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हांगझोऊ एशियाई खेलों में इस बार भारत ने जीते 28 गोल्ड मेडल समेत 107 पदक

हांगझोऊ एशियाई खेलों में इस बार हिंदुस्तान ने बहुत बढ़िया प्रदर्शन करते हुए 28 गोल्ड मेडल समेत 107 पदक जीते हैं. पहली बार एशियाड में हिंदुस्तान के पदकों की संख्या सौ के पार गई है. इस खुशी में यदि ये बोला जाए कि इसका रिश्ता कहीं ना कहीं नेहरू से भी जुड़ता है तो आप क्या कहेंगे. ओलंपिक के तर्ज पर एशिया की सबसे बड़ी खेल प्रतियोगिता की आरंभ ही हिंदुस्तान ने कराई थी और इसमें मुख्य किरदार निभाई तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू ने.

आज हम एशियाई खेल एक ऐसी प्रतियोगिता का रूप ले चुकी है, जिसका आयोजन एशिया के राष्ट्रों में बड़े धूमधाम से होता है. एशिया के 48 राष्ट्र इसमें शिरकत करते हैं. इसका आयोजन करना और इसमें हिस्सा लेना और इसमें पदक जीतना राष्ट्रों के बीच प्रतिष्ठा की बात होती है. वैसे हिंदुस्तान लगातार ही एशियाई खेलों में अच्छा प्रदर्शन करता रहा है.

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लेकिन ये जानना सबसे फख्र की बात है कि इस खेल की आरंभ हिंदुस्तान के ही प्रयासों से हुई बल्कि बोलना चाहिए कि ना हिंदुस्तान इसके लिए पहल करता और ना ये खेल प्रारम्भ ही होते. हिंदुस्तान की आजादी के तुरंत बाद एशियाई खेल आंदोलन प्रारम्भ करने में दो लोगों ने सबसे खास किरदार निभाई थी.

देश की आजादी से 7 वर्ष पहले यानी 1940 में पंडित नेहरू को गोरखपुर से अरैस्ट किया

1948 के लंदन ओलंपिक में एशियाई राष्ट्रों के प्रतिनिधि एकत्र हुए. वहां एशियाई राष्ट्रों के खेल के जुड़े खेल संघों के पदाधिकारियों ने ये विचार किया कि ओलंपिक की ही तरह एशिया महाद्वीप में भी खेलों का आय़ोजन होना चाहिए. जिसमें सभी एशियाई राष्ट्र हिस्सा लें. ये विचार सभी को पसंद तो जरूर आया लेकिन तब इसको आयोजित कराने में दिलचस्पी किसी भी नहीं थी. इस मीटिंग में ये विचार हिंदुस्तान के प्रतिनिधि गुरु दत्त सोंढी ने रखा था.

दरअसल दूसरे विश्व युद्ध के चलते 12 वर्षों तक ओलंपिक खेलों का आयोजन नहीं हो सकता था. इसके बाद साल 1948 में ये खेल लंदन में होने वाले थे. हिंदुस्तान भी आजादी के तुरंत बाद इसमें अपना दल भेज रहा था.

ओलंपिक खेलों में भारतीय टीम को भेजने से पहले तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू एक कार्यक्रम में भारतीय टीम और इसके साथ जा रहे ऑफिसरों से मिले. वहां अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ के सदस्य हिंदुस्तान के प्रोफेसर गुरु दत्त सोंधी भी थे. वार्ता में नेहरु ने ख़्वाहिश जाहिर की कि ओलंपिक की तरह एशियाई राष्ट्रों को भी मिलकर एक खेल आय़ोजन करना चाहिए.

नेहरू चाहते थे खेलों के माध्यम से पास आएं एशियाई देश
नेहरू चाहते थे कि एशियाई खेल प्रारम्भ होने से खेलों के माध्यम से एशियाई राष्ट्रों को एक और मंच पर साथ आने का मौका मिलेगा. कुछ एशियाई खेल नए नए आजाद भी हुए थे.

लंदन ओलंपिक के दौरान एशियाई खेल ऑफिसरों के सामने ये सुझाव प्रोफेसर सोंधी ने रखा. फिलीपीन्स के जार्ज बी वर्गेस ने इसका भरपूर समर्थन किया. तब वहीं एशियाई स्पोर्ट्स फेडरेशन की एक मीटिंग में इस पर गंभीरता से विचार किया गया. ये तय हुआ कि पहले एशियाई खेल होने चाहिए. पहले एशियाई खेल तब चीन में कराने का निर्णय किया गया. हिंदुस्तान का पूरा समर्थन इसको हासिल था.

