Bear Attack Terror: जब स्कूल जाते मासूमों के सामने काल बनकर खड़ा हो गया भालू, जान बचाने को सरपट दौड़े अभिभावक
Bear Attack Terror: जनपद से सटे चिनग्वाड़ ग्रामसभा के लाटधार तोक में मंगलवार की सुबह किसी डरावने सपने जैसी रही। सुबह करीब 8 बजे जब प्रियांशु और सचिन जैसे मासूम छात्र अपने अभिभावकों के साथ राजकीय इंटर कॉलेज पीड़ा के लिए निकले थे, तब उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि रास्ते में मौत उनका इंतजार कर रही है। रास्ते में अचानक एक (Wildlife Encounter) की स्थिति बन गई जब उन्होंने एक विशालकाय भालू को पेड़ पर बैठा देखा। शोर मचाकर उसे भगाने की कोशिश की गई, लेकिन भालू डराने के बजाय उल्टा उनकी ओर झपट पड़ा।
जान बचाकर भागे छात्र और अभिभावक
भालू को अपनी ओर बढ़ता देख बच्चों और परिजनों के हाथ-पांव फूल गए। बिना एक पल गंवाए, सभी अपनी जान बचाने के लिए वापस घरों की ओर सरपट दौड़ पड़े। इस (Emergency Situation) के कारण बच्चे स्कूल नहीं जा सके और पूरे दिन गांव में सन्नाटा पसरा रहा। डरे-सहमे बच्चों ने घर पहुंचकर जब आपबीती सुनाई, तो परिजनों की रूह कांप गई। इस घटना ने एक बार फिर पहाड़ी इलाकों में इंसान और वन्यजीवों के बीच बढ़ते संघर्ष (Bear Attack Terror) को उजागर कर दिया है।
थाली और शोर के भरोसे स्कूल का रास्ता
चिनग्वाड़ गांव में अब खौफ का आलम यह है कि शिक्षा पर भालू का पहरा लग गया है। ग्रामीण महिलाओं का कहना है कि वे अब अकेले बच्चों को बाहर भेजने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही हैं। अब ग्रामीण टोलियों में निकलते हैं और (Self Defense Techniques) के तौर पर हाथों में थाली लेकर उसे बजाते हुए और शोर मचाते हुए रास्ता तय कर रहे हैं। ग्रामीणों का मानना है कि शोर सुनकर भालू शायद रास्ता छोड़ दे, लेकिन यह तरीका कितना सुरक्षित है, इस पर सवालिया निशान लगा हुआ है।
मवेशियों पर हमला और ग्रामीणों का बढ़ता आक्रोश
खौफ का यह सिलसिला केवल चिनग्वाड़ तक सीमित नहीं है। इससे सटे पीड़ा क्षेत्र में भालू ने एक मवेशी पर हमला कर उसे बेरहमी से मार डाला। इस (Livestock Loss) ने ग्रामीणों के गुस्से को और भड़का दिया है। लोगों का कहना है कि भालू अब केवल रास्तों पर ही नहीं, बल्कि बस्तियों के इतने करीब पहुंच गया है कि पशुओं को भी निवाला बना रहा है। ग्रामीणों ने वन विभाग से मांग की है कि अति संवेदनशील इलाकों में गश्त बढ़ाई जाए ताकि जान-माल की रक्षा हो सके।
गोशाला तोड़कर भालू ने मचाया तांडव
ऊखीमठ ब्लॉक के मक्कूमठ स्थित धरोडा गांव से भी दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है। यहाँ सोमवार रात भालू ने लक्ष्मण सिंह चौहान की गोशाला का दरवाजा तोड़कर भीतर प्रवेश किया और दो मवेशियों को बुरी तरह घायल कर दिया। इस (Property Damage) की घटना के बाद से इलाके में दहशत का माहौल है। ग्रामीणों को डर है कि अगर भालू गोशाला तोड़ सकता है, तो वह घरों के भीतर भी घुस सकता है, जिससे इंसानी जान को बड़ा खतरा पैदा हो गया है।
वन विभाग की क्यूआरटी टीम और निगरानी
भालू की बढ़ती सक्रियता को देखते हुए वन विभाग ने क्षेत्र में निगरानी बढ़ा दी है। विभाग का दावा है कि उनकी क्विक रिस्पांस टीम (Quick Response Team) हर सूचना पर तुरंत मौके पर पहुंच रही है और प्रभावित इलाकों में लगातार गश्त की जा रही है। अधिकारियों का कहना है कि वे आबादी वाले क्षेत्रों में भालू को रोकने के लिए ‘डेंजर’ प्रयोग और अन्य तकनीकों पर काम कर रहे हैं, ताकि वन्यजीवों को रिहायशी इलाकों से दूर रखा जा सके।
बचाव के लिए ‘मिर्ची धूमन’ की सलाह
वन विभाग ने ग्रामीणों को सुरक्षा के प्रति सचेत रहने के लिए विशेष दिशा-निर्देश जारी किए हैं। विभाग ने मशवरा दिया है कि ग्रामीण (Precautionary Measures) के तौर पर ‘मिर्ची धूमन’ (मिर्ची का धुआं) करें, जिससे भालू गंध पाकर दूर भाग जाता है। इसके साथ ही, अकेले अंधेरे में या सुनसान रास्तों पर न निकलने की सख्त हिदायत दी गई है। हालांकि, ग्रामीण इन उपायों से संतुष्ट नहीं हैं और भालू को पकड़ने या पिंजरा लगाने की मांग कर रहे हैं।
दहशत के बीच शिक्षा और सुरक्षा की जंग
उत्तराखंड के इन गांवों में फिलहाल शिक्षा और सुरक्षा के बीच एक बड़ी जंग छिड़ी हुई है। जब तक भालू का आतंक खत्म नहीं होता, तब तक बच्चों के लिए स्कूल की राह कांटों भरी बनी रहेगी। (Community Safety) सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन को और अधिक कड़े कदम उठाने होंगे। फिलहाल, चिनग्वाड़ और आसपास के क्षेत्रों में हर आहट पर लोग सहम जाते हैं और सूरज ढलते ही सन्नाटा पसर जाता है, जो किसी अनहोनी की आहट जैसा महसूस होता है।