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Saphala Ekadashi paran time: भक्तजन तुरंत जानें व्रत, पारण और विष्णु कृपा का दुर्लभ संयोग

Saphala Ekadashi paran time: भगवान विष्णु के भक्तों के लिए एकादशी का दिन केवल एक तिथि नहीं, बल्कि आस्था, संयम और मोक्ष की भावना से जुड़ा हुआ अवसर होता है। शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि जो श्रद्धालु पूर्ण विधि-विधान से एकादशी का व्रत करता है, उसे श्री हरि की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस दिन किया गया व्रत मन को शुद्ध करता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार (Ekadashi vrat) न केवल व्यक्ति के कर्मों को शुद्ध करता है, बल्कि पूरे परिवार पर माता लक्ष्मी का आशीर्वाद भी बरसाता है।

Saphala Ekadashi paran time
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हर महीने की एकादशी और उसका अलग आध्यात्मिक अर्थ

हिंदू पंचांग के अनुसार हर महीने दो एकादशी तिथियां आती हैं और प्रत्येक एकादशी का अपना अलग नाम और महत्व होता है। इन तिथियों का संबंध अलग-अलग धार्मिक कथाओं और फल से जुड़ा माना जाता है। पौष मास में आने वाली एकादशी को विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि यह वर्ष के अंत में आत्ममंथन और साधना का अवसर देती है। धार्मिक ग्रंथों में (monthly Ekadashi) को साधक के जीवन में संतुलन और अनुशासन लाने वाली तिथि कहा गया है।


पौष मास की सफला एकादशी क्यों है विशेष

पौष महीने में आने वाली एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है। यह नाम ही अपने आप में सफलता और शुभ फल का संकेत देता है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के रुके हुए कार्य पूर्ण होते हैं और जीवन में नई दिशा मिलती है। इस वर्ष सफला एकादशी का व्रत 15 दिसंबर 2025 को रखा जा रहा है, जिसे लेकर भक्तों में विशेष उत्साह देखा जा रहा है। धार्मिक दृष्टि से (Saphala Ekadashi significance) जीवन में सुख-समृद्धि का मार्ग खोलने वाली मानी जाती है।


व्रत में पारण का महत्व क्यों है अनिवार्य

एकादशी व्रत में जितना महत्व उपवास का होता है, उतना ही महत्व पारण का भी माना गया है। पारण का अर्थ होता है व्रत का विधिपूर्वक समापन करना। यदि सही समय और नियमों के अनुसार पारण न किया जाए, तो व्रत का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता। शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि (Ekadashi paran) सही मुहूर्त में करने से ही व्रत सफल माना जाता है और साधक को आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है।


सफला एकादशी 2025 का पारण मुहूर्त

सफला एकादशी व्रत के अगले दिन यानी 16 दिसंबर 2025 को पारण किया जाएगा। परंपरा के अनुसार एकादशी का पारण सूर्योदय के बाद ही किया जाता है। इस वर्ष पारण के लिए शुभ समय सुबह 7 बजकर 7 मिनट से लेकर सुबह 9 बजकर 11 मिनट तक रहेगा। भक्तों को सलाह दी जाती है कि वे इसी निर्धारित समय में व्रत खोलें, ताकि व्रत का संपूर्ण पुण्य प्राप्त हो सके। ज्योतिषीय गणना में (paran shubh muhurat) का विशेष महत्व बताया गया है।


द्वादशी तिथि और पारण से जुड़ा शास्त्रीय नियम

एकादशी व्रत का पारण हमेशा द्वादशी तिथि के भीतर ही किया जाना चाहिए। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाए, तो पारण सूर्योदय के बाद करना अनिवार्य माना गया है। शास्त्रों के अनुसार द्वादशी तिथि में पारण न करना पाप के समान माना जाता है। इसलिए तिथि और समय का विशेष ध्यान रखना आवश्यक होता है। धार्मिक नियमों में (Dwadashi tithi rules) को व्रत की पूर्णता का आधार बताया गया है।


पारण से पहले भगवान विष्णु की पूजा का विधान

एकादशी पारण से पहले भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करना अत्यंत आवश्यक माना गया है। पूजा के दौरान श्री हरि को भोग अर्पित किया जाता है और तुलसी दल विशेष रूप से चढ़ाया जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु को तुलसी अत्यंत प्रिय है और इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। धार्मिक परंपरा में (Vishnu puja) के बाद ही व्रत खोलना शुभ फलदायी माना गया है।


तुलसी ग्रहण और सात्विक भोजन का महत्व

पारण के समय अन्न ग्रहण करने से पहले तुलसी का सेवन करने का विशेष विधान है। तुलसी ग्रहण करने के बाद ही भोजन करना चाहिए। इसके साथ ही पारण के दिन भी सात्विक भोजन करने की सलाह दी जाती है। तामसिक भोजन और नकारात्मक आदतों से दूरी बनाए रखना इस दिन विशेष रूप से आवश्यक माना गया है। आयुर्वेद और धर्म दोनों में (sattvik food) को मन और शरीर की शुद्धि का माध्यम बताया गया है।


सफला एकादशी से मिलने वाला आध्यात्मिक और पारिवारिक फल

सफला एकादशी का व्रत न केवल व्यक्तिगत आध्यात्मिक उन्नति के लिए किया जाता है, बल्कि यह पूरे परिवार के लिए सुख और समृद्धि का कारण भी माना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी दोनों की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में स्थायित्व और शांति आती है। धार्मिक विश्वासों में (spiritual benefits) को इस एकादशी का सबसे बड़ा फल बताया गया है।

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