Odisha MLA Salary Hike Controversy: क्या जनता की कमाई पर भारी पड़ेगी नेताओं की तिजोरी, ओडिशा में विधायकों के वेतन पर छिड़ा सियासी घमासान…
Odisha MLA Salary Hike Controversy: ओडिशा की राजनीति में इन दिनों एक अजीबोगरीब स्थिति देखने को मिल रही है, जहाँ कुछ दिन पहले तक जिस बिल पर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों एकमत थे, अब उसी पर विरोध के स्वर मुखर होने लगे हैं। विपक्षी दल बीजू जनता दल (बीजद) ने शुक्रवार को विधायकों के वेतन और भत्तों में की गई भारी बढ़ोतरी का कड़ा विरोध किया है। पार्टी ने मुख्यमंत्री से स्पष्ट रूप से (Legislative Pay Revision) के इस फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की है। दिलचस्प बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के भीतर से भी इस प्रस्तावित वेतन वृद्धि को लेकर इसी तरह के असंतोष की खबरें सामने आ रही हैं, जिससे अब यह मामला पूरी तरह से जनता की भावनाओं बनाम जनप्रतिनिधियों की सुविधाओं के बीच उलझ गया है।
शीतकालीन सत्र का वह फैसला और तीन गुना वेतन की बात
यह पूरा विवाद (Odisha MLA Salary Hike Controversy) तब शुरू हुआ जब 9 दिसंबर को ओडिशा विधानसभा के शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन चार महत्वपूर्ण बिल पास किए गए थे। इन बिलों में न केवल विधायकों, बल्कि मुख्यमंत्री, मंत्रियों, स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के वेतन को भी लगभग (Triple Salary Increase) करने का प्रस्ताव रखा गया था। उस समय भाजपा, बीजद और कांग्रेस—तीनों ही प्रमुख दलों ने सदन में सर्वसम्मति से इन बिलों का समर्थन किया था। केवल भाकपा माले के एकमात्र सदस्य ने सदन से अनुपस्थित रहकर अपना सांकेतिक विरोध दर्ज कराया था। उस समय लगा था कि यह मामला सुलझ चुका है, लेकिन जनता के बीच बढ़ते आक्रोश ने अब राजनीतिक समीकरणों को पूरी तरह बदल दिया है।
बीजू जनता दल का यू-टर्न: जनता की राय सर्वोपरि
बीजद की ओर से विपक्षी मुख्य सचेतक प्रमिला मलिक ने इस मुद्दे पर पार्टी का रुख स्पष्ट करते हुए एक महत्वपूर्ण बयान जारी किया है। उन्होंने कहा कि हालांकि उनकी पार्टी ने विधानसभा में बिलों का समर्थन किया था, लेकिन अब (Public Opinion Consideration) को ध्यान में रखते हुए वे मुख्यमंत्री से इस पर फिर से विचार करने का अनुरोध कर रहे हैं। बीजद का मानना है कि लोकतंत्र में जनता की भावनाएं सर्वोपरि होती हैं और यदि आम नागरिक इस वेतन वृद्धि से खुश नहीं हैं, तो जनप्रतिनिधियों को अपने कदम पीछे खींच लेने चाहिए। यह रणनीतिक बदलाव बीजद की उस कोशिश का हिस्सा माना जा रहा है जिसमें वह खुद को आम जनता के रक्षक के तौर पर पेश करना चाहती है।
विधायकों की नैतिक उलझन और बीजद का पक्ष
बीजद के उप मुख्य सचेतक पी के देब ने भी स्वीकार किया कि पार्टी के विधायकों ने सदन के भीतर बिल का समर्थन जरूर किया था, लेकिन बाहरी माहौल को भांपते हुए अब निर्णय बदलना जरूरी है। उन्होंने जोर देकर कहा कि विधायकों के वेतन और भत्तों में (Proposed Allowance Hikes) के खिलाफ जनता में जो नकारात्मक धारणा बनी है, उसे नजरअंदाज करना आत्मघाती हो सकता है। पार्टी अब पूरी तरह से जनमत के अनुसार चलने का मन बना चुकी है, भले ही इसके लिए उन्हें अपने पुराने स्टैंड से पलटना पड़े। यह निर्णय दर्शाता है कि आने वाले चुनावों या अपनी छवि को लेकर राजनीतिक दल कितने संवेदनशील हो चुके हैं।
