सस्ती बिजली का बड़ा फायदा नहीं मिल रही प्रदेशवासियों को…
जोधपुर। राजस्थान के बिजली कंज़्यूमरों (Electricity Consumers) को एक ओर गवर्नमेंट फ्यूल सरचार्ज (Fuel surcharge) के नाम पर महंगी बिजली के झटके दे रही है, दूसरी ओर विश्व के सबसे बड़े सोलर प्लांट से मिल रही ‘हमारी’ सस्ती बिजली दूसरे राज्यों (Other States) में बेची जा रही है। प्रदेश के सोलर के साथ ही विंड एनर्जी (Solar and Wind Energy)
दरअसल, सोलर पार्क बनाने के लिए सबसे अधिक टेम्परेचर वाली जमीन ही नहीं, बल्कि पूरे वर्ष सबसे अधिक सनी डेज यानी साफ मौसम वाले दिन और हजारों हेक्टेयर बंजर जमीन चाहिए। ये सारी चीजें भड़ला गांव में होने के चलते यहां सबसे बड़ा सोलर पार्क बना।
सोलर पॉलिसी में सस्ती बिजली देने का अनुबंध नहीं
विश्व का सबसे बड़ा सोलर प्लांट न केवल जोधपुर में है, बल्कि राष्ट्र में सबसे अधिक 1. 2. रेडिएशन (सौर ऊर्जा) राजस्थान में ही है। यहां प्रति वर्गमीटर एरिया से हर वर्ष 5.72 यूनिट सौर ऊर्जा उत्पादन की क्षमता है। जबकि, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक सहित अन्य राज्य हमसे काफी पीछे हैं। इसी कारण बड़ी कंपनियां राजस्थान में सोलर पार्क लगाने के लिए निवेश कर रही हैं। गवर्नमेंट भी इन्हें जमीन आवंटित कर रही है। लेकिन न तो सोलर पॉलिसी और न ही अनुबंध में बाध्यता है कि कंपनियां सस्ती बिजली का कुछ हिस्सा राजस्थान को जरूरी रूप से देंगी।
सीएम की घोषणा को अफसरों ने धरातल पर नहीं उतारा
मुख्यमंत्री गहलोत ने पिछले बजट में इस बारे में बोला था। लेकिन अफसरों ने अभी तक इसे धरातल पर उतारने के लिए कुछ नहीं किया है। प्रदेश में सोलर पार्क विकसित करने वाली कंपनियों के लाभ के लिए बनाई गई अनुबंध शर्तों के कारण ऐसा हो रहा है। इन अनुबंध में राजस्थान डिस्कॉम्स को अधिक सौर ऊर्जा देने बाध्यता नहीं है। साल 2013 में सौर ऊर्जा उत्पादन 667 मेगावाट था और इसमें से प्रदेश को 375 मेगावाट मिलती रही। इस साल जून में 17500 मेगावाट सौर ऊर्जा में से सिर्फ़ 4500 मेगावाट ही मिल रही है। यानि, यह हिस्सा 56 फीसदी से घटकर 26 फीसदी रह गया है। जबकि, इन सालों में बिजली खपत 3.20 लाख यूनिट तक बढ़ गई है। ऐसे में अक्षय ऊर्जा की तुलना में महंगी बिजली खरीदनी पड़ रही है।
भड़ला सोलर पार्क में पांच करोड़ की बचत से मिले फायदा
यह स्थिति तब है, जबकि दुनिया का सबसे बड़ा भड़ला सोलर पार्क जोधपुर में है। इसमें प्रत्येक दिन करीब 88 लाख यूनिट बिजली बनती है। इतनी ही बिजली यदि कोयले से बनाएं तो 76,16,000 पाउंड मतलब 3,454 टन कोयला खर्च होता है। बिजली बनाने के लिए जो कोयला काम में लिया जाता है, वो उच्च ग्रेड का होता है, जिसकी मूल्य करीब 15 हजार रुपये प्रति टन होती है। ऐसे में 3,454 टन कोयल की मूल्य करीब पांच करोड़ होती है। यानि सोलर पैनलों से बिजली बनाने के चलते प्रत्येक दिन पांच करोड़ रुपये की बचत तो हो ही रही है। लेकिन इस बचत का पूरा लाभ प्रदेशवासियों को नहीं मिल रहा है।
करोड़ों का निवेश, यूपी तक बिजली की सप्लाई
सोलर पार्क में बनने वाली बिजली को एनटीपीसी और सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया खरीदता है। बिजली को ग्रिड सब-स्टेशन और हाईटेंशन लाइनों के जरिए प्रदेश के भिन्न-भिन्न हिस्सों में पहुंचाया जाता है। इस सबसे बड़े सोलर पार्क में करीब 18 कंपनियों ने 9,900 करोड़ का निवेश किया है। सोलर प्लांट्स से सालाना 33 हजार 165 लाख यूनिट बिजली बनती है। ये इतनी है कि सालभर में 22 लाख से अधिक घरों को रोशन कर सकती है। यहां से 750 मेगावॉट बिजली यूपी को और अन्य स्थान भी सप्लाई हो रही है।