कहते हैं बिना सुपारी के पूजा अधूरी,फूल से लेकर फल तक इस्तेमाल
भारतीय संस्कृति में बाहर से आए अतिथियों और उनके साथ आए खानपान और संस्कृति को अपनाने के लिए भी जानी जाती है। सुपारी को ही देख लीजिए। इंडोनेशिया से चलकर हिंदुस्तान पहुंची और हिंदुओं की पूजा सामग्री का जरूरी हिस्सा बन गई।
सुपारी हर पूजा-पाठ, विवाह ब्याह, गृह प्रवेश और सत्य नारायण की कथा सहित हर अनुष्ठान में कलश स्थापना के समय जरूरी होती है। सुपारी को सिक्का के साथ अर्पित किया जाता है। कलश पर रखी सुपारी देवताओं और श्रद्धालुओं को आपस में जोड़ती है।
सुपारी को संस्कृत में पोगी फल कहते हैं। इसे गणेश जी का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि पूजा में नारियल और सुपारी रखने से सभी काम बिना किसी बाधा के संपन्न होते हैं। पूजा में रखी गई सुपारी को हमेशा अपने पास रखने से घर में सुख समृद्ध बनी रहती है।
इंडोनेशियाई सुपारी का भारतीयकरण
सुपारी मूल रूप से भारतीय नहीं है। ऐतिहासिक अभिलेख और भाषाविज्ञान के साथ-साथ पुरातात्विक साक्ष्यों से पता चलता है कि इसकी जड़ें मूल रूप इंडोनेशियाई द्वीपसमूह में बसी हुई हैं। माना जाता है कि सुपारी गुप्त काल में हिंदुस्तान आई और हमारी संस्कृति में रच बस गई।
इतिहास के पन्ने बताते हैं कि भारतीय उपमहाद्वीप में सुमात्रा, जावा और मलेशिाई प्रायद्वीप से ऑस्ट्रोनेशियन व्यवसायी 3500 ईसा पूर्व श्रीलंका और हिंदुस्तान के दक्षिण तट पर लेकर पहुंचे और यहीं से धीरे धीरे सुपारी को चबाने की कहानी प्रारम्भ हुई।
पान का स्लाद वढ़ाती है सुपारी।
सुपार की पान के पत्ते के साथ जुगलबंदी
पान के पत्ते के साथ सुपारी खाने का जिक्र वैदिक काल के बाद दीपवंश और महावंश के समय से मिलता है। 500 ई।पू। के बाद बंगाल की खाड़ी में मोन खामेर भाषी लोगों के साथ व्यापार के जरिए पान चबाने की संस्कृति कश्मीर और बाकी उत्तर हिंदुस्तान में पहुंची। वहां से यह सिल्क रूट से होते हुए भूमध्य सागर तक पहुंच गई।
माना जाता है कि एक सुपारी में छह कप कॉपी के बराबर नशा होता है। हिंदुस्तान में देर तक काम करने वाले लोग सुपारी को गुटखा या पान के साथ चबाते रहते हैं। गुटखा बाजार इतना बड़ा हो गया है कि कंपनियां बड़ी शख़्सियतों की सहायता ले रही हैं।
शाहरुख खान, अजय देवगन, अक्षय कुमार, अमिताभ बच्चन और रणवीर सिंह तक गुटखे का विज्ञापन कर रहे हैं। हालांकि मुम्बई फिल्म इंडस्ट्री के इन दिग्गजों को विज्ञापन की वजह से न्यायालय के चक्कर भी लगाने पड़े हैं।
सुपारी के बीजों से पौधों की नर्सरी तैयार की जाती है, उसके बाद पौधों की रोपाई होती है।
सुपारी की पैदावार कैसे होती है
किसान सुपारी की खेती करके लंबे समय तक फायदा कमा सकते हैं। नार्थ ईस्ट के राज्यों असम, मेघालय में बड़े पैमाने में सुपारी की खेती होती है। अंडमान में भी सुपारी की फसल उगाई जाती है। इसके पेड़ हर घर के सहन यानी आंगन में होते हैं। सुपारी की खेती हर मिट्टी में की जा सकती है। हालांकि, दोमट, चिकनी मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे ठीक मानी जाती है। 50 से 60 फीट लंबे यह पेड़ 5 से 8 वर्षों में फल देना प्रारम्भ कर देते हैं और तकरीबन 70 वर्ष तक फायदा देते हैं। एक अच्छा पेड़ 20-25 किलो तक सुपारी का फल देता है। हालांकि इसकी प्रोसेसिंग थोड़ी कठिन है।
