Shashi Tharoor Congress : सामने आई शशि थरूर की अहम बैठक से ग़ैर-हाज़िर रहने की बड़ी वजह,
Shashi Tharoor Congress : कांग्रेस सांसद शशि थरूर एक बार फिर चर्चा के केंद्र में हैं। राहुल गांधी की अध्यक्षता में हुई कांग्रेस लोकसभा सांसदों की बैठक में तिरुवनंतपुरम के सांसद थरूर अनुपस्थित रहे। पार्टी सूत्रों के अनुसार उन्होंने पहले ही अपनी गैरमौजूदगी की जानकारी दे दी थी, लेकिन राजनीतिक हलकों में उनकी इस अनुपस्थिति (politics) को लेकर फिर से अटकलें तेज हो गई हैं। थरूर के साथ-साथ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और चंडीगढ़ से सांसद मनीष तिवारी भी इस बैठक का हिस्सा नहीं बने।

कोलकाता के कार्यक्रम में व्यस्त थे शशि थरूर
थरूर की सोशल मीडिया टाइमलाइन के अनुसार वे बीती रात कोलकाता में प्रभा खेतान फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक साहित्यिक कार्यक्रम में शामिल हुए। यह पहली बार नहीं है जब थरूर किसी महत्वपूर्ण पार्टी बैठक से अनुपस्थित पाए गए हों। इससे पहले भी वे कांग्रेस की कई अहम रणनीतिक बैठकों में शामिल नहीं हो सके थे, जिसने पार्टी नेतृत्व को चिंतित किया है। उन्होंने स्पष्ट किया था कि कभी-कभी उनका शेड्यूल (engagement) अचानक बदल जाता है, जिससे दिल्ली लौटना संभव नहीं हो पाता।
रणनीतिक समूह की बैठक से गैरहाजिरी पर सफाई दे चुके हैं थरूर
कुछ दिनों पहले शशि थरूर कांग्रेस की 1 दिसंबर को आयोजित रणनीतिक समूह की बैठक में भी नहीं पहुंचे थे। तब उन्होंने साफ किया था कि उन्होंने बैठक जानबूझकर नहीं छोड़ी, बल्कि वह उस समय केरल से दिल्ली लौट रहे विमान में थे। उन्होंने बयान दिया था, “मैंने बैठक नहीं छोड़ी थी; मैं फ्लाइट में था।” इस स्पष्टीकरण के बाद भी पार्टी में यह सवाल बना रहा कि आखिर थरूर का रवैया (participation) बार-बार पार्टी कार्यक्रमों से अलग क्यों दिखाई देता है।
अंदरूनी समीकरणों पर सवाल और बढ़ती चिंताएँ
थरूर की लगातार अनुपस्थिति पर कई राजनीतिक विश्लेषक कांग्रेस के आंतरिक समीकरणों में बदलाव की संभावना को लेकर सवाल उठा रहे हैं। कुछ वरिष्ठ नेता मानते हैं कि थरूर की सक्रियता अक्सर पार्टी लाइन से थोड़ी अलग दिखती है, जो भविष्य में रोचक राजनीतिक बदलावों की ओर संकेत कर सकती है। ऐसे में उनकी यह गैरहाजिरी (speculation) कांग्रेस की आंतरिक रणनीतिक सोच के लिए नई चुनौती बनकर उभरी है।
सोनिया गांधी की बैठक से भी रहे थे नदारद
थरूर की अनुपस्थिति का सिलसिला यहीं तक सीमित नहीं रहा। सोनिया गांधी की अध्यक्षता में हुई एक महत्वपूर्ण बैठक—जिसमें कांग्रेस की शीतकालीन सत्र की रणनीति तैयार की जानी थी—उससे भी थरूर नदारद थे। राजनीतिक गलियारों में इस पर खास चर्चा हुई। थरूर के ऑफिस की ओर से स्पष्टीकरण दिया गया कि सांसद अपनी 90 वर्षीय मां के साथ यात्रा कर रहे थे, जिसके कारण समय पर दिल्ली पहुंचना संभव नहीं था। यह परिस्थिति उनके परिवार (responsibility) से जुड़ी थी, इसलिए पार्टी ने उनकी अनुपलब्धता को समझने का संकेत दिया।
एसआईआर बैठक में भी गैरहाजिरी हुई थी चर्चा का विषय
इससे पहले थरूर स्वास्थ्य कारणों से एसआईआर (स्पेशल इंटेंसिव रिव्यू) बैठक में शामिल नहीं हुए थे। यह बैठक पार्टी की नीतिगत समीक्षा के लिए बेहद अहम मानी जा रही थी। उनकी लगातार अनुपस्थिति ने कुछ लोगों को यह कहने पर मजबूर किया कि थरूर चाहे पार्टी के वरिष्ठ नेता हों, लेकिन उनकी प्राथमिकताएँ कभी-कभी संगठन की अपेक्षाओं से मेल नहीं खातीं। उनका व्यवहार (consistency) इसी कारण से अक्सर सुर्खियाँ बटोरता रहता है।
