South Korea Special Courts Bill Passed: दक्षिण कोरिया में विद्रोह मामलों के लिए मैदान में उतारी गईं विशेष अदालतें, अब होगा पानी का पानी और दूध का दूध…
South Korea Special Courts Bill Passed: दक्षिण कोरिया की राजनीति में एक बार फिर भूचाल आ गया है। संसद ने देशद्रोह, विद्रोह और विदेशी साजिश जैसे गंभीर अपराधों से निपटने के लिए विशेष अदालतों के गठन से संबंधित एक महत्वपूर्ण विधेयक को अपनी मंजूरी दे दी है। यह कदम तब उठाया गया है जब पूर्व राष्ट्रपति यून सुक योल (Yoon Suk Yeol Rebellion Case) के खिलाफ चल रहे मुकदमों में हो रही देरी को लेकर जनता और राजनीतिक गलियारों में भारी असंतोष देखा जा रहा था। इस कानून का उद्देश्य संवेदनशील और राष्ट्र विरोधी मामलों की सुनवाई में तेजी लाना और पारदर्शिता सुनिश्चित करना है।
सियोल की अदालतों में बनेंगी विशेष न्यायिक पीठें
नए कानून के प्रावधानों के अनुसार, सियोल सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट और सियोल हाई कोर्ट में विशेष रूप से इन मामलों के लिए कम से कम दो ‘विशेष पीठों’ का गठन किया जाएगा। प्रत्येक पीठ में (Special Judicial Bench Composition) के तहत तीन अनुभवी न्यायाधीश होंगे। इन न्यायाधीशों का चयन किसी रैंडम प्रक्रिया के बजाय संबंधित अदालत की जज काउंसिल द्वारा किया जाएगा, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सबसे योग्य और निष्पक्ष जज ही इन राष्ट्रीय महत्व के मामलों की सुनवाई करें।
संसद में भारी बहुमत बनाम विपक्ष का बहिष्कार
विधेयक को पारित करने की प्रक्रिया काफी हंगामेदार रही। संसद में यह बिल 175-2 के प्रचंड बहुमत से पारित हुआ, लेकिन इसकी राह आसान नहीं थी। मुख्य विपक्षी दल पीपल पावर पार्टी (PPP Opposition to Bill) ने इस प्रक्रिया का कड़ा विरोध किया और मतदान का बहिष्कार किया। विपक्ष का आरोप है कि यह कानून न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कुचलने और सत्तारूढ़ दल के राजनीतिक हितों को साधने के लिए बनाया गया है।
फाइलबस्टर और न्यायिक स्वतंत्रता पर तीखी बहस
पीपीपी नेता जांग डोंग-ह्युक ने इस विधेयक को रोकने के लिए संसद में 24 घंटे का लंबा ‘फाइलबस्टर’ किया। उन्होंने सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी पर (Interference in Judicial Independence) का आरोप लगाते हुए कहा कि अदालतों पर दबाव बनाकर मनचाहे फैसले लेने की कोशिश की जा रही है। विपक्ष ने ली जे म्युंग से इस कानून पर ‘वीटो’ लगाने की मांग की है, ताकि लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की जा सके और न्यायपालिका को राजनीति से दूर रखा जा सके।
यून सुक योल का मार्शल लॉ और गिरफ्तारी की दास्तां
इस कानून की जड़ें पूर्व राष्ट्रपति यून सुक योल के उन फैसलों में छिपी हैं, जिन्होंने दिसंबर 2024 में देश को हिला कर रख दिया था। यून ने (Martial Law and Power Grab Attempt) के जरिए सत्ता पर काबिज रहने की नाकाम कोशिश की थी। इसके बाद अप्रैल में उन्हें पद से हटाया गया और जुलाई में उनकी दोबारा गिरफ्तारी हुई। उन पर विद्रोह, तख्तापलट की साजिश और संविधान के उल्लंघन जैसे संगीन आरोप हैं, जिनमें सजा-ए-मौत तक का प्रावधान है।
क्या नए कानून से बदलेगा यून सुक योल का भाग्य?
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि नए कानून का असर पूर्व राष्ट्रपति के वर्तमान ट्रायल पर तुरंत नहीं पड़ेगा। हालांकि, यदि मामला ऊपरी अदालत यानी (Seoul High Court Appeal Process) तक पहुँचता है, तो वहां की सुनवाई अनिवार्य रूप से इन्हीं विशेष पीठों द्वारा की जाएगी। डेमोक्रेटिक पार्टी ने वर्तमान जज पर कार्यवाही को जानबूझकर लटकाने का आरोप लगाया है, इसीलिए रैंडम नियुक्ति की पुरानी परंपरा को बदलकर विशेष पीठों का सहारा लिया जा रहा है।
न्यायपालिका की निष्पक्षता पर खड़ा हुआ बड़ा सवाल
दक्षिण कोरिया में इस समय न्यायपालिका की भूमिका को लेकर एक व्यापक राष्ट्रीय बहस छिड़ गई है। जहाँ (Democratic Party Judicial Reforms) के समर्थकों का तर्क है कि देशद्रोह जैसे मामलों में जजों की नियुक्ति रैंडम आधार पर नहीं होनी चाहिए, वहीं न्यायपालिका के स्वतंत्र पैरोकारों का मानना है कि यह कदम जजों को डराने और उन्हें सरकार के प्रति जवाबदेह बनाने की एक चाल हो सकती है। यह कानून आने वाले समय में दक्षिण कोरियाई लोकतंत्र की मजबूती का लिटमस टेस्ट साबित होगा।
भविष्य की राह: त्वरित न्याय या राजनीतिक प्रतिशोध?
विधेयक के पारित होने के बाद अब गेंद राष्ट्रपति के पाले में है। यदि यह कानून लागू होता है, तो दक्षिण कोरिया (Specialized Legal Proceedings) के एक नए युग में प्रवेश करेगा। सरकार का दावा है कि इससे राष्ट्रद्रोहियों को सजा मिलने में तेजी आएगी, जबकि विरोधियों को डर है कि यह ‘कंगारू कोर्ट’ जैसी व्यवस्था की शुरुआत हो सकती है। दक्षिण कोरिया की जनता अब केवल यह चाहती है कि जो भी हो, वह देश के संविधान और न्याय की गरिमा के अनुरूप हो।