झारखण्ड

Jharkhand Raj Bhavan Renaming: आखिर किसने रखा राजभवन का नाम बदलने का प्रस्ताव, अब कहलाएगा ‘बिरसा भवन’…

Jharkhand Raj Bhavan Renaming: झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने राज्य की पहचान और सांस्कृतिक विरासत को मजबूत करने के लिए बड़ा फैसला लिया है (governance)। संसदीय कार्य मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने बुधवार को विधानसभा में घोषणा की कि रांची के राज भवन का नाम बदलकर अब बिरसा भवन किया जाएगा। इस प्रस्ताव ने राजनीति से लेकर सामाजिक हलकों तक नई बहस छेड़ दी है।

Jharkhand Raj Bhavan Renaming
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दो राज भवनों के नए नामों की आधिकारिक घोषणा

सदन में मंत्री ने बताया कि रांची के राज भवन का नया नाम (Jharkhand Raj Bhavan Renaming) भगवान बिरसा मुंडा के सम्मान में बिरसा भवन रखा जाएगा (heritage)। वहीं संथाल परगना के दुमका स्थित राज भवन को सिदो-कान्हू भवन नाम दिया जाएगा, जो संताल विद्रोह के अमर वीर सिदो और कान्हू मुरमू के योगदान को समर्पित होगा। इन दोनों नामों को झारखंड की ऐतिहासिक और आदिवासी पहचान से गहराई से जुड़ा बताया जा रहा है।


राज भवन राज्य की संपत्ति, राज्य सरकार का पूरा अधिकार

मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने स्पष्ट किया कि राज भवन राज्य सरकार का हिस्सा है और संविधान के अनुच्छेद 154 के मुताबिक राज्य की कार्यकारी शक्ति गवर्नर में निहित होती है (authority)। उन्होंने कहा कि गवर्नर का कार्यालय भी राज्य का हिस्सा है और राज्य सरकार को अपनी संपत्ति और भवनों का नाम बदलने का पूरा अधिकार प्राप्त है। इस दलील ने सरकार के निर्णय को कानूनी मजबूती प्रदान की है।


केंद्र सरकार के आदेश के बाद झारखंड का नया प्रस्ताव

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 3 दिसंबर को पूरे भारत में सभी राज भवनों का नाम बदलकर लोक भवन करने का आदेश दिया था (administration)। झारखंड सरकार ने भी इसे तुरंत लागू कर दिया था। हालांकि, अब हेमंत सोरेन सरकार ने अपनी सांस्कृतिक विरासत और स्थानीय पहचान को प्राथमिकता देते हुए नया प्रस्ताव पेश किया है, जो केंद्र के आदेश से बिल्कुल अलग दिशा में जाता है।


रांची राज भवन का इतिहास और महत्व

रांची का राज भवन न केवल राजनीतिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है (history)। लगभग 52 एकड़ में फैला यह भवन ब्रिटिश काल में बनाया गया था। इसके साथ ही पास में स्थित 10 एकड़ का ऑड्रे हाउस भी इस परिसर का हिस्सा है। इस भवन की नींव 1930 में रखी गई थी और लगभग 7 लाख रुपये की लागत से मार्च 1931 में यह तैयार हुआ। झारखंड गठन के बाद यह भवन राज्य की प्रशासनिक शान का प्रतीक बना।


नाम बदलने से जुड़ी राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

राज भवन का नाम बदलने की इस पहल को झारखंड की राजनीति में अलग-अलग नजरिए से देखा जा रहा है (politics)। आदिवासी संगठनों ने इस कदम का स्वागत करते हुए कहा कि यह दिवंगत नायकों को सच्ची श्रद्धांजलि है। वहीं कुछ राजनीतिक दलों ने इसे सरकार की “पहचान आधारित राजनीति” करार दिया है। इससे राज्य में नई राजनीतिक बहस और मतभेद भी उभरते दिखाई दे रहे हैं।


राज्य की सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने का प्रयास

झारखंड सरकार का कहना है कि यह कदम केवल नाम बदलने भर का नहीं है, बल्कि यह राज्य की सांस्कृतिक विरासत को सम्मान देने का एक बड़ा प्रयास है (culture)। बिरसा मुंडा, सिदो और कान्हू जैसे महान क्रांतिकारियों के नाम को राज भवनों से जोड़ने से आदिवासी इतिहास को नई पहचान मिलने की उम्मीद है। यह निर्णय युवाओं में भी अतीत के संघर्षों और नायकों के योगदान को जानने की उत्सुकता को बढ़ा सकता है।


भविष्य में और भी संस्थानों के नाम बदलने की संभावना

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि यह प्रस्ताव सफलतापूर्वक लागू हो जाता है, तो आगे और भी सरकारी भवनों तथा संस्थानों के नाम स्थानीय नायकों और जननायकों पर रखे जा सकते हैं (future)। इससे झारखंड की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक छवि और मजबूत होगी तथा राज्य अपनी विशिष्ट पहचान को राष्ट्रीय स्तर पर और पुख्ता तरीके से प्रस्तुत कर सकेगा।

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