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RSS Ideology and Politics: क्या भाजपा और संघ के रास्ते अलग हैं, मोहन भागवत ने तोड़ी वर्षों पुरानी चुप्पी…

RSS Ideology and Politics: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने रविवार को कोलकाता की धरती से एक ऐसी चर्चा को जन्म दे दिया है, जिसने देश के राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। संघ के शताब्दी समारोह के उपलक्ष्य में आयोजित ‘आरएसएस 100 व्याख्यान माला’ को संबोधित करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि संगठन का अपना कोई (Political Agenda Framework) नहीं है। भागवत ने जोर देकर कहा कि संघ को समझने के लिए उसे तुलनात्मक ढांचों से बाहर निकलकर देखना होगा, तभी इसकी वास्तविक प्रकृति को समझा जा सकता है।

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भाजपा के चश्मे से संघ को देखना बड़ी भूल

अक्सर जनता और राजनीतिक विश्लेषक आरएसएस को भारतीय जनता पार्टी के पूरक के तौर पर देखते हैं, लेकिन भागवत ने इसे एक बहुत बड़ी गलतफहमी करार दिया। उन्होंने कहा कि (Institutional Autonomy Analysis) के नजरिए से देखें तो भाजपा और संघ दो अलग-अलग भूमिकाओं वाले संगठन हैं। हालांकि उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि भाजपा के कई शीर्ष नेताओं की वैचारिक जड़ें संघ में हो सकती हैं, लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि संघ राजनीति के मैदान में सक्रिय है।

अनुभव से ही समझा जा सकता है संघ का स्वरूप

मोहन भागवत ने अपने संबोधन में कहा कि अगर कोई व्यक्ति संघ को मात्र एक सेवा संगठन या राजनीतिक इकाई मानता है, तो वह गलती कर रहा है। उनके अनुसार, संघ कोई वस्तु नहीं बल्कि एक अनुभव है। (Social Service Experience) के माध्यम से ही संगठन की गहराई को महसूस किया जा सकता है। उन्होंने आलोचकों और जिज्ञासुओं से आग्रह किया कि वे दूसरों की बातों में आने के बजाय स्वयं संघ के कार्यों को देखें और फिर अपनी कोई राय कायम करें।

हिंदू समाज की सुरक्षा और एकता पर जोर

कोलकाता के साइंस सिटी ऑडिटोरियम में बोलते हुए सरसंघचालक ने स्पष्ट किया कि आरएसएस का एकमात्र और प्राथमिक उद्देश्य हिंदू समाज की भलाई, सुरक्षा और संगठन है। उन्होंने कहा कि (Hindu Community Unity) के लिए काम करने का मतलब यह नहीं है कि संगठन किसी के विरुद्ध है। संघ राजनीति नहीं करता और न ही उसका समाज में कोई दुश्मन है। संगठन का पूरा ढांचा केवल राष्ट्रीय गौरव और नैतिक मूल्यों से ओत-प्रोत व्यक्तियों के निर्माण पर टिका हुआ है।

सज्जन शक्ति का निर्माण है मुख्य लक्ष्य

संघ प्रमुख ने ‘सज्जन’ यानी नैतिक रूप से ईमानदार और गुणी व्यक्तियों के निर्माण को संगठन की प्राथमिकता बताया। उन्होंने कहा कि देश को ऐसे नागरिकों की आवश्यकता है जो सेवा और राष्ट्रीय मूल्यों से प्रेरित हों। (Character Building Education) के माध्यम से संघ ऐसे स्वयंसेवक तैयार करना चाहता है जो देश के विकास में निस्वार्थ योगदान दे सकें। भागवत ने कहा कि संगठन के विस्तार से कुछ लोगों के निहित स्वार्थों को ठेस लग सकती है, लेकिन संघ किसी के साथ टकराव की मानसिकता नहीं रखता।

मुस्लिम विरोधी होने के आरोपों का खंडन

आरएसएस पर अक्सर लगने वाले मुस्लिम विरोधी होने के आरोपों को भागवत ने पूरी तरह निराधार बताया। उन्होंने कहा कि ऐसी धारणाएं केवल मनगढ़ंत कहानियों पर आधारित हैं, तथ्यों पर नहीं। (Religious Inclusion Myth) को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि जो लोग संघ के करीब आए हैं, उन्होंने पाया है कि हम कट्टर राष्ट्रवादी जरूर हैं, लेकिन किसी समुदाय विशेष के दुश्मन नहीं हैं। संघ का कार्य पूरी तरह पारदर्शी है और इसमें छिपाने जैसा कुछ भी नहीं है।

विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर भारत

मोहन भागवत ने विश्वास जताया कि भारत एक बार फिर ‘विश्वगुरु’ के पद पर आसीन होगा। समाज को उस ऐतिहासिक भूमिका के लिए तैयार करना ही संघ का परम कर्तव्य है। (National Pride Restoration) के इस मिशन में संघ समाज को अपनी भूली हुई सांस्कृतिक और सामाजिक जड़ों की ओर लौटने का आह्वान कर रहा है। उन्होंने कहा कि जब समाज संगठित और जागरूक होगा, तभी राष्ट्र परम वैभव को प्राप्त कर सकेगा।

बंगाल की विरासत और सामाजिक सुधार

अपने भाषण के दौरान भागवत ने पश्चिम बंगाल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को नमन किया। उन्होंने स्वामी विवेकानंद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और राजा राम मोहन रॉय जैसी महान हस्तियों का स्मरण किया। विशेष रूप से (Social Reform Legacy) का जिक्र करते हुए उन्होंने राजा राम मोहन रॉय की प्रशंसा की और कहा कि आरएसएस उसी सामाजिक बदलाव की विरासत को आगे बढ़ाना चाहता है। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे अफवाहों के बजाय तथ्यों के आधार पर अपनी धारणाएं बनाएं।

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