केसी वेणुगोपाल भी बैठक से रहे दूर, पर थरूर चर्चा में अधिक
दिलचस्प यह है कि कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल भी उसी बैठक में उपस्थित नहीं हो सके थे क्योंकि वे केरल में स्थानीय निकाय चुनाव प्रचार में व्यस्त थे। लेकिन चर्चा केवल थरूर पर ज्यादा केंद्रित रही। कारण साफ है—थरूर की हर गैरमौजूदगी राजनीतिक बहस को जन्म देती है, जबकि वेणुगोपाल की अनुपस्थिति संगठनात्मक कार्यभार (campaign) से जुड़ी मानी जाती है।
पुतिन के डिनर में थरूर की मौजूदगी ने बढ़ाया विवाद
कुछ दिनों पहले शशि थरूर तब भी सुर्खियों में थे जब वे राष्ट्रपति भवन में आयोजित रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सम्मान में दिए गए राज्य भोज में एकमात्र कांग्रेस नेता के रूप में उपस्थित थे। इस पर कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने हल्के व्यंग्य से कहा था, “जब मेरे नेता नहीं बुलाए जाते और मैं बुलाया जाता हूं, तो समझना चाहिए कि खेल कौन और क्यों खेल रहा है।” इस बयान ने पार्टी के भीतर एक नए बहस (controversy) को जन्म दिया था।
क्या है कांग्रेस में थरूर की भूमिका पर उठता सवाल?
थरूर की बार-बार गैरमौजूदगी और दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति ने पार्टी के भीतर नए सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह संकेत है कि थरूर की भूमिका कांग्रेस में बदल रही है? क्या उन्हें पार्टी के भीतर पर्याप्त महत्व नहीं मिल रहा, या वे खुद को व्यापक राजनीतिक स्पेस में स्थापित करने की योजना बना रहे हैं? इन अटकलों ने कांग्रेस की रणनीति (internal-dynamics) को और जटिल बना दिया है।
कांग्रेस की चिंताएं और थरूर की राजनीतिक शैली
कई कांग्रेस नेता मानते हैं कि शशि थरूर एक बौद्धिक, आधुनिक और ग्लोबल पर्सनालिटी वाले नेता हैं, जिनकी कार्यशैली पारंपरिक राजनीति से थोड़ी अलग है। अक्सर वे पार्टी लाइन से हटकर विचार प्रकट करते हैं, पुस्तकों, कार्यक्रमों और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय रहते हैं। उनके प्रशंसक इसे उनका आधुनिकता (leadership-style) कहते हैं, वहीं कुछ लोग इसे पार्टी के भीतर ‘डिस्कनेक्ट’ का संकेत मानते हैं।
बैठकों से अनुपस्थित रहने के राजनीतिक मायने
थरूर की अनुपस्थिति चाहे व्यक्तिगत कारणों से हो या व्यस्तताओं की वजह से, लेकिन इसका राजनीतिक असर जरूर होता है। पार्टी के नेता यह भी समझते हैं कि जनप्रतिनिधि होने के नाते उनकी जिम्मेदारी प्राथमिक रूप से जनता और संसद के प्रति है। इसके बावजूद कांग्रेस में यह चर्चा तेज है कि क्या थरूर की यह दूरी (engagement-level) भविष्य में किसी नए समीकरण की ओर इशारा करती है।
कांग्रेस के लिए चुनौती और थरूर के लिए अवसर?
थरूर की स्थिति एक तरफ पार्टी के लिए चुनौती है, तो दूसरी तरफ उनके लिए अवसर। वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर सक्रिय हैं और युवा वर्ग के बीच लोकप्रिय हैं। लेकिन पार्टी की अपेक्षाओं के अनुसार उनकी निरंतर अनुपस्थिति अंततः कांग्रेस की रणनीतिक और संगठनात्मक एकजुटता (cohesion) पर असर डाल सकती है। ऐसे में समय बताएगा कि थरूर कांग्रेस के भीतर अपनी भूमिका को कैसे दिशा देंगे।