गुरुदत्त सोंधी कौन थे?
सोंधी का जन्म 10 दिसंबर 1890 को लाहौर में एक प्रभावशाली परिवार में हुआ था. उनके पिता जालंधर में बैरिस्टर थे. वह पढ़ाई के साथ खेलों में भी अच्छा रहते थे.
उन्होंने लाहौर के सरकारी कॉलेज में दाखिला लिया (जहां कई वर्षों बाद अदाकार देव आनंद ने भी पढाई की). कॉलेज में रहते हुए वह पंजाब यूनिवर्सिटी के खेलों के रनिंग चैंपियन बने. फिर उनके पिता ने उन्हें कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के ट्रिनिटी कॉलेज में भेज दिया, जहां उन्होंने पढाई के साथ ट्रिनिटी कॉलेज हॉकी टीम का अगुवाई भी किया.

तीन बार ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम के मैनेजर रहे
खेल के प्रति उनका प्रेम उन्हें खेल प्रशासन में ले गया. उन्हें 1928, 1932 और 1936 नामक तीन ओलंपिक खेलों में हिंदुस्तान की हॉकी टीम का मैनेजर बनाया गया. हर बार हिंदुस्तान ने स्वर्ण पदक जीता. सोंधी भारतीय ओलंपिक संघ के महासचिव, एथलेटिक्स महासंघ के अध्यक्ष और एफआईएच (अंतर्राष्ट्रीय हॉकी महासंघ) के उपाध्यक्ष बने.

सोंधी वादा कर आए कि पहले एशियाई खेल दिल्ली में हो सकते हैं
पहले एशियाई खेल शंघाई में होने तय हुए लेकिन चीन के सिविल वार के कारण ये महसूस किया गया कि शायद वहां पहले एशियाई खेलों का कराना कठिन होगा. अब ये संकट था कि इसको कहां कराएं. सोंधी ने मीटिंग में वादा कर लिया कि ये आयोजन हिंदुस्तान में भी हो सकता है. हालांकि इसकी पुष्टि अगले वर्ष दिल्ली में एक मीटिंग के बाद पूरी तरह हो गई.

भारत ने दे दी हरी झंडी
12-13 फरवरी 1949 में नयी दिल्ली के पटियाला हाउस में एक मीटिंग हुई, जिसमें एशियाई गेम्स फेडरेशन का गठन हुआ. इसका मसौदा तय हुआ. इस मीटिंग में अफगानिस्तान, बर्मा (अब म्यांमार), श्रीलंका, इंडोनेशिया, नेपाल, पाकिस्तान, फिलीपीन्ंस और थाईलैंड के खेल प्रतिनिधियों ने शिरकत किया. तत्कालीन पीएम नेहरू से हरी झंडी मिलने के बाद सोंधी ने सभी से बोला कि एशियाई खेल होंगे और पहली बार इसकी आरंभ हिंदुस्तान से ही होगी.

नेहरू और सोंधी के बीच टीम वर्क
हालांकि हिंदुस्तान की आजादी से पहले ही नेहरू की अध्यक्षता में नयी दिल्ली में आयोजित एशियाई संबंध सम्मेलन में भी पहले एशियाई खेलों की अवधारणा पर चर्चा हो चुकी थी. ये विचार 1948 के लंदन ओलंपिक खेलों के दौरान वास्तविकता में बदला. जब चीन में एशियाई खेलों का कराना संभव नहीं दिखा तो फिर इसे नेहरू की ही रजामंदी से हिंदुस्तान में कराना सुनिश्चित हो गया.

प्रधान मंत्री नेहरू का नयी दिल्ली में पहले एशियाई खेल कराने पर पूरा समर्थन हासिल था. फिर हिंदुस्तान में नयी दिल्ली ने 1951 में पहली बार एशियाई खेलों की मेजबानी की.

भारत की क्षमता की सराहना की
4 मार्च, 1951 को प्रारम्भ हुए खेल एक हफ्ते तक चले. बहुत सफल रहे. हिंदुस्तान ने पहले कभी इस स्तर का कोई आयोजन नहीं किया था. ब्रिटिश शासन के अधीन रहते हुए भी, राष्ट्र ने कभी भी इतनी बड़ी मेजबानी नहीं की थी. लेकिन इतने बड़े आयोजन की मेजबानी करने की स्वतंत्र हिंदुस्तान की क्षमता को अन्य एशियाई राष्ट्रों ने व्यापक रूप से स्वीकार किया.

भारत दूसरे जगह पर रहा
जापानी एथलीटों ने सबसे अधिक 60 पदक जीते लेकिन मेजबान हिंदुस्तान 51 पदकों के साथ दूसरे जगह पर रहा. नेहरू द्वारा अपने भाषण में कही गई एक पंक्ति (खेल को खेल की भावना से खेलें) खेलों का आदर्श वाक्य बन गई.

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