Chhattisgarh Encounter: बस्तर के घने जंगलों में सुरक्षा बलों की बड़ी सफलता 18 माओवादी ढेर, तीन जवान शहीद
Chhattisgarh Encounter: छत्तीसगढ़ के बीजापुर और दंतेवाड़ा की सीमा पर स्थित पश्चिम बस्तर के जंगलों में मंगलवार सुबह शुरू हुई मुठभेड़ बुधवार को भी जारी रही। इस भीषण संघर्ष में अब तक अठारह माओवादियों को मार गिराया गया है जबकि डीआरजी के तीन बहादुर जवान देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए। यह मुठभेड़ माओवादियों के सबसे मजबूत गढ़ माने जाने वाले इलाके में हुई है, जिसे कभी उनकी राजधानी कहा जाता था। सुरक्षा बलों का यह अभियान केंद्र सरकार के 2026 तक नक्सलवाद पूरी तरह खत्म करने के संकल्प का हिस्सा है।

रात भर चला जबरदस्त संघर्ष
मंगलवार शाम तक सुरक्षा बलों ने माओवादी कमांडर वेल्ला सहित बारह नक्सलियों को मार गिराया था। इसके बाद रात भर चले ऑपरेशन में छह और माओवादी मारे गए। मुठभेड़ स्थल से एके-47, एसएलआर, इंसास, एलएमजी और .303 राइफल जैसी आधुनिक राइफलें तथा भारी मात्रा में गोला-बारूद बरामद हुआ है। जवानों ने इन हथियारों को कब्जे में लेकर मुख्यालय की ओर रवाना होना शुरू कर दिया है। मारे गए माओवादियों की शिनाख्त का काम अभी चल रहा है क्योंकि कई बड़े कैडर इस मुठभेड़ में शामिल थे।
तीन वीर जवानों ने दिया सर्वोच्च बलिदान
इस ऑपरेशन में डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड के तीन जांबाज सैनिक शहीद हो गए। इनमें प्रधान आरक्षक मोनू बड़दी, आरक्षक दुकारू गोंडे और जवान रमेश सोड़ी शामिल हैं। दो अन्य जवान घायल हुए हैं लेकिन उनकी हालत स्थिर बताई जा रही है। बीजापुर पुलिस लाइन में शहीदों को श्रद्धांजलि देने का माहौल है। पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारी वहाँ पहुँचकर अंतिम सलामी दे रहे हैं। पूरे बस्तर में शोक की लहर है लेकिन जवानों का हौसला बुलंद है।
कभी माओवादियों का अभेद्य किला था यह इलाका
उत्तर बस्तर का माड़ क्षेत्र और इंद्रावती टाइगर रिजर्व का घना जंगल दशकों तक माओवादियों का सबसे सुरक्षित ठिकाना रहा। यहाँ उनकी सेंट्रल कमेटी की बैठकें होती थीं, बड़े हमले की प्लानिंग होती थी। लेकिन पिछले दो सालों में सुरक्षा बलों ने जिस तरह लगातार दबाव बनाया है, उससे माओवादियों के सारे ठिकाने ध्वस्त हो रहे हैं। अब उनके पास भागने की भी जगह नहीं बची है।
2025 में बस्तर में अब तक 255 माओवादी ढेर
इस साल बस्तर संभाग में सुरक्षा बलों ने कुल 255 माओवादियों को मार गिराया है। इनमें से 236 के शव बरामद हो चुके हैं। बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा और नारायणपुर के जंगलों में की जा रही लगातार घेराबंदी के कारण माओवादी अब खुलकर नहीं घूम पा रहे। बड़े कमांडर हिडमा के मारे जाने के बाद संगठन पूरी तरह बिखर चुका है। कई क्षेत्रीय कमेटी सदस्य या तो मारे जा चुके हैं या सरेंडर कर रहे हैं।
पिछले साल भी रही थी बड़ी कामयाबी
साल 2024 में भी बस्तर में 239 माओवादी मारे गए थे जिनमें 217 के शव मिले थे। यानी सिर्फ दो साल में कुल 494 माओवादी सुरक्षा बलों के हाथों मारे जा चुके हैं। इनमें कई ऐसे कैडर थे जो दस-दस साल से फरार चल रहे थे। माओवादी संगठन के अंदरूनी पत्रों में भी उन्होंने इतने बड़े नुकसान की पुष्टि की है। अब पीएलजीए के कई सदस्य और जनमिलिशिया के लोग हथियार डालकर मुख्यधारा में लौट रहे हैं।
अब भागने की भी राह नहीं बची
जो माओवादी अभी बचे हैं, वे आंध्र-ओडिशा बॉर्डर की तरफ भागने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन सुरक्षा बलों ने सारी सीमाओं को सील कर रखा है। ड्रोन, हेलिकॉप्टर और स्थानीय मुखबिरों की मदद से हर गतिविधि पर नजर रखी जा रही है। नतीजा यह है कि माओवादी अब जंगल में भटक रहे हैं, भोजन और दवाई की भी किल्लत झेल रहे हैं।
बस्तर के आदिवासी अब खुलकर सुरक्षा बलों का साथ दे रहे हैं। गाँव-गाँव में शिविर लग रहे हैं, सड़कें बन रही हैं, स्कूल-हॉस्पिटल खुल रहे हैं। विकास की यह रोशनी माओवाद के अंधेरे को पूरी तरह खत्म करने वाली है। आने वाला साल बस्तर के लिए शांति और समृद्धि का साल होने वाला है।



