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Indian Scholar Addressing Frankfurt Parliament: भारत के लिए गौरव का क्षण, मां गंगा की महिमा से गूंज उठी विदेशी संसद, तन्मय वशिष्ठ ने रचा नया इतिहास

Indian Scholar Addressing Frankfurt Parliament: मां गंगा की महिमा अब केवल भारत की सीमाओं तक सीमित नहीं रही, बल्कि सात समंदर पार जर्मनी की राजधानी में भी इसका शंखनाद हुआ है। उत्तराखंड के हरिद्वार स्थित श्रीगंगा सभा के महामंत्री तन्मय वशिष्ठ ने जर्मनी के फ्रैंकफर्ट शहर के संसद भवन में मां गंगा के महत्व पर विशेष व्याख्यान देकर एक अभूतपूर्व (Historic International Achievement) हासिल की है। तन्मय वशिष्ठ फ्रैंकफर्ट की संसद को संबोधित करने वाले पहले भारतीय बनकर उभरे हैं, जो हर भारतीय और सनातन संस्कृति के अनुयायियों के लिए अत्यंत गर्व का विषय है।

Indian Scholar Addressing Frankfurt Parliament
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अंतरराष्ट्रीय जल सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत

बीते शनिवार को जर्मनी के फ्रैंकफर्ट में आयोजित ‘अंतरराष्ट्रीय जल और जीवन सम्मेलन’ में दुनिया भर के पर्यावरणविदों और विचारकों का जमावड़ा लगा था। इस प्रतिष्ठित कार्यक्रम में तन्मय वशिष्ठ को बतौर मुख्य अतिथि (International Water Conference Guest) आमंत्रित किया गया था। इस वैश्विक मंच का उपयोग करते हुए उन्होंने जल संरक्षण के आध्यात्मिक और वैज्ञानिक पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कैसे जल न केवल जीवन का आधार है, बल्कि भारतीय संस्कृति में इसे ईश्वर का स्वरूप मानकर पूजा जाता है।

गंगा: भारत की संस्कृति और सभ्यता की जीवनरेखा

अपने संबोधन के दौरान तन्मय वशिष्ठ ने भावुक होते हुए कहा कि मां गंगा केवल हरिद्वार या किसी विशेष भूगोल का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि यह पूरे भारतवर्ष की आत्मा और जीवनरेखा हैं। उन्होंने (Spiritual Significance of Ganga) पर चर्चा करते हुए बताया कि कैसे सदियों से गंगा के किनारे भारतीय सभ्यता फली-फूली है। उन्होंने विदेशी सांसदों को अवगत कराया कि गंगा के जल को भारतीय केवल एक नदी नहीं, बल्कि अपनी जननी के रूप में देखते हैं, जो न केवल प्यास बुझाती है बल्कि मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त करती है।

हरकी पैड़ी की पौराणिक मान्यताओं का वैश्विक प्रसार

व्याख्यान के दौरान तन्मय वशिष्ठ ने हरिद्वार स्थित विश्व प्रसिद्ध ‘हरकी पैड़ी’ से जुड़ी ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यताओं को विस्तार से साझा किया। उन्होंने (Har Ki Pauri Legend) के बारे में बताया कि कैसे यह स्थान करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र है और यहां होने वाली गंगा आरती विश्व शांति और शुद्धि का संदेश देती है। विदेशी सांसदों और गणमान्य नागरिकों ने इन प्राचीन कहानियों को बहुत ही ध्यान और सम्मान के साथ सुना, जिससे वैश्विक स्तर पर भारतीय परंपराओं की समझ और गहरी हुई है।

भारतीय गौरव और व्यक्तिगत उपलब्धि का संगम

तन्मय वशिष्ठ ने अपने भाषण के समापन पर फ्रैंकफर्ट के सिटी पार्लियामेंट सदस्य राहुल कुमार और अन्य आयोजकों का हृदय से आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा कि एक विदेशी संसद में मां गंगा की पावन गाथा पर चर्चा होना केवल उनकी (Individual Milestone for India) नहीं है, बल्कि यह पूरे भारत की सांस्कृतिक जीत है। यह अवसर दर्शाता है कि दुनिया अब भारतीय दर्शन और प्रकृति के प्रति हमारे नजरिए को सम्मान की दृष्टि से देख रही है और उसे अपनाने के लिए उत्सुक है।

विदेशी प्रतिनिधियों और प्रवासियों की उपस्थिति

इस गौरवशाली अवसर पर फ्रैंकफर्ट के सांसद राहुल कुमार, सिल्विया कुंज, जॉर्ज बॉक्सहाइमर, उर्सुला, ताबियास मैनफ्रेड और करिन केलरमैन जैसे कई दिग्गज नेता मौजूद थे। साथ ही, प्रवासी भारतीयों के विभिन्न संगठनों जैसे हिंदू मंदिर सभा के अध्यक्ष किशन अग्रवाल, अफगान हिंदू गुरुद्वारा सभा के अध्यक्ष संजय कपूर और रविदास गुरुद्वारा (Indian Diaspora in Germany) के पदाधिकारियों ने भी कार्यक्रम में हिस्सा लिया। सभी ने तन्मय वशिष्ठ के वक्तव्य की सराहना की और इसे भारत-जर्मनी के बीच सांस्कृतिक सेतु बनाने वाला कदम बताया।

गंगा संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की अपील

तन्मय वशिष्ठ ने अपने संबोधन के जरिए यह भी स्पष्ट किया कि गंगा जैसी पवित्र नदियों का संरक्षण केवल भारत की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरी मानवता का दायित्व है। उन्होंने (Global River Conservation Efforts) की आवश्यकता पर जोर देते हुए विदेशी समुदायों से जल प्रदूषण को रोकने के लिए सहयोग मांगा। उनके इस आह्वान ने वहां उपस्थित पर्यावरण विशेषज्ञों को एक नई दिशा प्रदान की, जिससे भविष्य में गंगा के पुनरुद्धार के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए प्रोजेक्ट्स शुरू होने की संभावनाएं भी बढ़ गई हैं।

इतिहास के पन्नों में दर्ज हुआ यह गौरवशाली दिन

कुल मिलाकर, फ्रैंकफर्ट की संसद में हुआ यह कार्यक्रम भारतीय मूल्यों की वैश्विक स्वीकार्यता का प्रतीक बन गया है। हरिद्वार की पावन भूमि से निकलकर एक (Cultural Ambassador of India) ने जिस तरह जर्मनी के संसद भवन में सत्य और श्रद्धा का प्रकाश फैलाया, उसने इतिहास के पन्नों में एक नया अध्याय लिख दिया है। आने वाले समय में यह आयोजन मां गंगा के संरक्षण और भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा।

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