Lucknow KGMU Radicalization Controversy: क्या नफरत की प्रयोगशाला बन रहा है लखनऊ का KGMU, जानें सफेद कोट के पीछे का काला सच…
Lucknow KGMU Radicalization Controversy: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित प्रतिष्ठित किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) इस वक्त एक बेहद संवेदनशील और गंभीर विवाद के केंद्र में है। चिकित्सा जगत का यह प्रतिष्ठित संस्थान, जिसे लोग जीवनदान का केंद्र मानते हैं, वहां से कट्टरपंथ की खबरें आने के बाद पूरे प्रदेश में सनसनी फैल गई है। पैथोलॉजी विभाग के कुछ डॉक्टरों पर आरोप लगा है कि वे अस्पताल के भीतर लोगों को (Religious Radicalization Process) का हिस्सा बना रहे हैं। यह मामला तब और गंभीर हो गया जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठन नेशनल मेडिकोज आर्गेनाईजेशन (NMO) ने इसमें हस्तक्षेप करते हुए उच्च स्तरीय जांच की मांग की।
महिला डॉक्टर का साहस और रमीज की काली करतूत
इस पूरे विवाद की जड़ तब सामने आई जब इसी विभाग की एक महिला रेजिडेंट डॉक्टर ने अपने सीनियर डॉक्टर रमीज के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। महिला डॉक्टर ने आरोप लगाया कि रमीज काफी समय से उसका (Sexual Harassment Allegations) कर रहा था और उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहा था। पीड़िता का कहना है कि आरोपी डॉक्टर उस पर शादी के लिए धर्म परिवर्तन करने का भारी दबाव बना रहा था। इस शिकायत के बाद पुलिस ने तत्काल प्रभाव से मुकदमा दर्ज कर लिया है और केजीएमयू प्रशासन ने सख्त रुख अपनाते हुए डॉक्टर रमीज को पद से सस्पेंड कर दिया है।
धर्मांतरण का दबाव और लैब के भीतर मजहबी तकरीरें
NMO ने इस मामले में बेहद चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। संगठन का दावा है कि केजीएमयू के पैथोलॉजी विभाग में केवल इलाज और शोध नहीं हो रहा, बल्कि वहां (Forced Religious Conversions) के लिए एक गुप्त नेटवर्क काम कर रहा है। आरोप है कि विभाग के भीतर महिला और पुरुष स्वास्थ्यकर्मियों को चुपके-चुपके कट्टरपंथी बनाने की कोशिश की जाती है और उन्हें जबरन धार्मिक तकरीरें सुनाई जाती हैं। डॉक्टरों के संगठन ने विश्वविद्यालय के कुलपति कार्यालय पर भी आरोप लगाया है कि वे इन शिकायतों को दबाने की कोशिश कर रहे थे, जिसके कारण मामला इतना बढ़ गया।
प्रोफेसर वाहिद अली पर लगे आरोपों से उपजा विवाद
कट्टरपंथ की इस कथित आग में पैथोलॉजी विभाग के प्रोफेसर वाहिद अली का नाम भी सामने आया है। NMO ने सीधे तौर पर प्रोफेसर वाहिद पर छात्रों और कर्मचारियों को (Radical Religious Speech) के जरिए भड़काने का आरोप लगाया है। संगठन का कहना है कि विभाग के भीतर एक ऐसा माहौल तैयार किया गया है जहां विशेष विचारधारा को थोपने का प्रयास किया जाता है। इन आरोपों ने न केवल विश्वविद्यालय प्रशासन की नींद उड़ा दी है बल्कि आम जनता के बीच भी डॉक्टरों की छवि को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
आरोपी प्रोफेसर का पलटवार: ‘मैं पांच वक्त की नमाज भी नहीं पढ़ता’
अपने ऊपर लगे इन गंभीर आरोपों पर प्रोफेसर वाहिद अली ने खुलकर अपनी सफाई दी है। उन्होंने इन दावों को पूरी तरह निराधार बताते हुए कहा कि वे पिछले 17 वर्षों से केजीएमयू में अपनी सेवाएं दे रहे हैं और उनका (Academic Record Integrity) हमेशा से शानदार रहा है। प्रोफेसर वाहिद ने तर्क दिया कि उनकी लैब में ऐसी गतिविधियों के लिए कोई जगह ही नहीं है और उनकी वेशभूषा या जीवनशैली भी धार्मिक उपदेशक जैसी नहीं है। उन्होंने सवाल उठाया कि आरोप लगाने वाले लोग केजीएमयू के बाहर के हैं, जो उनकी छवि खराब करने की साजिश रच रहे हैं।
केजीएमयू की साख और कुलपति की जांच कमेटी
इस विवाद ने केजीएमयू जैसे गौरवशाली संस्थान की साख पर गहरा दाग लगाया है। विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि अब तक कट्टरपंथ के आरोपों से संबंधित कोई भी (Lack of Evidence in Investigation) ठोस साक्ष्य सामने नहीं आया है। प्रशासन ने इस बात पर दुख जताया है कि इस तरह के विवादों से संस्थान की छवि को वैश्विक स्तर पर नुकसान पहुँच रहा है। हालांकि, मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए एक उच्च स्तरीय कमेटी गठित कर दी गई है, जो महिला डॉक्टर के शोषण और कट्टरपंथ के दावों की गहनता से जांच करेगी।
चिकित्सा शिक्षा और नैतिकता के बीच खड़ा संकट
एक डॉक्टर का प्राथमिक धर्म केवल मरीज की सेवा करना होता है, लेकिन जब सफेद कोट के पीछे धार्मिक एजेंडे की खबरें आती हैं, तो यह (Medical Professional Ethics) के लिए एक बड़ा संकट है। लखनऊ का यह मामला अब केवल एक संस्थान तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि इसने प्रदेश की राजनीति और शासन व्यवस्था में भी हलचल पैदा कर दी है। पुलिस और विश्वविद्यालय की जांच टीमें अब इस बात की तह तक जाने की कोशिश कर रही हैं कि क्या वाकई विभाग के भीतर किसी तरह का ब्रेनवाश करने वाला गिरोह सक्रिय है या यह आपसी रंजिश का नतीजा है।
न्याय की उम्मीद और भविष्य की चुनौतियां
महिला डॉक्टर की एफआईआर और डॉक्टर रमीज के निलंबन के बाद अब सबकी निगाहें जांच कमेटी की रिपोर्ट पर टिकी हैं। केजीएमयू जैसे संस्थानों में (Institutional Disciplinary Action) की पारदर्शिता ही छात्रों और मरीजों का विश्वास बहाल कर सकती है। यदि कट्टरपंथ के आरोप सही पाए जाते हैं, तो यह उत्तर प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था के लिए एक बड़ा अलार्म होगा। फिलहाल, परिसर में तनावपूर्ण शांति है और पुलिस चप्पे-चप्पे पर नजर रख रही है ताकि कोई बाहरी तत्व इस विवाद का फायदा उठाकर सांप्रदायिक सौहार्द न बिगाड़ सके।