MGNREGA Name Change: सत्ता के गलियारों में छिड़ा नाम बदलने का संग्राम, क्या मनरेगा का नया स्वरूप बनेगा ‘विकसित भारत’ की नई पहचान
MGNREGA Name Change: मंगलवार का दिन भारतीय संसदीय इतिहास में एक नए वैचारिक संघर्ष का गवाह बना, जब केंद्र सरकार ने मनरेगा के स्वरूप और नाम में बदलाव के लिए विधेयक पेश किया। सदन की कार्यवाही शुरू होते ही विपक्षी दलों ने इस कदम को एक विचारधारा पर दूसरी विचारधारा को थोपने का प्रयास बताते हुए भारी नारेबाजी शुरू कर दी। इस (Parliamentary Proceedings India) के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक देखने को मिली, जिसने विधायी कार्य में बाधा डाली। विपक्षी सांसदों का तर्क था कि यह बदलाव केवल नाम का नहीं, बल्कि महात्मा गांधी की विरासत को धूमिल करने की एक राजनीतिक कोशिश है, जबकि सरकार इसे नए भारत की प्रगतिशील दृष्टि बता रही है।

शिवराज सिंह चौहान की दलील और ‘MGNREGA Name Change’ बिल का उदय
हंगामे के बीच केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मोर्चा संभाला और दृढ़ता के साथ बिल का बचाव करते हुए उसे सदन के पटल पर रखा। उन्होंने विनम्रता लेकिन स्पष्टता के साथ सदन से आग्रह किया कि उन्हें ‘विकसित भारत-गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)’ यानी VB-G RAM G बिल 2025 को स्थापित करने की अनुमति प्रदान की जाए। मंत्री ने स्पष्ट किया कि यह (New Employment Scheme 2025) केवल कागजी बदलाव नहीं है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि योजना के संक्षिप्त नाम में ‘राम’ शब्द का आना सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है, जिसे लेकर विपक्ष की आपत्ति समझ से परे है।
गांधी और दीनदयाल के अंत्योदय संकल्प का संगम
अपने संबोधन के दौरान शिवराज सिंह चौहान ने महात्मा गांधी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन दर्शन का जिक्र करते हुए एक भावनात्मक सेतु बनाने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि गांधी जी और दीनदयाल जी, दोनों का ही यह अटूट संकल्प था कि समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति का कल्याण सबसे पहले सुनिश्चित किया जाना चाहिए। सरकार की (Social Welfare Programs) का मूल आधार भी यही अंत्योदय की भावना है, जो अब इस नए मिशन के माध्यम से और अधिक प्रभावी ढंग से धरातल पर उतरेगी। उन्होंने सदन को विश्वास दिलाया कि यह नया विधेयक गांधी जी के ग्राम स्वराज के सपने को आधुनिक तकनीक और विकसित भारत के संकल्प के साथ जोड़ने का एक माध्यम बनेगा।
रोजगार की गारंटी का विस्तार: 100 से बढ़कर अब 125 दिन
इस नए विधेयक की सबसे बड़ी विशेषता रोजगार के दिनों में किया गया महत्वपूर्ण इजाफा है, जो सीधे तौर पर ग्रामीण मजदूरों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करेगा। शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की कि नई योजना के तहत अब मजदूरों को साल में 100 दिन के स्थान पर 125 दिन के रोजगार की गारंटी दी जाएगी, जो (Rural Employment Guarantee) के क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव है। रोजगार के दिनों में यह 25 प्रतिशत की वृद्धि न केवल श्रमिकों की क्रय शक्ति बढ़ाएगी, बल्कि पलायन जैसी गंभीर समस्याओं पर भी अंकुश लगाने में सहायक होगी। सरकार का मानना है कि अतिरिक्त दिनों का रोजगार ग्रामीण क्षेत्रों में परिसंपत्तियों के निर्माण में तेजी लाएगा।
नाम बदलने के इतिहास पर वार और विपक्ष को करारा जवाब
विपक्ष द्वारा नाम बदलने को लेकर किए जा रहे तीखे प्रहारों का जवाब देते हुए कृषि मंत्री ने इतिहास के पन्नों को पलटा और कांग्रेस को उसके पुराने फैसलों की याद दिलाई। उन्होंने सवाल किया कि जब पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने ‘जवाहर रोजगार योजना’ का नाम बदलकर उसे नया स्वरूप दिया था, तो क्या उसे पंडित जवाहर लाल नेहरू का अपमान माना गया था? उन्होंने स्पष्ट किया कि (Political Debates in India) में अक्सर योजनाओं का नवीनीकरण उनकी उपयोगिता बढ़ाने के लिए किया जाता है। उन्होंने विपक्ष पर तंज कसते हुए कहा कि सुधार और परिवर्तन प्रकृति का नियम है, और इसे व्यक्तिगत अपमान से जोड़ना केवल राजनीतिक रोटियां सेकने जैसा है।
महात्मा गांधी की भावनाओं का सम्मान और ‘राम’ नाम पर आपत्ति
शिवराज सिंह चौहान ने अपने भाषण के समापन की ओर बढ़ते हुए एक बार फिर यह दोहराया कि ‘विकसित भारत-गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)’ पूरी तरह से बापू के आदर्शों के अनुरूप है। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि आखिर क्यों कुछ लोगों को योजना के नाम में ‘राम’ शब्द आने से इतनी परेशानी हो रही है। उन्होंने तर्क दिया कि (Government Policy Implementation) में ‘राम’ का अर्थ लोक-कल्याण और न्यायपूर्ण शासन से है, जो भारतीय संस्कृति के मूल में है। उनके अनुसार, यह बिल ग्रामीण भारत की आजीविका को सुरक्षित करने के साथ-साथ राष्ट्रीय अस्मिता को भी मजबूत करने वाला साबित होगा।
भविष्य की राह और ग्रामीण भारत की नई उम्मीदें
भले ही सदन में इस बिल को लेकर गतिरोध बना हुआ है, लेकिन ग्रामीण भारत के लिए यह एक नई उम्मीद की किरण की तरह देखा जा रहा है। रोजगार के दिनों की संख्या में बढ़ोतरी और आजीविका मिशन के साथ इसका जुड़ाव दूरगामी परिणाम दे सकता है। सरकार इस (Livelihood Mission 2025) के माध्यम से यह संदेश देना चाहती है कि वह पुरानी योजनाओं को केवल ढो नहीं रही, बल्कि उन्हें नया जीवन देकर अधिक उपयोगी बना रही है। अब सबकी नजरें इस बात पर टिकी हैं कि संसद में इस पर आगे की चर्चा क्या मोड़ लेती है और यह बिल कानून का रूप लेकर धरातल पर किस तरह का सामाजिक-आर्थिक बदलाव लाने में सफल रहता है।



