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Kashmir Pandit Genocide: 35 साल बाद खुलेगा पंडित सरला भट्ट का बर्बर कत्लनामा, आतंकियों ने किडनैप कर दिया था भयानक अंजाम…

Kashmir Pandit Genocide: 1990 का दशक कश्मीर के इतिहास का सबसे भयावह और हिंसक दौर माना जाता है। इसी समय घाटी की आबोहवा में दहशत, हिंसा और अमानवीय क्रूरता घुलने लगी थी (conflict-era)। इस दौर में कश्मीरी पंडितों को चुन-चुनकर निशाना बनाया गया, उन्हें धमकाया गया, घर जलाए गए और बड़े पैमाने पर पलायन के लिए मजबूर किया गया।

Kashmir Pandit Genocide
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पलायन की वे काली रातें जो आज भी डराती हैं

कश्मीरी पंडितों का बड़े पैमाने पर पलायन किसी प्राकृतिक घटना का परिणाम नहीं था, बल्कि सुनियोजित नरसंहार और आतंक का नतीजा था (mass-exodus)। उन रातों की दिल दहला देने वाली चीखें आज भी कश्मीर की मिट्टी में गूंजती हैं। हजारों परिवार अपनी जमीन, जड़ें और पहचान छोड़कर भागने को मजबूर हुए।


सरला भट्ट—कश्मीरी त्रासदी का एक अमिट नाम

इन दर्दनाक कहानियों में 27 वर्षीय नर्स सरला भट्ट का नाम एक प्रतीक बन चुका है (tragic-story)। सरला भट्ट की हत्या उस बर्बरता की हद को दर्शाती है जो उस वक्त घाटी में शासन कर रही थी। अब वर्षों बाद, इसी केस सहित कई मामलों की फाइलें दोबारा खोली गई हैं।


दफ्न फाइलें अब खुलने लगीं, न्याय की उम्मीद जगी

कश्मीर में वर्षों तक फाइलों में बंद पड़े कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार और आतंकी हिंसा के केस अब फिर से जांच के दायरे में आ रहे हैं (reinvestigation)। लगभग 15 पुराने मामलों की फाइलें फिर खोली गई हैं और आरोपियों की गिरफ्तारी भी शुरू हो चुकी है। सरला भट्ट के केस की जांच भी एक बार फिर तेज कर दी गई है।


कौन थी सरला भट्ट?

सरला भट्ट अनंतनाग की रहने वाली एक युवा, साहसी और कर्तव्यनिष्ठ नर्स थीं (brave-woman)। साल 1990 की शुरुआत में जब आतंकियों ने कश्मीरी पंडितों को नौकरी छोड़ने और घाटी खाली करने के आदेश दिए, तब सरला ने इनकार कर दिया। यह इनकार उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी कीमत लेकर आया।


धमकियों के बीच सरला का साहस—और फिर अपहरण

सरला ने आतंकियों की चेतावनियों को नजरअंदाज करते हुए खुलेआम कहा था कि वह कश्मीर नहीं छोड़ेंगी (resistance)। इसी साहस ने आतंकियों को नाराज कर दिया। उन्होंने सरला का अपहरण किया, गैंगरेप किया और फिर बेरहमी से गोलियां मारकर हत्या कर दी। शरीर के पास एक नोट मिला जिसमें सरला को पुलिस का मुखबिर बताया गया था।


हत्याकांड के बाद परिवार पर भी बना दबाव

सरला भट्ट की हत्या के बाद भी आतंकियों का कहर बंद नहीं हुआ। उनके परिवार को अंतिम संस्कार में शामिल न होने की धमकी दी गई (intimidation)। 1990 में दर्ज एफआईआर (56/1990) आज भी निगीन पुलिस स्टेशन में मौजूद है, लेकिन तीन दशक तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।


एनआईए की एंट्री के बाद जांच में आई तेजी

पिछले साल यह केस एनआईए को सौंपा गया, जिसके बाद नए सिरे से जांच शुरू हुई (NIA-probe)। यासीन मलिक समेत कई कुख्यात आतंकियों के ठिकानों पर छापेमारी की गई। माना जा रहा है कि अब केस की असली परतें खुलने वाली हैं, और न्याय की दिशा में बड़ा कदम उठ सकता है।


कश्मीरी हिंदुओं के कई कत्लेआम की फाइलें दोबारा खुलीं

सिर्फ सरला भट्ट ही नहीं, बल्कि कश्मीरी हिंदुओं से जुड़े कई नरसंहारों की फाइलें भी फिर से खुल रही हैं (case-files)। इनमें प्रमुख मामले हैं:

  • 1990: नर्स सरला भट्ट का अपहरण और जघन्य हत्या।
  • 1996: श्रीनगर में सुरक्षाबलों पर फायरिंग।
  • 1997: संग्रामपोरा (बड़गाम) में 7 कश्मीरी हिंदुओं का नरसंहार।
  • 1998: बंधहामा (गांदरबल) में 23 कश्मीरी हिंदुओं का नरसंहार।
  • 1990: अनंतनाग में कवि सर्वानंद कौल प्रेमी और उनके बेटे की क्रूर हत्या।

थानों को दोबारा जांच के आदेश, कई आरोपी रडार पर

सूत्रों के मुताबिक, कश्मीर के सभी थाना प्रभारियों को लंबित पड़े आतंकी मामलों की फाइलें निकालकर जांच रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं (law-enforcement)। वांछित आरोपियों की गिरफ्तारी का आदेश दिया गया है। जिन आरोपितों को जमानत मिली हुई है, उनकी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी जा रही है और जरूरत पड़ने पर उनकी जमानत रद्द की जाएगी।


न्याय की राह कठिन, लेकिन उम्मीद ज़िंदा

तीन दशक बाद भी कश्मीरी पंडितों की आंखों में जलती उम्मीद आज भी बुझी नहीं है (justice-seeking)। दशकों पुरानी फाइलों का दोबारा खुलना, जांच का तेज होना और आरोपियों की धरपकड़—ये सब संकेत हैं कि न्याय देर से ही सही, पर पहुंच सकता है।


कश्मीर की आत्मा आज भी पूछती है—क्या दोषियों को सजा मिलेगी?

1990 के उस काले दशक ने जो घाव दिए हैं, वे आज भी ताज़ा हैं (historic-wounds)। सरला भट्ट का केस न सिर्फ एक हत्या की कहानी है, बल्कि उस त्रासदी का प्रतीक है जिसने हजारों कश्मीरी परिवारों को बेघर, बेसहारा और बिखरा हुआ छोड़ दिया।

 

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