Electricity Tariff Hike: बिजली बिलों का जोरदार झटका, ऊर्जा निगमों के नए प्रस्ताव ने बढ़ाई जनता की बेचैनी
Electricity Tariff Hike: उत्तराखंड के नागरिकों के लिए आने वाला समय आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि प्रदेश के तीनों प्रमुख ऊर्जा निगमों ने बिजली की दरों में भारी बढ़ोतरी का खाका तैयार कर लिया है। यूपीसीएल, यूजेवीएनएल और पिटकुल की ओर से पेश किए गए प्रस्तावों में इस बार आम आदमी की जेब पर अतिरिक्त बोझ डालने की (Utility Rate Revision) की तैयारी स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है। इन प्रस्तावों के अनुसार, बिजली की दरों में औसतन 18.50 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है। हालांकि, इन प्रस्तावों में उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग को कुछ तकनीकी खामियां मिली हैं, जिसे लेकर आयोग ने अब कड़ा रुख अख्तियार करते हुए निगमों से जवाब तलब किया है।

यूपीसीएल और पिटकुल का प्रस्ताव और नियामक आयोग की पैनी नजर
ऊर्जा निगमों द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि उत्तराखंड पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) ने सबसे अधिक यानी 16.23 प्रतिशत की वृद्धि की मांग की है। वहीं, पावर ट्रांसमिशन कॉर्पोरेशन ऑफ उत्तराखंड लिमिटेड (पिटकुल) ने भी लगभग तीन प्रतिशत की बढ़ोतरी का प्रस्ताव रखा है। इस (Energy Sector Regulation) की प्रक्रिया के तहत नियामक आयोग ने इन प्रस्तावों का गहन अध्ययन शुरू कर दिया है। आयोग के अधिकारियों ने पाया है कि निगमों द्वारा दी गई जानकारियों में कई विसंगतियां हैं, जिन्हें स्पष्ट किए बिना आगे की प्रक्रिया शुरू करना संभव नहीं है। यही कारण है कि अब इन निगमों को अपनी स्थिति साफ करने के लिए एक निश्चित समय सीमा दी गई है।
यूजेवीएनएल का चौंकाने वाला कदम और ऋणात्मक टैरिफ का रहस्य
इस बार के टैरिफ प्रस्तावों में सबसे हैरान करने वाला आंकड़ा उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड (यूजेवीएनएल) की ओर से आया है। निगम के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है जब यूजेवीएनएल ने (Negative Tariff Proposal) पेश किया है, जो करीब माइनस 1.2 प्रतिशत दर्ज किया गया है। नियामक आयोग के अधिकारी भी इस प्रस्ताव को देखकर चकित हैं, क्योंकि इसका सीधा मतलब यह है कि इस बार निगम को बिजली दरों में किसी भी प्रकार की बढ़ोतरी का लाभ नहीं मिल पाएगा। इस अप्रत्याशित कदम के पीछे क्या कारण हैं और यह राजस्व पर क्या प्रभाव डालेगा, इस पर आयोग के भीतर गंभीर मंथन चल रहा है।
समय सीमा का निर्धारण और निगमों को जवाब देने की अंतिम मोहलत
नियामक आयोग ने स्पष्ट किया है कि जब तक सभी तकनीकी पहलुओं और विसंगतियों पर स्पष्टीकरण नहीं मिल जाता, तब तक याचिकाओं को आधिकारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया जाएगा। आयोग ने तीनों ऊर्जा निगमों को 17 दिसंबर तक का समय दिया है ताकि वे (Compliance and Reporting) के मानकों के अनुरूप अपने जवाब दाखिल कर सकें। गौर करने वाली बात यह है कि यूजेवीएनएल और पिटकुल ने तो अपना प्रस्ताव समय सीमा यानी 30 नवंबर से पहले ही दे दिया था, लेकिन यूपीसीएल ने इस मामले में देरी करते हुए 9 दिसंबर के आसपास अपना प्रस्ताव पेश किया। अब सभी निगमों को एक साथ आयोग के सवालों का सामना करना होगा।
जनसुनवाई का मंच और आम जनता की राय की अहमियत
बिजली की दरें तय करना केवल सरकारी विभागों के बीच की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि इसमें जनता की भागीदारी भी सुनिश्चित की जाती है। आयोग ने योजना बनाई है कि जानकारियों के स्पष्ट होने और याचिका दायर होने के बाद फरवरी माह में प्रदेश भर में (Public Hearing Session) का आयोजन किया जाएगा। इस दौरान सभी हितधारकों, उद्योगपतियों और आम उपभोक्ताओं से सुझाव और आपत्तियां आमंत्रित की जाएंगी। यह एक पारदर्शी प्रक्रिया है जहां जनता को अपनी बात रखने और प्रस्तावित दरों का विरोध करने का पूरा मौका मिलता है। आयोग इन सभी सुझावों का विश्लेषण करने के बाद ही अपना अंतिम निर्णय सुनाएगा।
नए वित्तीय वर्ष से लागू होंगे नियम और बिजली की नई कीमतें
बिजली की दरों में जो भी बदलाव किया जाएगा, वह वर्तमान समय से नहीं बल्कि नए वित्तीय वर्ष 2026-27 के शुभारंभ से प्रभावी होगा। नियामक आयोग द्वारा विस्तृत विश्लेषण और जनसुनवाई के बाद जारी किया गया (Financial Year Tariff) एक अप्रैल 2026 से पूरे प्रदेश में लागू कर दिया जाएगा। तब तक वर्तमान दरें ही प्रभावी रहेंगी। सरकार और आयोग की कोशिश है कि ऊर्जा निगमों की वित्तीय सेहत सुधारने और जनता को सस्ती बिजली उपलब्ध कराने के बीच एक संतुलन स्थापित किया जा सके। हालांकि, 18 प्रतिशत की प्रस्तावित वृद्धि ने मध्यम वर्गीय परिवारों और घरेलू उपभोक्ताओं की नींद उड़ा दी है।
पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ होगा बिजली दरों का फैसला
उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग का उद्देश्य बिजली वितरण की व्यवस्था को पारदर्शी और जवाबदेह बनाना है। निगमों द्वारा भेजी गई फाइलों में जो कमियां मिली हैं, उन्हें दूर करना अनिवार्य है ताकि बाद में किसी भी प्रकार की कानूनी अड़चन न आए। (Electricity Regulatory Framework) के तहत यह सुनिश्चित किया जाएगा कि किसी भी निगम को बेवजह का वित्तीय लाभ न मिले और आम जनता से वसूला जाने वाला पैसा सही दिशा में खर्च हो। अगले कुछ हफ्तों में यह साफ हो जाएगा कि आयोग इन निगमों के स्पष्टीकरण से कितना संतुष्ट है और क्या वास्तव में बिजली के दाम इतने ज्यादा बढ़ेंगे जितने की आशंका जताई जा रही है।



