सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार ऐसी मामले की सुनवाई पूरी की, जिसकी पैरवी मूक-बधिर वकील ने की…
राष्ट्र में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। अपनी प्रतिभा, मेहनत और जुनून की बदौलत यहां के लोग बातों ही बातों में कई रिकॉर्ड बना लेते हैं। बीते दिनों उच्चतम न्यायालय में भी कुछ ऐसा ही इतिहास बन गया। दरअसल, पहली बार एक वकील, जो स्वयं सुन और बोल नहीं सकती थी, पर इशारों ही इशारों में उसने जजों के सामने अपनी दलील रखी। विगत कुछ दिनों पहली बार उच्चतम न्यायालय में चीफ जस्टिस की खंडपीठ ने पहली बार एक ऐसे मुद्दे की सुनवाई पूरी की, जिसकी पैरवी किसी मूक-बधिर वकील ने सांकेतिक भाषा में की। इसके साथ ही यह सुनवाई उच्चतम न्यायालय के गौरतलब इतिहास का हिस्सा बन गयी। इस कारनामे को साकार किया है बेंगलुरु की 27 वर्षीया मूक-बधिर वकील साराह सन्नी ने। वर्चुअल न्यायालय में अपने पहले मुद्दे की पैरवी कर साराह ने न केवल एक लंबी लकीर खींची हैं, बल्कि कई लोगों के लिए नई राह अख्तियार करते हुए एक रिकॉर्ड बनाया है। इसमें साराह की सहायता दुभाषिया सौरव रॉय चौधरी और उनकी मेंटर संचिता ऐन ने की। आरंभ में औनलाइन न्यायालय के मॉडरेटर ने दुभाषिए को वीडियो ऑन करने की इजाजत नहीं दी थी, पर बाद में चीफ जस्टिस ऑफ इण्डिया (सीजेआई) के आदेश पर उसे भी वर्चुअल न्यायालय के विंडो में आने की इजाजत दे दी गयी। दिव्यांगों को मौका देने के लिए सीजेआइ डीवाई चंद्रचूड़ की इस पहल को मील का पत्थर बताया जा रहा है। अब उच्चतम न्यायालय में साराह के लिए साइन लेंग्वेज इंटरप्रेटर भी नियुक्त कर दिया गया है।
मुश्किल भरा रहा साराह के परिवार का शुरुआती सफर
देश की पहली मूक-बधिर वकील साराह सन्नी का जन्म वर्ष 1996 में चेन्नई में हुआ था। वह अपनी जुड़वा बहन मारिया सन्नी के साथ बधिर पैदा हुई थीं। उनके बड़े भाई प्रतीक भी बधिर हैं। साराह के पिता सन्नी कुरुविला और मां बेट्टी ने प्रारम्भ से ही मन बन लिया था कि वे अपने बच्चे को विशेष विद्यालय में नहीं भेजेंगे। सन्नी जब तक चेन्नई में थे, तब तक उन्होंने बेटे प्रतीक को बाल विद्यालय भेजा। बाद में बेंगलुरु शिफ्ट होने के बाद वे बेटे प्रतीक के एडमिशन के लिए दर्जनों विद्यालयों में गये, पर सभी ने इंकार कर दिया। बाद में एंथनी विद्यालय में दािखला मिला। वहीं, जब आठ वर्ष बाद दो जुड़वा बेटियां हुईं, तो वे उनके दाखिले के लिए भी सामान्य बच्चों के 25-30 विद्यालयों में गये। आखिरकार, क्लूनी कॉन्वेंट में एडमिशन मिला।
दिव्यांग समझ कई कॉलेजों ने दाखिला देने से कर दिया था मना
भले ही साराह बचपन से ही सुन और बोल नहीं सकती थीं, पर उनके माता-पिता ने उन्हें पढ़ाने-लिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद साराह कॉलेज में एडमिशन लेकर आगे पढ़ना चाहती थीं। उन्होंने कई कॉलेजों में कोशिश किया, लेकिन मूक-बधिर होने की वजह से सभी कॉलेजों ने दाखिला देने से साफ इंकार कर दिया। आखिरकार, ज्योति निवास कॉलेज ने दोनों बहनों को दाखिला दे दिया। वहां से दोनों बहनों ने बीकॉम की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद साराह की बहन मारिया सन्नी सीए की पढ़ाई में जुट गयीं, जबकि साराह ने सेंट जोसेफ कॉलेज ऑफ लॉ से एलएलबी की और कोविड महामारी के समय 2021 में प्रैक्टिस प्रारम्भ की। साराह कहती हैं, “हम भाई-बहनों में ये आत्मविश्वास हमारे माता-पिता ने भरा, जिन्होंने हमें पढ़ने के लिए सामान्य विद्यालय भेजा। क्योंकि, वे बराबरी में विश्वास करते हैं। मैं लिप रीडिंग करके क्लास में पढ़ा करती थी। साथ ही मेरी दोस्त मुझे नोट्स लेने में सहायता करती थीं। हालांकि, कुछ ऐसे भी लोग थे जो मजाक बनाते थे, पर मैंने हमेशा ही उन्हें उत्तर दिया।” उनकी मां घर में पढ़ाई में सहायता करती थीं, मगर जब उन्होंने कानून की पढ़ाई प्रारम्भ की, तब वह सहायता नहीं कर पाईं। उनकी एक दोस्त ने विषयों को समझने में सहायता की।
बेंगलुरु की निचली न्यायालय से की करियर की शुरुआत
लॉ पास करने के बाद साराह ने कनार्टक की एक जिला न्यायालय से अपने करियर की आरंभ की। पर उनके लिए ये सरल नहीं था। न्यायालय में जजों ने उन्हें दुभाषिया इस्तेमाल करने से इंकार कर दिया। उनका मानना था कि दुभाषिया को कानूनी समझ नहीं होती है। लिहाजा, साराह लिखकर न्यायालय में बहस किया करती थीं। अभी वह संचिता ऐन की देखरेख में सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर रही हैं।
 
				
