पढ़ें, आमलकी एकादशी की व्रत कथा
फाल्गुन शुक्ल एकादशी को रंगभरी एकादशी बोला जाता है। इसे आमलकी एकादशी या आंवला एकादशी भी कहा जाता है। पौराणिक परंपराओं एवं मान्यताओं के मुताबिक, रंगभरी एकादशी के दिन ईश्वर महादेव माता पार्वती से शादी के पश्चात् पहली बार अपनी प्रिय काशी नगरी आए थे। इसलिए इस दिन से वाराणसी में रंग खेलने का सिलसिला आरम्भ हो जाता है, जो लगातार 6 दिन तक चलता है। वही इस बार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी तिथि का आरम्भ 20 मार्च को रात 12 बजकर 21 मिनट से होगा तथा 21 मार्च को रात 2 बजकर 22 मिनट पर इसका समाप्ति हो जाएगा। उदया तिथि के मुताबिक, आमलकी एकादशी का व्रत 20 मार्च यानी आज, बुधवार को रखा जाएगा।
आमलकी या रंगभरी एकादशी व्रत कथा:
प्राचीन काल में चित्रसेन नामक एक राजा राज्य करते थे. उनके राज्य में एकादशी व्रत का बहुत महत्व था और सभी प्रजाजन एकादशी का व्रत करते थे. वहीं राजा की आमलकी एकादशी के प्रति बहुत श्रद्धा थी. एक दिन राजा शिकार करते हुए जंगल में बहुत दूर निकल गए. तभी कुछ जंगली और पहाड़ी डाकुओं ने राजा को घेर लिया. डाकुओं ने शस्त्रों से राजा पर धावा कर दिया. मगर देव कृपा से राजा पर जो भी शस्त्र चलाए जाते वो पुष्प में बदल जाते. यह देखकर डाकु डर गए और राजा के चरणों में गिर पड़े. राजा ने उनसे डरने का कारण पूछा. डाकुओं ने कहा कि वे बहुत गरीब हैं और भूख से मर रहे हैं. राजा ने उन्हें भोजन और धन दान दिया और उन्हें पापों से मुक्ति पाने के लिए एकादशी व्रत रखने का उपदेश दिया. डाकुओं ने राजा की बात मान ली और एकादशी का व्रत रखा. व्रत के असर से उनके सभी पाप दूर हो गए और उन्हें सुख-समृद्धि प्राप्त हुई. इस घटना के बाद राजा ने भी नियमित रूप से एकादशी का व्रत रखना प्रारम्भ कर दिया. एकादशी व्रत के असर से राजा को मोक्ष की प्राप्ति हुई. आमलकी एकादशी के दिन ईश्वर विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करना भी बहुत फलदायी माना जाता है.
आमलकी एकादशी व्रत के लाभ:
पापों से मुक्ति
मनोकामना पूर्ति
सुख-समृद्धि प्राप्ति
मोक्ष की प्राप्ति
आमलकी एकादशी व्रत कथा सुनने और पढ़ने से भी व्रत के समान फल प्राप्त होते हैं. यह भी बोला जाता है कि जो आदमी इस दिन ईश्वर विष्णु को तुलसी अर्पित करता है, उसे ईश्वर विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है.