Debate on electoral transparency: राहुल गांधी की चार प्रमुख मांगें और लोकतांत्रिक विमर्श
Debate on electoral transparency: 9 दिसंबर 2025 को लोकसभा में राहुल गांधी ने Election Commission of India की निष्पक्षता और विश्वसनीयता को लेकर फिर से गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने अपने भाषण और बाद के संदेशों में यह स्पष्ट किया कि चुनावी प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए कुछ बुनियादी सुधार जरूरी हैं। उनकी चार प्रमुख मांगें ऐसे समय में सामने आई हैं जब बीते वर्षों में EVM tampering, voter list irregularities और institutional autonomy पर लगातार बहस चलती रही है। राहुल गांधी का तर्क है कि यदि आयोग इन सुधारों को लागू कर दे तो चुनाव प्रक्रिया और अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और विश्वसनीय बन सकती है।

मशीन-रीडेबल वोटर लिस्ट की अनिवार्यता
पहली मांग वोटर लिस्ट को मशीन-रीडेबल फॉर्मेट में सार्वजनिक करने की है, ताकि डेटा की जांच आसान हो सके। वर्तमान व्यवस्था में सूची PDF रूप में जारी होती है, जिसे पढ़ना और विश्लेषित करना कठिन माना जाता है। मशीन-रीडेबल फॉर्मेट होने पर duplicate entries, fraudulent voters या मृतकों के नाम की पहचान जल्दी हो सकेगी। विश्व के कई देशों में यह व्यवस्था पहले से लागू है, जिससे transparency और community audit की सुविधा मिलती है। भारत में भी यदि चुनाव से कम से कम एक माह पहले ऐसी सूची उपलब्ध हो जाए, तो राजनीतिक दलों, नागरिक समूहों और शोधकर्ताओं के लिए स्वतंत्र जांच करना संभव होगा। यह कदम मतदाता सूची पर लगातार उठते संदेहों को कम कर सकता है।
CCTV फुटेज संरक्षित रखने पर स्पष्ट नीति
दूसरी मांग चुनावी CCTV फुटेज की सुरक्षा अवधि बढ़ाने से जुड़ी है। आयोग द्वारा फुटेज 45 दिन बाद हटाने का निर्णय कई सवाल खड़ा करता है, क्योंकि शिकायतें अक्सर चुनाव Complaints often arise during elections के बाद सामने आती हैं। यदि फुटेज उपलब्ध न हो तो किसी भी अनियमितता की जांच अधूरी रह जाती है। कई देशों में चुनावी रिकॉर्ड वर्षों तक सुरक्षित रखे जाते हैं। भारत में भी डिजिटल स्टोरेज तकनीक के विस्तार से दीर्घ अवधि तक डेटा संरक्षित रखना कठिन और खर्चीला नहीं माना जाता। यदि रिकॉर्ड लंबे समय तक सुरक्षित रहें, तो चुनावी पारदर्शिता और विश्वसनीयता दोनों बढ़ेंगी।
EVM संरचना और परीक्षण तक विपक्ष की पहुंच
तीसरी मांग Electronic Voting Machine को लेकर है, जो लंबे समय से सार्वजनिक बहस का विषय रहा है। यद्यपि आयोग EVM को सुरक्षित और tamper-proof बताता है, फिर भी कई विशेषज्ञ और राजनीतिक दल स्वतंत्र परीक्षण की आवश्यकता पर जोर देते रहे हैं। राहुल गांधी का सुझाव है कि मशीन का आर्किटेक्चर और परीक्षण प्रक्रिया विपक्ष सहित सभी हितधारकों के लिए खुली होनी चाहिए। इससे तकनीकी संदेहों को कम करने और जनता में विश्वास बढ़ाने में मदद मिलेगी। कई देशों में electronic voting को इसलिए सीमित कर दिया गया क्योंकि तकनीकी पारदर्शिता पर्याप्त नहीं थी। भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में यह कदम चुनावी विश्वसनीयता को मजबूत कर सकता है।
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति और जवाबदेही
चौथी मांग चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति और इम्यूनिटी से जुड़ी है। वर्तमान कानून में चयन समिति से Chief Justice को हटाया गया, जिससे निष्पक्षता पर प्रश्न उठे। सरकार का पक्ष है कि यह सुधार संस्थागत स्वतंत्रता के लिए आवश्यक है, पर आलोचकों का मानना है कि सरकार का बढ़ा प्रभाव आयोग की स्वायत्तता को प्रभावित कर सकता है। विश्व के कई लोकतांत्रिक देशों में नियुक्ति प्रक्रिया संतुलित प्रतिनिधित्व वाले पैनल द्वारा की जाती है। भारत में भी यदि चयन संरचना अधिक स्वतंत्र और संतुलित हो, तो मतदान प्रक्रिया में सार्वजनिक भरोसा और मजबूत हो सकता है। साथ ही, आयुक्तों की पूर्ण इम्यूनिटी पर भी बहस जारी है, ताकि जवाबदेही और संस्थागत स्वतंत्रता के बीच संतुलन बना रहे।



