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पशुपति पारस को किनारे कर चिराग पर BJP ने इस वजह से जताया भरोसा

बिहार एनडीए में सीट बंटवारे के बाद सियासी उठापटक के बीच चिराग पासवान का कद बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है. बिहार में बीजेपी 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी जबकि जदयू को 16 सीटें दी गई हैं. वहीं चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोजपा (रामविलास) के खाते में 5 सीटें गई है. यह कहीं ना कहीं चिराग पासवान के लिए बड़ी जीत मानी जा सकते हैं. चिराग के चाचा पशुपति पारस को गठबंधन में खाली हाथ रहना पड़ा. उन्हें एक भी सीट नहीं दी गई जिसके बाद उन्होंने मोदी कैबिनेट से अपना त्याग-पत्र भी दे दिया है. इसके बाद वह आगे की रणनीति के लिए पार्टी के नेताओं से चर्चा कर रहे हैं. हालांकि इस सीट बंटवारे से यह साफ हो गया कि कहीं ना कहीं बीजेपी के लिए बिहार में चिराग पासवान ही लीड अभिनेता है.

ऐसे में प्रश्न यह है कि आखिर चिराग पासवान पर बीजेपी ने क्यों भरोसा दिखाया? जब चिराग पासवान की पार्टी का विभाजन हुआ तब बीजेपी ने पशुपति पारस को मंत्री क्यों बनाया? अब बीजेपी पशुपति पारस को किनारे क्यों कर रही है? इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढने से पहले हम यह बता दें कि 2020 में रामविलास पासवान के मृत्यु के बाद चिराग पासवान और पशुपति पारस के बीच दरारें पैदा हो गई थी. 2019 के चुनाव में रामविलास पार्टी के 6 सांसद जीते थे. इनमें से पांच सांसद पशुपति पारस के साथ खड़े रहे. चिराग पासवान पूरी ढंग से भिन्न-भिन्न पड़ गए थे. चुकी सांसदों की संख्या पशुपति पारस के साथ थी इसलिए बीजेपी ने उन्हें ही मंत्री बनाया. लेकिन जमीनी स्तर पर चिराग पासवान ने अपनी लड़ाई जारी रखी.

संकट के समय में भी चिराग पासवान एनडीए का हिस्सा ना होते हुए भी बीजेपी के पक्ष में हमेशा खड़े रहे. फिर चिराग पासवान ने जन आशीर्वाद यात्रा निकाली जिसको अच्छा खासा समर्थन हासिल हुआ. इस यात्रा के जरिए चिराग ने यह बताने की प्रयास की कि वह ही अपने पिता रामविलास पासवान की राजनीति का वास्तविक उत्तराधिकारी हैं. चिराग पासवान लगातार स्वयं को पीएम मोदी का हनुमान बताते रहे. वह मोदी की तुलना ईश्वर राम से भी करते रहे. भाजपा की किसी भी स्टैंड के साथ वह पूरी ढंग से मजबूती से खड़े रहे.

जब बीजेपी ने एनडीए की बैठक बुलाई थी, तब मोदी ने जिस ढंग से चिराग पासवान को गले लगाया था उसके बाद से ही सभी को इस बात का अंदाजा होने लगा था कि कहीं ना कहीं बीजेपी का स्नेह चिराग पासवान के लिए अभी भी बरकरार है. इसके बाद वह लगातार हाजीपुर सीट पर अपना दावा ठोकते रहे. हाजीपुर रामविलास पासवान की कर्मभूमि रही है. ऐसे में 2019 में पशुपति पारस वहां से चुनाव जीतने में सफल हुए थे. हालांकि, 2024 में चिराग हर हाल में हाजीपुर सीट अपने पास रखना चाहते थे. बीजेपी ने उनकी इस मांग को स्वीकार भी कर लिया. बीजेपी को भी पता है कि रामविलास पासवान का जो कोर वोट है वह पशुपति पारस नहीं बल्कि चिराग पासवान के साथ है. पशुपति पारस की तुलना में चिराग पासवान जमीन पर मेहनत करते हैं. लोगों से मिलते जुलते हैं जिसकी वजह से बीजेपी का उन पर भरोसा बना है. चिराग युवा भी हैं.

यह भी बोला जाता है कि वह चिराग पासवान ही थे जिन्होंने रामविलास पासवान को एनडीए के साथ गठबंधन के लिए मनाया था. स्वयं रामविलास पासवान ने एक साक्षात्कार में इसका खुलासा किया था. रामविलास पासवान ने बोला था कि चिराग ने राहुल गांधी को 10 बार टेलीफोन किया था सीट बंटवारे को लेकर लेकिन कोई रिस्पांस नहीं आया था. इसी के बाद हमने यूपीए छोड़ने का निर्णय किया था. एनडीए के साथ जाने में चिराग की अहम किरदार रही है. बिहार की 6 सीटें एससी-एसटी के लिए रिजर्व हैं. इनमें हाजीपुर, समस्तीपुर, जमुई, गोपालगंज, सासाराम और गया की सीटें शामिल हैं. हाजीपुर, समस्तीपुर, जमुई चिराग को दी गई है. चिराग पासवान के पास खासा वोट बैंक है. चिराग के जरिए दलितों को साधने में सहायता मिलेगी. इससे अन्य सीटों पर भी बीजेपी को लाभ होगा.

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