Supreme Cour: पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची पुनरीक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती, चुनाव आयोग ने तुरंत नियुक्त किए पांच वरिष्ठ आईएएस अधिकारी
Supreme Cour: ने पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर के काम में हो रही बाधाओं पर कड़ा रुख अपनाया है। अदालत ने स्पष्ट कहा कि अगर कुछ राजनीतिक दल या लोग लगातार बीएलओ और अन्य अधिकारियों को धमकी दे रहे हैं तो यह स्थिति अराजकता पैदा कर सकती है। कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि वह इन मामलों का तुरंत संज्ञान ले, नहीं तो अदालत खुद कड़े आदेश जारी करेगी। साथ ही कोर्ट ने चेतावनी दी कि हालात और बिगड़े तो पुलिस तैनाती के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा।

चुनाव आयोग को अदालत की चेतावनी के बाद तत्काल एक्शन लेना पड़ा
सुप्रीम कोर्ट की फटकार के कुछ ही घंटों बाद चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया की निगरानी के लिए बड़ा कदम उठाया। सोमवार को आयोग ने पांच वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों को स्पेशल रोल ऑब्जर्वर के तौर पर नियुक्त कर दिया। इन अधिकारियों का काम सिर्फ कागजी निगरानी नहीं बल्कि जमीनी स्तर पर पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाना है। अधिकारियों का चयन भी इस तरह किया गया है कि हर बड़े संभाग में एक मजबूत निगरानी तंत्र खड़ा हो जाए।
किन-किन अधिकारियों को मिली कौन सी जिम्मेदारी
चुनाव आयोग ने बेहद सोच-समझकर अधिकारियों का चयन किया है। रक्षा मंत्रालय में संयुक्त सचिव कुमार रवि कांत सिंह को प्रेसिडेंसी संभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई है। कोलकाता और आसपास के इलाकों में मतदाता सूची में सबसे ज्यादा शिकायतें आ रही थीं, इसलिए यहां मजबूत अधिकारी की तैनाती जरूरी थी। दूसरी तरफ गृह मंत्रालय के नीरज कुमार बांसोद को मेदिनीपुर संभाग सौंपा गया है। मेदिनीपुर में भी पिछले कुछ दिनों से बीएलओ को धमकाने और काम में बाधा डालने की खबरें सामने आ रही थीं।
इसके अलावा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के कृष्ण कुमार निराला को बर्दवान संभाग की कमान दी गई है। बाकी दो संभागों के लिए भी अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपी गई है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इन स्पेशल ऑब्जर्वर्स की तैनाती से अब हर स्तर पर शिकायतों की तुरंत सुनवाई हो सकेगी और कोई भी राजनीतिक दबाव काम नहीं आएगा।
मतदाता सूची पुनरीक्षण में क्यों आ रही हैं इतनी दिक्कतें
पश्चिम बंगाल में 4 नवंबर से विशेष गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम शुरू हुआ था। इस बार लाखों नए नाम जोड़ने और हजारों फर्जी या डुप्लीकेट नाम हटाने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन कुछ इलाकों में स्थानीय राजनीतिक कार्यकर्ता बीएलओ को घर में घुसने नहीं दे रहे, धमकी दे रहे हैं या फिर फॉर्म भरवाने में बाधा डाल रहे हैं। कई जगह तो बीएलओ ने काम करने से ही मना कर दिया था। यही वजह है कि मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।
अदालत ने ठीक कहा कि अगर यही हाल रहा तो पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठने लगेंगे और आने वाले चुनावों की निष्पक्षता पर भी असर पड़ेगा। अब स्पेशल ऑब्जर्वर्स की तैनाती से उम्मीद है कि बीएलओ बेखौफ होकर काम कर सकेंगे।
अंतिम मतदाता सूची कब आएगी और उससे क्या बदलेगा
राज्य में संशोधित मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन 14 फरवरी 2026 को होना है। इसके बाद कोई भी नाम जोड़ना या हटाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। इसलिए अभी चल रहा पुनरीक्षण बेहद महत्वपूर्ण है। अगर कोई व्यक्ति अभी अपना नाम नहीं जुड़वा पाया या उसका नाम गलत तरीके से काट दिया गया है तो उसके पास यही आखिरी मौका है।
चुनाव आयोग ने साफ कहा है कि स्पेशल रोल ऑब्जर्वर्स की मौजूदगी में अब कोई भी दबंगई या धांधली नहीं चलेगी। हर दावे-आपत्ति की निष्पक्ष जांच होगी और सिर्फ वैध मतदाताओं का ही नाम अंतिम सूची में रहेगा।
लोगों को क्या करना चाहिए
अगर आपको लगता है कि आपका या आपके परिवार के किसी सदस्य का नाम मतदाता सूची में नहीं है या गलत है तो तुरंत नजदीकी बीएलओ से संपर्क करें। फॉर्म 6, 7, 8 या 8A भरवाकर सुधार करवाएं। अब स्पेशल ऑफिसर भी मौजूद हैं, इसलिए शिकायत करने में बिल्कुल न हिचकें। यही वह समय है जब आप अपने वोट का हक सुरक्षित कर सकते हैं।
पश्चिम बंगाल में चल रहा यह विशेष पुनरीक्षण कार्यक्रम सिर्फ एक प्रशासनिक काम नहीं है, बल्कि लोकतंत्र की बुनियाद को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। सुप्रीम कोर्ट की सख्ती और चुनाव आयोग की त्वरित कार्रवाई से अब उम्मीद की जा रही है कि मतदाता सूची पूरी तरह साफ-सुथरी और विश्वसनीय बनेगी।
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