SIR: मतदाता सूची संशोधन में बीएलओ को धमकियां अब बर्दाश्त नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को दिए कड़े निर्देश
SIR: सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर 2.0) के दौरान बूथ लेवल ऑफिसर्स (बीएलओ) और अन्य चुनाव कर्मियों को मिल रही धमकियों को बेहद गंभीरता से लिया है। मंगलवार को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने साफ कहा कि ऐसी हरकतों से चुनाव प्रक्रिया में अराजकता फैल सकती है और इसे किसी भी कीमत पर रोकना होगा। कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि अगर राज्य सरकारें सहयोग नहीं कर रही हैं या बीएलओ को डराया-धमकाया जा रहा है तो तुरंत अदालत को सूचित करें, जरूरी निर्देश जारी किए जाएंगे।

धमकियों के मामलों में तुरंत कार्रवाई का आदेश
बेंच ने चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी से स्पष्ट कहा कि बीएलओ के काम में रुकावट और सहयोग न मिलने की हर शिकायत कोर्ट के सामने लाएं। जस्टिस सूर्यकांत ने चेतावनी भरे लहजे में कहा, “इन मामलों को नजरअंदाज किया गया तो पूरे सिस्टम में अव्यवस्था फैल जाएगी।” कोर्ट ने यह भी माना कि वोटर लिस्ट को दुरुस्त करने का यह काम बेहद महत्वपूर्ण है और इसमें लगे कर्मचारियों की सुरक्षा सबसे ऊपर है।
पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा तनाव
सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल का मामला सबसे ज्यादा चर्चा में रहा। वहां बीएलओ को लगातार धमकियां मिल रही हैं। कुछ जगहों पर तो उन्हें घर-घर जाकर वोटरों की जानकारी लेने से रोका जा रहा है। कोर्ट को बताया गया कि कई बीएलओ इतने डरे हुए हैं कि काम छोड़ने की सोच रहे हैं। जस्टिस बागची ने टिप्पणी की कि यह काम डेस्क जॉब नहीं है, इसमें कर्मचारियों को घर-घर जाना पड़ता है, फॉर्म भरना पड़ता है और फिर डेटा ऑनलाइन अपलोड करना होता है। उन्होंने कहा, “यह जितना आसान लगता है, उतना है नहीं।”
पुलिस को अपने नियंत्रण में लेने की मजबूरी
चुनाव आयोग की तरफ से राकेश द्विवेदी ने कोर्ट को बताया कि अगर हालात और बिगड़े तो आयोग के पास पुलिस को अपने डेप्युटेशन पर लेने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा। अभी तक चुनाव प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है, इसलिए पुलिस राज्य सरकार के अधीन है। लेकिन बीएलओ की सुरक्षा के लिए मजबूरन यह कदम उठाना पड़ सकता है। कोर्ट ने इस बात को गंभीरता से लिया और कहा कि चुनाव आयोग को अपने अधिकारों का पूरा इस्तेमाल करना चाहिए।
बीएलओ के आत्महत्या करने की अफवाहें खारिज
पश्चिम बंगाल में कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा था कि धमकियों से तंग आकर बीएलओ आत्महत्या कर रहे हैं। चुनाव आयोग के वकील ने इन बातों को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने बताया कि एक बीएलओ को सिर्फ 30-35 वोटरों के छह-सात घरों की जांच करनी होती है, इतना काम किसी के लिए जान लेने लायक नहीं है। कोर्ट ने भी राहत जताई कि ऐसी कोई पुष्ट घटना सामने नहीं आई है।
याचिकाकर्ताओं ने मांगी थी सुरक्षा
याचिका सनातनी संसद और अन्य लोगों की तरफ से दायर की गई थी। उनके वकील वी. गिरी ने कोर्ट को बताया कि कई राज्यों में बीएलओ के साथ मारपीट और धमकियां आम हो गई हैं। उन्होंने चुनाव आयोग से इन कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए ठोस इंतजाम करने की मांग की। कोर्ट ने उनकी बातों को सुना और चुनाव आयोग को हर हाल में कर्मचारियों का मनोबल बनाए रखने को कहा।
इंडिगो संकट पर सुनवाई से इनकार
इसी दौरान एक दूसरी याचिका में इंडिगो एयरलाइंस के मौजूदा संकट पर तुरंत सुनवाई की मांग की गई थी। कोर्ट ने साफ इनकार कर दिया और कहा, “हम अदालत हैं, एयरलाइन कंपनी नहीं चला सकते।” यह टिप्पणी सुनकर कोर्ट रूम में मौजूद लोग मुस्कुराए भी।
सुप्रीम कोर्ट का यह रुख स्पष्ट करता है कि मतदाता सूची को साफ-सुथरा रखना लोकतंत्र की बुनियाद है और इसके लिए काम करने वाले हर कर्मचारी को पूरी सुरक्षा मिलनी चाहिए। अगर राज्य सरकारें सहयोग नहीं करेंगी तो केंद्र के माध्यम से भी सख्त कदम उठाए जा सकते हैं। आने वाले दिनों में देखना होगा कि चुनाव आयोग इन धमकियों से कैसे निपटता है और वोटर लिस्ट का संशोधन समय पर पूरा हो पाता है या नहीं।



