बीमारियों का भंडार है पॉलीथिन, गलने में लगते हैं 100 साल
जीव-जंतुओं की मृत्यु का बड़ा कारण
पॉलीथिन की थैलियां हर वर्ष लाखों जीव-जंतुओं की मृत्यु का कारण भी बनती हैं. ये पॉलीथिन इस्तेमाल के बाद कूड़े के ढेर में पड़ी रहती है और खाने की तलाश में आवारा पशु इसे निगल जाते हैं. पेट में जाकर पॉलीथिन आंतो में चिपक जाती है. जिससे कुछ ही दिनों में पशु की मृत्यु हो जाती है. जब ये पॉलीथिन तालाब और नदियों में जाती है तो मछली और दूसरे जीवों की मृत्यु का कारण भी बनती है.
प्लास्टिक से होने वाली बीमारियां
अगर प्लास्टिक को जलाकर नष्ट करने की सोचें तो ये पर्यावरण को दूषित करने वाली गैस छोड़ती है. प्लास्टिक को जलाने से मुख्य रूप से क्लोरो फ्लोरो कार्बन निकलता है जो ओजोन लेयर के लिए भी घातक होती है. इससे नंसानों में त्वचा संबंधी बीमारी होने का खतरा बढ़ता है. डॉक्टर्स की मानें तो जो लोग प्रदूषण वाले क्षेत्र में रहते हैं उनमें बीपीए की मात्रा अधिक होती है. इससे त्वचा संबंधी बीमारियां, लिवर और किडनी से जुड़े बीमारी और नपुंसकता का खतरा बढ़ जाता है.
प्लास्टिक के कप में चाय पीना है खतरनाक
जो लोग प्लास्टिक के कप में गर्म चाय या कॉफी पीते हैं उन्हें सावधान होने की आवश्यकता है. ये कप आपको कैंसर जैसी रोग दे सकते हैं. यदि आप सिंगल टाइम यूज होने वाले प्लास्टिक का इस्तेमाल अधिक करते हैं तो इससे भी कैंसर का खतरा बढ़ता है. इसके अतिरिक्त लो क्वालिटी के प्लास्टिक डब्बों का इस्तेमाल भी एक बार से अधिक नहीं करना चाहिए.
पॉलीथिन को आज से कहें ‘NO’
अगर आप पर्यावरण को सुरक्षित और अपनी आने वाली पीढ़ियों के रहने लायक बनाना चाहते हैं तो आज से ही प्लास्टिक और पॉलीथिक को नो कह दें. जब भी बाजार जाएं तो अपने घर से कपड़े या जूट का बैग लेकर जाएं. प्लास्टिक की चीजों को घर से बाहर कर दें. भले ही ये एक छोटा सा कदम हो, लेकिन आप अपनी ओर से ये पहल जरूर करें. आपको अच्छा महसूस होगा.