भाजपा के भीतर भी विरोध की सुगबुगाहट
इस मामले में केवल विपक्षी दल ही नहीं, बल्कि सत्ताधारी दल भाजपा के विधायक भी अब कशमकश में नजर आ रहे हैं। गुरुवार को हुई एक महत्वपूर्ण बैठक में भाजपा विधायकों ने स्वयं मुख्यमंत्री से इस प्रस्ताव पर फिर से विचार करने का आग्रह किया। संसदीय कार्य मंत्री मुकेश महालिंग ने पुष्टि की कि पार्टी के विधायकों ने (Chief Minister Consultation) के दौरान एक पत्र सौंपकर जनता की राय का सम्मान करने की बात कही है। भाजपा विधायकों का यह कदम काफी चौंकाने वाला है क्योंकि यह बिल उनकी अपनी सरकार की देखरेख में ही पेश और पास किया गया था। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मुख्यमंत्री अपनी ही पार्टी के सहयोगियों के इस दबाव पर क्या रुख अपनाते हैं।
आखिर कितना भारी है विधायकों का नया मासिक पैकेज
वेतन वृद्धि के आंकड़ों पर गौर करें तो यह काफी चौंकाने वाले हैं। विधानसभा में पास किए गए बिल के अनुसार, विधायकों का मासिक पैकेज 1.11 लाख रुपये से बढ़ाकर सीधे 3.45 लाख रुपये करने का प्रस्ताव है। (Legislators Monthly Income) में होने वाली यह भारी-भरकम बढ़ोतरी किसी भी आम नागरिक की सोच से परे है। यही कारण है कि जैसे ही ये आंकड़े सार्वजनिक हुए, राज्य भर में विरोध प्रदर्शन और चर्चाओं का दौर शुरू हो गया। लोग सवाल उठा रहे हैं कि जहाँ आम आदमी महंगाई से जूझ रहा है, वहाँ कानून बनाने वालों के लिए इतनी बड़ी राहत क्यों दी जा रही है।
राज्यपाल की मंजूरी का इंतजार और सामाजिक संगठनों का हस्तक्षेप
वर्तमान में, ये चारों बिल राज्यपाल की अंतिम मंजूरी के लिए राजभवन भेजे जा चुके हैं। लेकिन यहाँ भी राह आसान नहीं दिख रही है क्योंकि भाकपा माले सहित कई नागरिक संगठनों ने राज्यपाल को याचिकाएं सौंपी हैं। इन याचिकाओं में आग्रह किया गया है कि खराब जनमत और (State Budget Allocation) की स्थिति को देखते हुए इन बिलों को मंजूरी न दी जाए। राज्यपाल का फैसला अब इस पूरे विवाद का निर्णायक बिंदु साबित होगा। यदि राज्यपाल इन बिलों को वापस भेजते हैं, तो यह सरकार के लिए एक बड़ी नैतिक हार जैसा होगा और यदि वे मंजूरी देते हैं, तो जनता का गुस्सा और बढ़ सकता है।
ओडिशा के राजनीतिक भविष्य पर इस फैसले का असर
विधायकों के वेतन, भत्ते और पेंशन से संबंधित ये चार बिल—ओडिशा विधान सभा सदस्यों का वेतन (संशोधन) विधेयक, अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन संशोधन और मंत्रियों के भत्ते से जुड़े बिल अब ‘हॉट पोटैटो’ बन चुके हैं। (Odisha Assembly Bills) की यह संवैधानिक प्रक्रिया अब एक राजनीतिक संकट में बदलती दिख रही है। जिस तरह से प्रमुख दल एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं और जनता की दुहाई दे रहे हैं, उससे साफ है कि कोई भी दल ‘अमीर विधायक’ की छवि के साथ जनता के बीच नहीं जाना चाहता। आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि क्या मुख्यमंत्री इन बढ़े हुए भत्तों को वापस लेने का साहसिक फैसला लेते हैं या जनमत के खिलाफ जाकर इन्हें लागू किया जाता है।