Jharkhand 108 Ambulance Service Crisis: तड़पती सांसें और सिस्टम की बेरुखी के बीच 108 एंबुलेंस सेवा पर गिरेगी गाज
Jharkhand 108 Ambulance Service Crisis: झारखंड की जीवनरेखा मानी जाने वाली 108 एंबुलेंस सेवा इन दिनों खुद वेंटिलेटर पर नजर आ रही है। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी ने एंबुलेंस संचालन में हो रही भारी लापरवाही पर कड़ा रुख अख्तियार करते हुए संचालन करने वाली कंपनी ‘सम्मान फाउंडेशन’ को डिबार करने का स्पष्ट ऐलान कर दिया है। मंत्री ने स्वीकार किया कि वर्तमान में (Emergency Medical Services) की स्थिति अत्यंत दयनीय हो चुकी है, जिसके कारण आपातकालीन स्थितियों में मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा है। सरकार अब इस एजेंसी को हटाकर किसी ऐसी संस्था को जिम्मेदारी सौंपने की तैयारी में है जो संवेदनशीलता के साथ काम कर सके।
रांची स्टेशन पर बुजुर्ग की तड़प ने झकझोरा
इस पूरे विवाद और कार्रवाई की जड़ में रांची रेलवे स्टेशन के बाहर घटी एक हृदयविदारक घटना है। एक बुजुर्ग सड़क दुर्घटना का शिकार होकर सड़क पर दर्द से छटपटा रहे थे, लेकिन बार-बार फोन करने के बावजूद करीब 45 मिनट तक 108 एंबुलेंस मौके पर नहीं पहुंची। इस (Ambulance Response Time Delay) के कारण बुजुर्ग की जान पर बन आई थी, जिसके बाद स्थानीय चुटिया थाना की पुलिस टीम ने मानवता दिखाते हुए उन्हें अस्पताल पहुंचाया। इस घटना की खबर मीडिया में प्रमुखता से आने के बाद स्वास्थ्य विभाग की नींद टूटी और व्यवस्था की खामियां उजागर हुईं।
कम रेट पर काम लेना बना जी का जंजाल
स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी ने खुलासा किया कि सम्मान फाउंडेशन ने पूर्व स्वास्थ्य मंत्री के कार्यकाल के दौरान बाजार दर से काफी कम कीमत पर इस सेवा का टेंडर हासिल कर लिया था। अब कंपनी वित्तीय बोझ के कारण (Operational Management Failure) का सामना कर रही है और एंबुलेंस का रखरखाव करने में पूरी तरह विफल साबित हुई है। मंत्री का कहना है कि कम पैसे में काम लेने के चक्कर में कंपनी ने गुणवत्ता से समझौता किया, जिसका खामियाजा आज झारखंड की भोली-भाली जनता को अपनी जान जोखिम में डालकर भुगतना पड़ रहा है।
कर्मचारियों का शोषण और वेतन का संकट
सम्मान फाउंडेशन की बदहाली का असर केवल मरीजों पर ही नहीं, बल्कि वहां काम करने वाले कर्मचारियों पर भी पड़ रहा है। 108 एंबुलेंस कर्मचारी संघ ने आरोप लगाया है कि उन्हें कई-कई महीनों तक वेतन नहीं दिया जा रहा है, जिससे उनके परिवारों के सामने (Financial Hardship for Workers) की स्थिति पैदा हो गई है। कर्मचारियों का कहना है कि वेतन मांगना उनके लिए अपराध बन गया है और कंपनी प्रबंधन उनकी जायज मांगों को सुनने के बजाय उन्हें डराने-धमकाने का काम कर रहा है।
18 घंटे की ड्यूटी और जान से मारने की धमकी
कर्मचारियों की व्यथा यहीं खत्म नहीं होती; उनसे बिना किसी साप्ताहिक अवकाश के लगातार 18-18 घंटे काम लिया जा रहा है। इस (Labor Law Violations) के खिलाफ आवाज उठाने वाले संघ के नेताओं को कंपनी द्वारा जान से मारने की धमकियां दी जा रही हैं। संघ के प्रदेश अध्यक्ष नीरज तिवारी ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें न केवल निलंबित किया गया, बल्कि उनके खिलाफ झूठी प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई ताकि आंदोलन को दबाया जा सके। कर्मचारी अब अपनी सुरक्षा और अधिकारों के लिए सड़क पर उतरने को तैयार हैं।
ऑफरोड एंबुलेंस और विभाग की चेतावनी
स्वास्थ्य विभाग की समीक्षा बैठकों में यह बात सामने आई है कि राज्य में कुल 543 एंबुलेंस में से एक बड़ा हिस्सा खराब होकर खड़ा है। पूर्व में अपर मुख्य सचिव अजय कुमार सिंह ने कंपनी को सख्त हिदायत देते हुए (Off Road Ambulance Repair) को समय सीमा के भीतर पूरा करने का निर्देश दिया था। बावजूद इसके, आज भी 63 एंबुलेंस पटरियों से उतरी हुई हैं। विभाग ने कंपनी के ढुलमुल रवैये को देखते हुए उस पर 20 लाख रुपये का जुर्माना लगाने की चेतावनी भी दी थी, लेकिन स्थिति में कोई खास सुधार नहीं देखा गया।
शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ा रिस्पांस टाइम
इमरजेंसी सेवा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू समय होता है, लेकिन झारखंड में यह मानक पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है। विभाग ने निर्देश दिया था कि (Urban and Rural Response Standards) के तहत एंबुलेंस को शहरों में 25 मिनट और गांवों में 35 मिनट के भीतर पहुंचना चाहिए। जमीनी हकीकत यह है कि यह समय सीमा कागजों तक ही सीमित रह गई है। रिस्पांस टाइम कम करने के बजाय कंपनी प्रबंधन आंतरिक कलह और संसाधनों की कमी का रोना रो रहा है, जिससे स्वास्थ्य ढांचे की साख गिर रही है।
नई एजेंसी की तलाश और बेहतर भविष्य की उम्मीद
झारखंड सरकार अब एक पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से नई एजेंसी का चुनाव करने की ओर बढ़ रही है। स्वास्थ्य मंत्री ने आश्वस्त किया है कि (Public Health Infrastructure Improvement) के लिए जल्द ही कड़े कदम उठाए जाएंगे। राज्यवासियों को बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराना सरकार की प्राथमिकता है और इसमें बाधा बनने वाली किसी भी निजी कंपनी को बख्शा नहीं जाएगा। अब देखना यह होगा कि सम्मान फाउंडेशन के हटने के बाद झारखंड की स्वास्थ्य सेवाओं में कितनी जल्दी और कितना बड़ा सुधार आता है।