एकादशी के दिन अगर खा लिए भात तो क्या करें,जाने…
Ekadashi Vrat History Importance Upay in Hindi: एकादशी तिथि का सनातन धर्म में बहुत खास महत्व है। दरअसल गीता में ईश्वर श्रीकृष्ण कहते हैं “मैं तिथियों में एकादशी हूं।” ऐसे में इस बात से एकादशी की पवित्रता का अंदाजा लगाया जा सकता है। एकादशी व्रत से जुड़ा एक नियम ये है कि इस दिन पका हुआ चावल (भात) नहीं खाना चाहिए। बोला जाता है कि ऐसा करने वालों को एकादशी व्रत-भंग का गुनाह लगता है। हालांकि शास्त्रों में इस गुनाह से मुक्ति पाने के लिए भी उपयुक्त तरीका बताए गए हैं। आइए अब इस आर्टिकल में जानते हैं कि यदि गलती से एकादशी के दिन भात का सेवन कर लिया है तो उससे लिए क्या तरीका करना मुनासिब रहेगा।
एकादशी के दिन यदि खा लिए भात तो क्या करें?
वौसे तो एकादशी के दिन भात खाने से बचना चाहिए। दरअसल इसके पीछे धार्मिक वजह यह है कि मान की चंचलता को दूर करने के लिए एकादशी का व्रत रखा जाता है, और इस दिन पका हुआ चावल (भात) खाने से मन और भी चंचल हो जाता है। बोला भी गया है- जैसा अन्न, वैसा मन। पके हुए चावल यानी भात में जल तत्व की प्रधानता होती है। ऐसे में जब एकादशी व्रत के दिन भात का सेवन किया जाता है तो मन-मस्तिष्क की चंचलता और भी अधिक बढ़ जाती है। इसलिए बोला जाता है कि एकदशी के दिन भात यानी पके हुए चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।
अब आप सोच रहे होंगे कि यदि विश्वासघात से एकादशी के दिन ऐसा हो जाए तो इसका शास्त्र सम्मत तरीका क्या है? दरअसल यदि कोई गलती से एकादशी के दिन चावल खा ले तो उसे इसको लेकर चिंतित न होकर तरीका कर लेना बेहतर होगा। बोला जाता है कि पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर में दर्शन करने से एकादशी के दिन चालव खाने का गुनाह समाप्त हो जाता है। ऐसा महत्वपूर्ण नहीं है कि एकादशी के दिन ही यह तरीका करना चाहिए। पूरे जीवन काल में जब भी समय मिले जगन्नाथ मंदिर के दर्शन कर लेना चाहिए। इससे एकादशी व्रत-भंग का गुनाह खत्म हो जाता है।
कैसे हुई एकादशी की उत्पत्ति?
एकादशी तिथि की उत्पत्ति को लेकर शास्त्रों में कथा आई है कि एक बार मुर नामक असुर ईश्वर विष्णु का पीछा करते हुए बद्रीकाश्रम पहुंच गया। असुर, मुर ने जब यह देखा कि ईश्वर निद्रा में लीन हैं तो उसने मारने की चेष्टा की। जैसे ही असुर ने ईश्वर को मारने के विचार से आगे बढ़ा, विष्णु जी के शरीर से एक देवी का प्रादुर्भाव हुआ, जिन्होंने मुर नामक असुर का वध कर दिया। इस प्रकार एकादशी की उत्पत्ति हुई। मान्यता है कि जब ऐसा हुआ वह दिन मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी थी। सनातन-धार्मिक ग्रंथ गीता में भी ईश्वर श्रीकृष्ण ने बोला है-“मैं मासों में मार्गशीर्ष (अगहन) हूं।”