राष्ट्रीय

कन्‍नड़ लेखिका बानु मुश्‍ताक के नाम हुआ ये बड़ा सम्मान, समाज के इस पक्ष को कर चुकी हैं उजागर

77 वर्ष की बानु मुश्ताक और ट्रांसलेटर दीपा भष्ठी को मंगलवार को उनकी पुस्तक ‘हार्ट लैम्प’ के लिए इंटरनेशनल बुकर्स प्राइज 2025 से सम्मानित किया गया है.

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अवार्ड के साथ न केवल उन्होंने 50,000 यूरो का प्राइज मनी जीता है बल्कि इतिहास भी रचा है. यह पहला मौका है जब किसी ओरिजनली कन्नड़ में लिखी पुस्तक को यह अवार्ड दिया गया.

पहली बार शॉर्ट स्टोरीज के कलेक्शन को यह अवार्ड मिला है और यह पहला मौका है जब किसी भारतीय ट्रांसलेटर को अनुवाद के लिए बुकर्स सम्मान मिला है. इससे पहले 2022 में ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ के लिए गीतांजली श्री को ये अवार्ड मिला था.

मुस्लिम स्त्रियों की कहानी कहती है ‘हार्ट लैम्प’

‘हार्ट लैम्प’ एडवोकेट और एक्टिविस्ट बानु मुश्ताक की 1990 से 2023 के बीच लिखी 12 शॉर्ट स्टोरीज का कलेक्शन है. इसमें मुसलमान स्त्रियों की रोजमर्रा की जीवन के किस्से हैं. इन कहानियों के जरिए वो पितृसत्‍तात्‍मक सोच, धार्मिक पाबंदियों और लिंगभेद के बारे में बात करती हैं. मुश्ताक अपनी कहानियों के जरिए राष्ट्र की अधिकतर स्त्रियों की उस घुटन को भी बयां करती हैं जो वो अपने घर के भीतर महसूस करती हैं.

वकालत के दौरान मिली प्रेरणा

मुश्ताक कहती हैं कि ये कहानियां लिखने की प्रेरणा उन्हें उनके वकालत के दिनों से मिली. वो जब प्रैक्टिस कर रही थीं तो कई महिलाएं अपने घर की समस्याएं और मुकदमा लेकर उनके पास आया करती थीं. बानु मुश्ताक का जन्म 1948 में कर्नाटक के हासन में हुआ.

कन्नड़ भाषा के ही एक मिशनरी विद्यालय से उन्होंने शुरुआती शिक्षा ली. इसके बाद वो समाज से लड़-झगड़कर यूनिवर्सिटी भी गईं. 26 वर्ष की उम्र में उन्होंने प्रेम-विवाह किया. वो कन्नड़ के अतिरिक्त हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी भाषा की अच्छी जानकार हैं.

महिलाओं के लिए आवाज उठाने पर परिवार को बैन किया

बानु मुश्ताक लंकेश पत्रिके में एक रिपोर्टर के तौर पर काम कर चुकी हैं. इसके अतिरिक्त वो बेंगलुरु में ऑल इण्डिया रेडियो में भी जॉब कर चुकी हैं. 29 वर्ष की उम्र में वो मां बनीं. इसके बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन के दौरान उन्होंने लिखना प्रारम्भ किया. 1999 में उन्हें कर्नाटक साहित्य एकेडमी अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है.

1980 के दौर से ही वो एक्टिविज्म के जरिए अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं. वर्ष 2000 में उनके परिवार को समाज ने बहिष्कृत कर दिया था. मुश्ताक का एक्टिविज्म ही इसकी वजह था. वो मुसलमान स्त्रियों को मस्जिद में घुसने की इजाजत की मांग कर रही थीं. विद्यालयों में मुसलमान बच्चों के हिजाब पहनने की वो पक्षधर रही हैं.

सफलता का श्रेय दादी को- दीपा

‘हार्ट लैंप’ को अंग्रेजी में ट्रांसलेट करने वाली दीपा भश्ती कहती हैं कि उनकी दादी से ही उन्हें पुस्तकों और कहानियों का शौक मिला. दादी दिनभर में 3-4 कहानियां सुना ही देती हैं. वो कभी कहानियों के पात्रों की तरह अभिनय करती तो कभी आवाज बदल-बदलकर अनेकों किरदारों को एकसाथ जीतीं.

दीपा कहती हैं कि मैं आज भी जब दादी के बारे में सोचती हूं तो अचंभित रह जाती हूं. उन्हीं की वजह से आज मैं कहानियां लिख और ट्रांसलेट कर पा रही हूं.

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