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Special Intensive Revision West Bengal: क्या 2026 में बदल जाएगा बंगाल का राजनीतिक भूगोल, आज होगा 32 लाख की किस्मत का फैसला…

Special Intensive Revision West Bengal: पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक नया और निर्णायक अध्याय शुरू हो गया है। राज्य में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण यानी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के तहत शनिवार से एक व्यापक सुनवाई प्रक्रिया का आगाज हो चुका है। यह कोई सामान्य प्रक्रिया नहीं है, बल्कि बंगाल के चुनावी इतिहास का संभवतः सबसे बड़ा ‘वेरिफिकेशन’ अभियान है। इसके लिए चुनाव आयोग ने पूरे राज्य में (Electoral Roll Transparency) को सुनिश्चित करने के लिए 3,234 विशेष केंद्र स्थापित किए हैं। प्रशासन की इस सक्रियता ने उन लोगों के बीच खलबली मचा दी है, जिनकी नागरिकता या पते को लेकर सवालिया निशान खड़े हैं।

Special Intensive Revision West Bengal
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32 लाख ‘अनमैप्ड’ वोटरों की अग्निपरीक्षा शुरू

इस अभियान के पहले चरण में उन 32 लाख लोगों की सुनवाई की जा रही है, जिनका रिकॉर्ड साल 2002 की पुरानी मतदाता सूची से मेल नहीं खाता है। मुख्य चुनाव अधिकारी (CEO) के कार्यालय के मुताबिक, इन लोगों को ‘अनमैप्ड’ श्रेणी में रखा गया है। इसका मतलब है कि ये वे (Voter Identification Process) से गुजरने वाले नागरिक हैं, जो अपने या अपने पूर्वजों के नाम को 2002 के डेटा से जोड़ने में विफल रहे हैं। शनिवार से शुरू हुई यह सुनवाई जिला मजिस्ट्रेट कार्यालयों, कॉलेजों और सरकारी स्कूलों में युद्ध स्तर पर संचालित की जा रही है।

आधार कार्ड पर चुनाव आयोग का बड़ा और सख्त फैसला

सुनवाई के दौरान पहचान पत्र को लेकर नियमों को बेहद कड़ा कर दिया गया है। चुनाव आयोग ने साफ कर दिया है कि वह पहचान और पते के सबूत के तौर पर आधार कार्ड सहित 12 मान्यता प्राप्त दस्तावेजों को स्वीकार करेगा। हालांकि, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि (Standalone Identity Documents) के रूप में केवल आधार कार्ड को स्वीकार नहीं किया जाएगा। मतदाताओं को आधार के साथ कम से कम एक अन्य सरकारी दस्तावेज दिखाना अनिवार्य होगा। यह कदम जाली दस्तावेजों के आधार पर मतदाता सूची में सेंधमारी रोकने के लिए उठाया गया है।

बिहार का ‘एसआईआर फॉर्मूला’ अब बंगाल में होगा लागू

पश्चिम बंगाल की इस प्रक्रिया में बिहार के हालिया अनुभवों का भी सहारा लिया जा रहा है। अधिकारियों ने बताया कि बिहार में एसआईआर प्रक्रिया के दौरान तैयार की गई मतदाता सूची को भी एक वैध दस्तावेज के रूप में मान्यता दी जाएगी। लेकिन, इस दौरान (Legal Consequences for Forgery) को लेकर कड़ी चेतावनी भी जारी की गई है। मुख्य चुनाव अधिकारी मनोज कुमार अग्रवाल ने स्पष्ट किया कि यदि कोई भी व्यक्ति नकली या फर्जी दस्तावेज पेश करता पाया गया, तो उसके खिलाफ दंडनीय अपराध के तहत तत्काल कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

माइक्रो-ऑब्जर्वर्स की तीसरी आंख में होगी पूरी सुनवाई

सुनवाई की निष्पक्षता बनाए रखने के लिए चुनाव आयोग ने सुरक्षा और निगरानी का अभूतपूर्व घेरा तैयार किया है। पूरी प्रक्रिया 4,500 से अधिक माइक्रो-ऑब्जर्वर्स की सीधी देखरेख में संपन्न हो रही है। आयोग ने सख्त निर्देश दिए हैं कि (Restricted Access at Centers) के नियमों का कड़ाई से पालन हो। केंद्रों पर केवल अधिकृत अधिकारी जैसे ईआरओ (ERO), एआरओ (ARO) और बीएलओ (BLO) को ही प्रवेश की अनुमति दी गई है। किसी भी बाहरी हस्तक्षेप या राजनीतिक दबाव को रोकने के लिए एक बार तय किए गए केंद्रों और नियमों में बदलाव पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई है।

हर दिन 150 मामलों का निपटारा और पारदर्शिता का लक्ष्य

समय सीमा के भीतर इस विशाल कार्य को पूरा करने के लिए चुनाव आयोग ने अधिकारियों को कड़े टारगेट दिए हैं। प्रत्येक निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ERO) के लिए रोजाना कम से कम 150 मामलों की सुनवाई पूरी करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस (Efficient Electoral Management) का उद्देश्य 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले एक ऐसी मतदाता सूची तैयार करना है, जिसमें रत्ती भर भी अशुद्धि न हो। यह पूरी कवायद पारदर्शिता और सटीकता को केंद्र में रखकर की जा रही है, ताकि किसी भी पात्र नागरिक का वोट न छूटे और किसी अपात्र का नाम शामिल न रहे।

58 लाख नाम हटे: मृत्यु, लापता और पलायन ने बदला समीकरण

एसआईआर की प्रक्रिया के दौरान जो आंकड़े सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले हैं। 2026 की मसौदा मतदाता सूची से अब तक 58 लाख से अधिक नामों को हटाया जा चुका है। इनमें से लगभग 24 लाख मतदाताओं को ‘मृत’ के रूप में चिह्नित किया गया है, जबकि 12 लाख ऐसे हैं जो अपने पंजीकृत पते पर नहीं मिले और उन्हें (Absentee and Shifted Voters) की श्रेणी में डाल दिया गया है। इसके अलावा 20 लाख लोग ऐसे हैं जो स्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं और 1.38 लाख नामों को ‘डुप्लीकेशन’ यानी दोहराव के कारण सूची से बाहर कर दिया गया है।

बंगाल की भावी राजनीति पर इस डिजिटल सफाई का असर

मतदाता सूची में की जा रही यह ‘डिजिटल सफाई’ आने वाले चुनावों में हार-जीत का अंतर तय कर सकती है। बड़ी संख्या में नामों का कटना और 32 लाख लोगों की दोबारा जांच होना राज्य के (Political Landscape in West Bengal) को पूरी तरह बदल सकता है। जहां सत्ता पक्ष इसे लोगों को परेशान करने की साजिश बता रहा है, वहीं विपक्षी दल इसे पारदर्शी चुनाव के लिए जरूरी कदम मान रहे हैं। बहरहाल, 3,234 केंद्रों पर चल रही यह सुनवाई आने वाले दिनों में बंगाल की राजनीति का सबसे बड़ा चर्चा का विषय बनी रहेगी।

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