) के तहत आरसी जारी कर दी थी। जो उपभोक्ता बरसों पहले नाता तोड़ चुका था, उसे अचानक सरकारी अपराधी की तरह पेश किया जाने लगा। इस अप्रत्याशित नोटिस ने न केवल उन्हें चौंकाया बल्कि समाज में उनकी छवि पर भी सवालिया निशान लगा दिए।
न्याय की चौखट पर उपभोक्ता और शिकायत निवारण मंच की सक्रियता
जब यूपीसीएल के अधिकारियों ने अपनी गलती मानने के बजाय वसूली पर जोर दिया, तो विमल चंद्र लोहनी ने हार नहीं मानी। उन्होंने काठगोदाम हाइडिल परिसर स्थित विद्युत उपभोक्ता शिकायत निवारण मंच का दरवाजा खटखटाया। इस मंच को (Consumer Grievance Redressal) के लिए ही बनाया गया है ताकि विभाग की मनमानी पर रोक लगाई जा सके। मंच के समक्ष विमल ने 2016 में जमा किए गए दस्तावेजों और कनेक्शन कटवाने की रसीद पेश की। उनकी दलील सुनकर मंच के सदस्य भी हैरान रह गए कि कैसे एक बंद कनेक्शन का बिल दस साल तक लगातार जारी किया जा सकता है।
न्याय की जीत और यूपीसीएल भीमताल को मंच की कड़ी फटकार
बीती 9 दिसंबर को इस मामले की अंतिम सुनवाई हुई, जिसमें मंच के न्यायिक सदस्य विष्णु प्रसाद डोभाल, तकनीकी सदस्य तिलकराज भाटिया और उपभोक्ता सदस्य हिमांशु बहुगुणा मौजूद थे। मंच ने उपभोक्ता के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए (UPCL Service Deficiency) के लिए विभाग को कड़ी फटकार लगाई। मंच ने स्पष्ट रूप से यूपीसीएल भीमताल को निर्देशित किया कि उपभोक्ता पर थोपा गया यह बिल पूरी तरह अवैध है और इसे तत्काल निरस्त किया जाए। इस आदेश के बाद विभाग को अपना सिर झुकाना पड़ा और अंततः उस फर्जी बिल को खारिज कर दिया गया।
व्यवस्था की सुस्ती और आम आदमी के संघर्ष की एक मिसाल
यह घटना केवल एक विमल चंद्र लोहनी की कहानी नहीं है, बल्कि उन हजारों उपभोक्ताओं का दर्द है जो विभाग के चक्कर काटते-काटते थक जाते हैं। इस मामले ने उजागर किया है कि (Public Utility Management) में पारदर्शिता की कितनी कमी है। यदि उपभोक्ता के पास 10 साल पुराने कागजात सुरक्षित न होते, तो आज उसे बिना किसी खता के हजारों रुपये भरने पड़ते। यह मामला एक सबक है कि सिस्टम की लापरवाही के खिलाफ यदि सही मंच पर आवाज उठाई जाए, तो जीत हमेशा सच की होती है। अब विभाग को अपनी आंतरिक प्रणाली को दुरुस्त करने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में किसी अन्य विमल को ऐसी परेशानी न झेलनी पड़े।
उपभोक्ताओं के लिए जरूरी सबक और सावधानी की अपील
नैनीताल के इस प्रकरण ने यह साबित कर दिया है कि सरकारी विभागों के साथ किसी भी लेनदेन या कनेक्शन विच्छेदन की रसीद को संभाल कर रखना कितना अनिवार्य है। अक्सर लोग (Document Safety Protocols) को नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे विभाग को मनमानी करने का मौका मिलता है। विद्युत उपभोक्ता शिकायत निवारण मंच का यह फैसला अन्य उपभोक्ताओं के लिए भी एक मिसाल बनेगा कि वे चुपचाप अन्याय सहने के बजाय कानूनी रास्ता अपनाएं। यूपीसीएल को भी चाहिए कि वह अपने डिजिटल रिकॉर्ड को समय-समय पर अपडेट करे ताकि ऐसे ‘मुर्दा बिलों’ से विभाग की साख और जनता की जेब दोनों सुरक्षित रह सकें।