इसकी मूल्य करीब 400 से लेकर 600 रुपए प्रति किलो तक है। सुपारी का पेड़ नारियल की तरह लंबा और सीधा होता है। इसके पत्ते नारियल के पत्तों की तरह होते हैं। इसके फल चिकने और नारंगी रंग के होते हैं। पक जाने पर फल, गहरे नारंगी रंग का और अंडाकार होता है। इसी फल के अंदर सुपारी होती है। इसका बॉटनिकल नाम ऐरेका केटेचू है और यह एरिकेसी कुल से है।
सुपारी की प्रोसेसिंग कैसे होती है
सुपारी की खेती करने वाले पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर के किसान पबित्र रॉय सुपारी की प्रोसेसिंग के बारे में बताते हैं कि, सुपारी को तोड़ने के बाद बांस के बने डलिए में रखकर उसे पत्थर से दबा दिया जाता है। डलियों में पानी भरकर तीन महीने से लेकर सात महीने तक रखा जाता है। दिसंबर में सुपारी रखी जाती है और जून में इसे निकलते हैं। बीच-बीच में इसे चेक करते रहते हैं। जब सुपारी के फल कुछ मुलायम हो जाएं तो उसे पानी से निकलकर नारियल की तरह उसके रेशेदार छिलका हटाते हैं जिसमें से सुपारी निकलती है। इसके बाद रंग और आकार के हिसाब से सुपारी की छंटनी होती है।
आयुर्वेद में सुपारी औषधि है। इसका इस्तेमाल रोंगों की रोकथाम और उनके उपचार में किया जाता है। सुपारी एक जड़ी-बुटी है। इसकी दो प्रजातियां प्रसिद्ध हैं। साधारण सुपारी और लाल सुपारी।
सुपारीः फूल से लेकर फल तक इस्तेमाल
- सुपारी का फूल
- सुपारी का चूर्ण
- सुपारी फल
- सुपारी के पत्ते
सुपारी में एंटी इन्फ्लेमेट्री, एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभ वाला हैं। सुपारी के बुरादे, फूल और पत्तियों से बना लेप कई समस्याओं से राहत दिला सकता है।
कैंसर फैलाने की ‘सुपारी’
भारत समेत पूरी दुनिया में कैंसर फैलाने वाली ‘सुपारी’ ली जा रही है। यह खुलासा द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में हाल ही में छपे एक लेख में हुआ है। लोगों में कैंसर फैलाने के पीछे हिंदुस्तान समेत दुनिया के दूसरे राष्ट्रों में एक बड़ा नेटवर्क काम कर रहा है। 1990 में सुपारी की खपत ढाई लाख मीट्रिक टन प्रति साल से बढ़कर 2020 में करीब 90 लाख मीट्रिक टन हो गई। हिंदुस्तान में दुनिया की 58 प्रतिशत सुपारी के प्रोडक्ट बिना किसी चेतावनी लेबल के बेचे जा रहे हैं, जो मुंह के कैंसर का कारण बन रहे हैं।
कैंसर स्पेस्लिस्ट डाक्टर कनिका सूद कहती हैं कि सुपारी को चबाया जाता है, निगला नहीं जाता है। चबाते समय मुंह में निकोटिनिक-एसिड बेस्ड एल्कालोइड एस्कोलिन ट्रांसोरल रूप से घुलता है। कई इसका इस्तेमाल उत्तेजक असर के लिए करते हैं।
वर्ष 2002 तक पूरे विश्व में 60 करोड़ सुपारी खाने वाले थे। जिसने सुपारी को कैफीन, निकोटीन और अल्कोहल के बाद चौथी सबसे अधिक खपत वाली एरेकोलाइन बना दिया। विलियम जे मोस ने अपने लेख में इसका जिक्र किया है।
सुपारी से होता मुंह का कैंसर
इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर की रिपोर्ट में कहा गया है कि सुपारी गैर-संक्रामक ओडोनटोजेनिक बीमारी को बढ़ावा देती है। कई किशोर उम्र से ही गुटखा या पान के रूप में सुपारी खाना प्रारम्भ कर देते हैं। इसका असर पूरे एशिया क्षेत्र में होने वाली सुपारी की हैरतअंगेज खपत और मुंह के कैंसर के बढ़ते मामलों में देखने को मिलता है।