India China Border Pentagon Report: भारत-चीन सीमा विवाद पर अमेरिका के दखल से भड़का बीजिंग, सुरक्षा रिपोर्ट को बताया कोरा झूठ
India China Border Pentagon Report: पेंटागन की हालिया रिपोर्ट ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हलचल मचा दी है, जिसमें अमेरिका ने चीन पर भारत के साथ संबंधों में दिखावा करने का संगीन आरोप लगाया है। बीजिंग ने वाशिंगटन की इस रिपोर्ट को सिरे से खारिज करते हुए इसे (Geopolitical Rivalry Impact) भ्रामक करार दिया है। चीनी विदेश मंत्रालय का मानना है कि अमेरिका जानबूझकर दो पड़ोसी देशों के बीच कूटनीतिक दरार पैदा करने की कोशिश कर रहा है। बीजिंग की यह प्रतिक्रिया स्पष्ट करती है कि वह अपनी सीमाओं से जुड़े मामलों में किसी भी तीसरे देश, विशेषकर अमेरिका का हस्तक्षेप कतई बर्दाश्त नहीं करेगा।
लिन जियान का बयान: सीमा पर स्थिति अब नियंत्रण में
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने एक नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान सीमा पर तनाव को लेकर महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। उन्होंने एक रूसी मीडिया रिपोर्टर के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि वर्तमान में वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर स्थिति (LAC Border Situation Update) सामान्य रूप से स्थिर बनी हुई है। लिन ने जोर देकर कहा कि भारत और चीन के बीच बातचीत के चैनल पूरी तरह खुले हुए हैं और दोनों पक्ष आपसी समझ के साथ आगे बढ़ रहे हैं। उनके इस बयान ने उन अटकलों पर विराम लगाने की कोशिश की है जिनमें सीमा पर फिर से सैन्य तनाव बढ़ने की बात कही जा रही थी।
रणनीतिक और दीर्घकालिक नजरिए से संबंधों को देखता है चीन
ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने अपने कूटनीतिक इरादे साफ करते हुए कहा कि वह भारत के साथ अपने रिश्तों को किसी अस्थायी लाभ के लिए नहीं, बल्कि एक ‘रणनीतिक और दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य’ से देखता है। चीन का तर्क है कि दो बड़ी (Bilateral Strategic Partnership) एशियाई शक्तियों का विकास एक-दूसरे के सहयोग पर निर्भर है। प्रवक्ता लिन ने यह भी स्पष्ट किया कि बाहरी देशों द्वारा की जाने वाली अनावश्यक टिप्पणियां संबंधों को सुधारने के बजाय और अधिक जटिल बनाने का काम करती हैं। यह संदेश सीधे तौर पर अमेरिकी विदेश नीति की ओर इशारा था जो अक्सर चीन के पड़ोसियों के साथ उसके विवादों में सक्रिय रुचि दिखाती है।
क्या भारत-अमेरिका दोस्ती में रोड़ा अटकाना चाहता है बीजिंग?
पेंटागन की रिपोर्ट का सबसे विवादित हिस्सा वह था जिसमें कहा गया कि चीन, भारत के साथ सीमा तनाव का लाभ उठाकर अमेरिका-भारत संबंधों को गहरा होने से रोकना चाहता है। अमेरिकी रक्षा विभाग के अनुसार, चीन का दिखावा (US India Defense Ties) केवल एक चाल है ताकि भारत वैश्विक राजनीति में अमेरिका के करीब न जा सके। रिपोर्टर ने जब इस पर सवाल पूछा, तो चीनी प्रवक्ता ने इसे कल्पना मात्र बताया। बीजिंग का मानना है कि भारत एक संप्रभु राष्ट्र है और वह अपने फैसले स्वयं लेने में सक्षम है, ऐसे में अमेरिका का यह दावा आधारहीन है कि चीन उसकी कूटनीति को प्रभावित कर रहा है।
रियो डी जेनेरियो से त्येनजिन तक शांति की नई उम्मीद
भारत और चीन के बीच संबंधों में सुधार की पटकथा पिछले साल ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान लिखी गई थी। रियो डी जेनेरियो में प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच (Modi Xi Diplomatic Meetings) हुई पहली औपचारिक मुलाकात ने तनाव की बर्फ पिघलाने का काम किया था। इसके बाद इस साल सितंबर-अक्टूबर में त्येनजिन में आयोजित एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान भी दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय वार्ता की। इन मुलाकातों ने दोनों देशों के बीच अविश्वास की खाई को पाटने का काम किया है, जिससे सीमा पर शांति बहाली की प्रक्रिया को मजबूती मिली है।
एलएसी पर सैनिकों की वापसी और शांति का मार्ग
एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान बनी सहमति का असर अब जमीनी स्तर पर भी दिखने लगा है। भारत और चीन दोनों ही पक्षों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा से अपने सैनिकों की संख्या (Troop Disengagement Process) को धीरे-धीरे कम करना शुरू कर दिया है। यह कदम दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली का एक बड़ा संकेत है। सीमा पर तनाव कम होने से न केवल सैन्य खर्च में कमी आएगी, बल्कि व्यापारिक संबंधों को भी फिर से पटरी पर लाने की संभावना बढ़ गई है। शांति की इस प्रक्रिया ने उन अंतरराष्ट्रीय ताकतों को बेचैन कर दिया है जो इस क्षेत्र में अस्थिरता देखना चाहती थीं।
शंघाई सहयोग संगठन और उभरती हुई एशियाई एकता
तियानजिन में एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी और जिनपिंग की मुलाकात की तस्वीरों ने अमेरिकी कांग्रेस में तीखी प्रतिक्रिया पैदा की थी। वाशिंगटन को डर है कि यदि (SCO Summit Highlights) भारत और चीन अपने विवादों को सुलझा लेते हैं, तो एशिया में अमेरिकी प्रभाव कम हो सकता है। चीन का मानना है कि एशियाई देशों को अपने विवाद आपसी बातचीत से सुलझाने चाहिए और बाहरी हस्तक्षेप से बचना चाहिए। एससीओ जैसे मंच इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, जहाँ सदस्य देश क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक सहयोग पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
भविष्य की राह: संतुलन और संप्रभुता का सवाल
फिलहाल भारत और चीन के संबंध स्थिरता की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन यह शांति कितनी टिकाऊ होगी, यह आने वाला समय ही बताएगा। चीन द्वारा पेंटागन की रिपोर्ट को (Global Diplomatic Balance) खारिज करना यह दर्शाता है कि वह अपनी छवि को एक जिम्मेदार वैश्विक शक्ति के रूप में पेश करना चाहता है। भारत के लिए भी यह एक संतुलित विदेश नीति का समय है, जहाँ उसे अपनी सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक हितों का भी ख्याल रखना है। दुनिया भर की नजरें अब इस बात पर टिकी हैं कि क्या एशिया की ये दो महान सभ्यताएं पश्चिमी देशों की भविष्यवाणियों को गलत साबित करते हुए शांति का नया अध्याय लिख पाएंगी।