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पहियों के बजाय चुम्बकों की सहायता से, पटरियों को छुए बिना फिसलती हुई दौड़ेंगी ट्रेनें

revolution in train travel: इटली की एक स्टार्ट-अप कंपनी ‘आयरनलेव’ (Italian company Ironlev) रेल परिवहन में एक नयी क्रांति लाना चाहती है. वह एक ऐसी तकनीक विकसित कर रही है, जिस से भावी मालगाड़ियां और यात्री रेलगाड़ियां, पहियों के बजाय चुम्बकों की सहायता से, पटरियों को छुए बिना उन पर फिसलती हुई दौड़ेंगी. उनके लिए आजकल की रेल पटरियों के अतिरिक्त किसी विशेष प्रकार की पटरियों की कोई जरूरत नहीं होगी.

इसे साबित करने के लिए इस कंपनी ने जो पहला परीक्षण गाड़ी बनाया है, वह एक छोटी कार के आकार और वजन वाले एक बॉक्स के समान है. एक टन भारी इस प्रोटोटाइप ने इंजीनियरों द्वारा मौजूदा रेलवे लाइन पर परीक्षण में, रेलवे लाइन में बिना किसी परिवर्तन के, दो किलोमीटर की दूरी तय की. पिछले मार्च महीने में हुए इस परीक्षण के समय उसकी अधिकतम गति 70 किलोमीटर प्रतिघंटा थी. उसमें कोई ड्राइवर नहीं बैठा था. वह पूरी तरह स्वचालित थी.

सक्रिय ऊर्जा की जरूरत नहीं होती : ऐसी ‘होवरिंग’ (हल्का-सा उठकर मंडराती) ट्रेनें ऊर्जा के एक्टिव इस्तेमाल के बिना चलती हैं. ‘आयरनलेव’ में पहियों की स्थान ऐसे चुंबकीय ‘स्किड’ (फिसलन) लगे होते हैं, जो लोहे की रेलपटरी के साथ संपर्क बनाए रखते हैं, ताकि गाड़ी पटरी पर से उतरे नहीं. इस तकनीक को ‘निष्क्रिय लौहचुंबकीय उत्तोलन’ (पैसिव फे़रोमाग्नेटिक लेविटेशन) बोला जाता है. इसके लिए चुंबकीय प्रतिकर्षण सिद्धांत का इस्तेमाल किया जाता है.

लौहचुंबकीय उत्तोलन का वैज्ञानिक पक्ष : जब भी लोहे के दो टुकड़े एक साथ रखे जाते हैं और एक चुंबक उनके पास लाया जाता है, तो लोहे के दोनों टुकड़े एक-दूसरे को पीछे धकेलते हैं. यह प्रतिकर्षण बल बाहरी चुंबकीय क्षेत्र के कारण पैदा होता है. बाहरी चुंबकीय क्षेत्र, लोहे के टुकड़ों के एकसमान पक्षों में एकसमान चुंबकीय ध्रुव प्रेरित करता है. यदि चुंबक एक विद्युत-चुंबक होता है, तो चुंबकीय क्षेत्र की शक्ति को, चुंबक को मिल रही बिजली की धारा के नियंत्रण द्वारा घटाया-बढ़ाया या बिल्कुल से रोका जा सकता है.

इस समय की पारंपरिक ट्रेनों की तुलना में इस तकनीक के कई निर्णायक फायदा हैं. गाड़ी और रेल पटरी के बीच कोई संपर्क नहीं होता, इसलिए न तो कोई घर्षण होता है और न घर्षण से पैदा होने वाला कोई घिसाव, कंपन या शोर. पटरियों को भी कोई हानि नहीं पहुंचता. इस कारण यह प्रणाली शहरों के भीतर यातायात और परिवहन के लिए भी बहुत उपयोगी है.

अन्य क्षेत्रों में भी इस्तेमाल संभव है : ‘आयरनलेव’ ने इससे पहले एक लिफ्ट विकसित की है, जो चुंबकीय उत्तोलन तकनीक पर आधारित है. ट्रेन यातायात के लिए, ‘आयरनलेव’ कंपनी अगले चरण में 20 टन भारी  एक ऐसी ट्रेन बनाने जा रही है, जो 200 किमी प्रतिघंटे की गति से रेलपटरी पर ‘तैर’ सके.

चुंबकीय उत्तोलन (लेविटेशन) वैसे तो कोई बहुत नयी तकनीक नहीं है. जर्मनी-जापान और कई अन्य राष्ट्रों में इस तकनीक के आधार पर ट्रेनें बनी और चली हैं. पर, वे सामान्य रेल पटरियों पर नहीं, बल्कि खंबों पर चलने वाली मोनोरेल जैसे एक तथाकथित ‘गाइडवे’ पर चलती हैं और बहुत बिजली खाती हैं.

ऐसी पहली ट्रेन : ‘ट्रांसरैपिड’ के नाम से ऐसी पहली ट्रेन 1970 वाले दशक में परीक्षण के तौर पर पहली बार जर्मनी में चली थी. उसकी अधिकतम गति 400 किलोमीटर प्रतिघंटे से भी अधिक थी. यह परीक्षण जर्मनी के एम्सलैंड क्षेत्र में कई सालों तक चला, पर जर्मन रेल या जर्मनी का कोई शहर अथवा राज्य उसे अपनाने के लिए तैयार नहीं हुआ. जर्मनी ने सारे तकनीकी ज्ञान सहित अंततः उसे चीन को बेच दिया. वहां जर्मन तकनीक वाली ‘ट्रांसरैपिड’ ट्रेनें, 2002 से 30 किलोमीटर लंबे एक मार्ग पर, शंघाई के हवाई अड्डे और वहां के प्रदर्शनी केंद्र के बीच चल रही हैं. पर, तकनीकी दृष्टि से वे बहुत जटिल और ख़र्चीली हैं.

इटली की ‘आयरनलेव’ कंपनी की ‘निष्क्रिय लौहचुंबकीय उत्तोलन’ वाली ट्रेन की सबसे बड़ी तकनीकी खासियत यही है कि वह आजकल की उन्हीं सामन्य रेल पटरियों पर चलने के लिए ही बनी होगी, जो पहले से ही हैं, न कि उन्हें नए सिरे से बिछाना है. वह तकनीकी दृष्टि से भी बहुत जटिल नहीं होगी और निर्माण एवं परिचालन में भी सस्ती पड़ेगी. उसके लिए अलग से बिजली के ओवरहेड तार की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी.

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