Mumbai Pigeon Feeding Fine News: अब जेब पर भारी पड़ सकता है कबूतरों को दाना डालना, कोर्ट ने लिया ये कड़ा फैसला
Mumbai Pigeon Feeding Fine News: भारतीय समाज में पक्षियों को दाना डालना पुण्य का काम माना जाता है, लेकिन मुंबई की एक अदालत ने इस परंपरा और कानून के बीच की लकीर को स्पष्ट कर दिया है। राह चलते कबूतरों को दाना डालना अब आपके लिए कानूनी मुसीबत (Legal Consequences for Feeding Birds) का सबब बन सकता है। हाल ही में मुंबई की एक कोर्ट ने सार्वजनिक स्थान पर कबूतरों को दाना खिलाने के मामले में एक व्यवसायी को दोषी करार देते हुए उन पर 5000 रुपये का जुर्माना ठोक दिया है। यह फैसला उन लोगों के लिए एक बड़ी चेतावनी है जो अनजाने में सार्वजनिक स्वास्थ्य नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं।
बीएमसी की पाबंदी और सार्वजनिक स्वास्थ्य का हवाला
अदालत का यह कड़ा रुख अचानक नहीं आया है, बल्कि इसके पीछे बृहन्मुंबई महानगर पालिका (BMC) के वे सख्त नियम हैं जो कुछ महीनों पहले लागू किए गए थे। बीएमसी ने शहर के अधिकांश हिस्सों में (Public Health Safety Rules) कबूतरों को दाना खिलाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। प्रशासन का मानना है कि कबूतरों के जमावड़े से फैलने वाली गंदगी न केवल जन असुविधा पैदा करती है, बल्कि यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा भी है। शहर की साफ-सफाई और संक्रामक बीमारियों को रोकने के लिए यह कदम उठाना अनिवार्य हो गया था।
माहिम के बंद कबूतरखाने में पकड़ा गया उल्लंघनकर्ता
यह मामला दादर के रहने वाले 52 वर्षीय नितिन शेठ से जुड़ा है, जिन्हें कानून की अनदेखी करना काफी महंगा पड़ा। उन्हें अगस्त के महीने में माहिम इलाके में स्थित एक (Pigeon Feeding Restriction Area) बंद हो चुके पुराने कबूतरखाना के पास कबूतरों को दाना खिलाते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया था। जब यह मामला अदालत पहुँचा, तो व्यवसायी ने अपना जुर्म कबूल कर लिया और अदालत से रियायत देने की गुहार लगाई। हालांकि, कानून के उल्लंघन को देखते हुए अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट वी.यू. मिसल ने इस पर सख्त रुख अपनाया।
सरकारी आदेश की अवहेलना पर कोर्ट की तल्ख टिप्पणी
बांद्रा स्थित अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने 22 दिसंबर को अपना फैसला सुनाते हुए नितिन शेठ को दोषी ठहराया। मजिस्ट्रेट ने स्पष्ट किया कि सार्वजनिक स्थानों पर (Government Order Compliance) पक्षियों को इस तरह दाना डालना सीधे तौर पर सरकारी आदेशों का उल्लंघन है। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि इस तरह के कृत्य से मानव जीवन, स्वास्थ्य और सुरक्षा को खतरा पैदा होता है। किसी व्यक्ति की निजी आस्था या पुण्य कमाने की इच्छा सार्वजनिक सुरक्षा से ऊपर नहीं हो सकती, विशेषकर तब जब प्रशासन ने इसे प्रतिबंधित कर रखा हो।
बीएनएस की धाराओं के तहत दर्ज हुआ मुकदमा
इस मामले में आरोपी व्यवसायी पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की कई गंभीर धाराओं के तहत कार्रवाई की गई है। उन पर धारा 223(ख) के तहत (BNS Sections and Fines) मुकदमा चलाया गया, जो मानव जीवन या सुरक्षा को खतरे में डालने वाले कृत्यों से संबंधित है। इसके साथ ही उन पर सरकारी आदेश के उल्लंघन का भी आरोप सिद्ध हुआ। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि कानून सभी के लिए समान है और नियमों की अनदेखी करने पर दंड भुगतना ही होगा, चाहे वह कृत्य धार्मिक या परोपकारी भावना से ही क्यों न किया गया हो।
जानलेवा बीमारियों के संक्रमण का बढ़ता खतरा
अदालत ने अपने आदेश में जिस सबसे महत्वपूर्ण बात का जिक्र किया, वह था संक्रामक बीमारियों का फैलाव। व्यवसायी पर बीएनएस की धारा 271 के तहत भी आरोप लगाए गए थे, जो ऐसे (Spread of Dangerous Diseases) लापरवाहीपूर्ण कृत्यों से संबंधित है जिनसे जीवन के लिए खतरनाक बीमारी के संक्रमण फैलने की आशंका होती है। चिकित्सा विशेषज्ञों का भी मानना है कि कबूतरों की बीट और पंखों से अस्थमा और फेफड़ों से जुड़ी कई गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। यही वजह है कि कोर्ट ने इस मामले को केवल एक छोटी सी भूल न मानकर सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रति एक गंभीर लापरवाही माना।
आस्था बनाम जनहित की एक नई कानूनी बहस
मुंबई कोर्ट के इस फैसले ने अब एक नई बहस को जन्म दे दिया है कि क्या व्यक्तिगत आस्था जनहित के नियमों से टकरा सकती है। शहर में कई ऐसे स्थान (Environmental Hygiene Management) हैं जहाँ लोग वर्षों से पक्षियों को दाना डालते आ रहे हैं, लेकिन बढ़ते प्रदूषण और बीमारियों के चलते अब इन परंपराओं पर कानूनी अंकुश लगाया जा रहा है। जुर्माने की यह राशि केवल एक सजा नहीं है, बल्कि नागरिकों को यह समझाने का प्रयास है कि शहरी परिवेश में स्वच्छता बनाए रखना प्रत्येक व्यक्ति की प्राथमिक जिम्मेदारी है।
जागरूक नागरिक ही बदल सकते हैं शहर की तस्वीर
नितिन शेठ पर लगा यह जुर्माना (Mumbai Court Judgement) समाज के लिए एक सबक है कि अब ‘चलता है’ वाला रवैया काम नहीं आएगा। यदि प्रशासन ने किसी गतिविधि पर रोक लगाई है, तो उसके पीछे जन स्वास्थ्य का कोई बड़ा कारण होता है। अब समय आ गया है कि लोग कबूतरों को दाना खिलाने के लिए अधिकृत और सुरक्षित स्थानों का ही चुनाव करें या फिर इन नियमों का पालन करें। केवल जागरूक और जिम्मेदार नागरिक ही मुंबई जैसे घनी आबादी वाले शहर को बीमारियों से मुक्त और स्वच्छ रख सकते हैं।