Bangladesh Diplomatic Crisis: पड़ोसी मुल्क से आई आहट, क्या बांग्लादेश फिर से बनने जा रहा है पूर्वी पाकिस्तान…
Bangladesh Diplomatic Crisis: इन दिनों बांग्लादेश की सरजमीं हिंसा, नफरत और अस्थिरता का केंद्र बन चुकी है, जिसका सीधा असर भारत के साथ उसके कूटनीतिक रिश्तों पर पड़ रहा है। दोनों देशों के बीच तनाव इस कदर बढ़ गया है कि वीजा सेवाओं को अनिश्चितकाल के लिए निलंबित करने का फैसला लेना पड़ा है। विदेश मामलों के विशेषज्ञों ने इस स्थिति पर गहरी चिंता जताते हुए बांग्लादेश की अंतरिम सरकार की कार्यप्रणाली की कड़ी आलोचना की है। (International Relations) के जानकारों का मानना है कि बांग्लादेश इस समय एक ऐसे खतरनाक मोड़ पर खड़ा है जहाँ से उसकी वापसी मुश्किल नजर आ रही है।
सुशांत सरीन का बड़ा दावा: पाकिस्तान की कठपुतली बनी बांग्लादेश सरकार
प्रख्यात विदेश मामलों के विशेषज्ञ सुशांत सरीन ने मौजूदा हालात का विश्लेषण करते हुए एक चौंकाने वाला बयान दिया है। उनका कहना है कि बांग्लादेश की वर्तमान सरकार अपनी जड़ों को फिर से पाकिस्तान में तलाश रही है और वह पूरी तरह से इस्लामाबाद के इशारों पर नाच रही है। सरीन के अनुसार, यह (Geopolitical Shift) केवल संयोग नहीं है बल्कि एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। उन्होंने मौजूदा शासन को ‘बिना चुना हुआ और गैर-कानूनी’ करार देते हुए कहा कि बांग्लादेश की प्रतिक्रियाएं अब तार्किक न होकर हास्यास्पद और बेतुकी होती जा रही हैं।
अल्पसंख्यकों पर जुल्म और भारतीय मिशनों के बाहर उग्र प्रदर्शन
बांग्लादेश के भीतर अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों ने वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के दावों की पोल खोल दी है। कट्टरपंथी नेता उस्मान हादी की मौत के बाद भड़की हिंसा ने आग में घी डालने का काम किया है। इस दौरान (Human Rights Violations) की ऐसी खबरें आईं जिन्होंने मानवता को शर्मसार कर दिया। उग्र भीड़ ने ढाका स्थित भारतीय मिशनों को भी अपना निशाना बनाने की कोशिश की, जिससे वहां काम कर रहे अधिकारियों और उनके परिवारों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
वीजा सेवाओं का निलंबन: सुरक्षा बनाम कूटनीतिक ‘जैसे को तैसा’ कार्ड
सुरक्षा की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए भारत सरकार ने बांग्लादेश में अपनी वीजा सेवाएं अस्थायी रूप से बंद कर दीं। भारत का यह कदम विशुद्ध रूप से सुरक्षा कारणों से प्रेरित था, लेकिन इसके जवाब में बांग्लादेश ने भी भारत में अपनी वीजा सेवाएं बंद करने का एलान कर दिया। सरीन का तर्क है कि (Visa Services Suspension) को लेकर बांग्लादेश का तर्क पूरी तरह झूठा है। भारत में बांग्लादेशी मिशनों को कोई खतरा नहीं है, फिर भी उन्होंने ‘जैसे को तैसा’ की नीति अपनाकर केवल अपनी अकड़ दिखाने की कोशिश की है, जो कि पाकिस्तानी शैली की कूटनीति का हिस्सा है।
पाकिस्तानी अधिकारियों की बांग्लादेशी दफ्तरों में बढ़ती दखलअंदाजी
विशेषज्ञों ने उन रिपोर्टों पर भी ध्यान आकर्षित किया है जिनमें दावा किया गया है कि पाकिस्तानी सरकार के कुछ सलाहकार अब सीधे तौर पर बांग्लादेशी सरकारी दफ्तरों में बैठकर नीतियां बना रहे हैं। यह (Sovereignty Issue) बांग्लादेश की संप्रभुता के लिए एक बड़ा खतरा है। अगर विदेशी ताकतें किसी देश की सरकार को नियंत्रित करने लगें, तो वहां की जनता का भविष्य अंधकारमय हो जाता है। सुशांत सरीन के अनुसार, बांग्लादेश की वर्तमान सत्ता अब पूरी तरह से ‘पाकिस्तान की जेब में’ जा चुकी है।
रक्षा सौदे की आहट और भारत के लिए बढ़ता सुरक्षा खतरा
सबसे चिंताजनक रिपोर्ट यह है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच एक बड़ा रक्षा समझौता होने की संभावना है। यदि ऐसा होता है, तो भविष्य में बांग्लादेश की धरती पर पाकिस्तानी सैनिकों की मौजूदगी देखी जा सकती है। यह (Border Security) के लिहाज से भारत के लिए एक बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है। जानकारों का कहना है कि बांग्लादेश जल्द ही भारत के खिलाफ इस्तेमाल होने वाली एक ‘पाकिस्तानी चौकी’ बन सकता है, जिसे भारत कभी बर्दाश्त नहीं करेगा।
रणनीतिक संयम या रणनीतिक लकवा: भारत के सामने बड़ी चुनौती
भारत की अब तक की प्रतिक्रिया को कई लोग ‘रणनीतिक संयम’ कह रहे हैं, लेकिन सुशांत सरीन जैसे विशेषज्ञ इसे ‘रणनीतिक लकवा’ की संज्ञा देने से भी नहीं चूक रहे। उनका मानना है कि भारत को अब केवल निगरानी करने के बजाय (Foreign Policy Action) की दिशा में कड़े कदम उठाने की जरूरत है। अगर समय रहते कूटनीतिक और रणनीतिक स्तर पर कुछ नहीं किया गया, तो यह न केवल भारत के लिए बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की शांति के लिए एक बहुत बड़ा सबक और खतरा बन जाएगा।
दुनिया के लिए एक कड़वा सबक: अराजकता का अंतहीन सिलसिला
अंततः, बांग्लादेश की यह स्थिति पूरी दुनिया के लिए एक चेतावनी है कि किस तरह कट्टरपंथ और बाहरी दखलअंदाजी एक उभरते हुए देश को बर्बादी के कगार पर ले जा सकती है। (Regional Stability) को बचाने के लिए अब अंतरराष्ट्रीय समुदायों को भी इस पर ध्यान देना होगा। भारत को अपने पड़ोसी से निपटने के लिए नई और कठोर नीतियों पर विचार करना होगा ताकि उसकी अपनी आंतरिक सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता पर कोई आंच न आए।