कन्नड़ सुपरस्टार शिवा राजकुमार की फिल्म ‘घोस्ट’ अब हिंदी में डब होकर आई उत्तर भारतीय सिनेमाघरों में…
जब से कन्नड़ फिल्म ‘केजीएफ’ और इसके सीक्वल को कामयाबी मिली है, तब से कन्नड़ सिनेमा के निर्माताओं को भी तेलुगु, तमिल और मलयालम सिनेमा की डब फिल्मों की तरह हिंदी में नया बिजनेस नजर आने लगा है। कन्नड़ भाषा में बनी फिल्म ‘कंतारा’ ने उत्तर में कन्नड़ फिल्म उद्योग के लिए भी एक नयी दिशा खोली है। इन्हीं फिल्मों की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए कन्नड़ सुपरस्टार शिवा राजकुमार की फिल्म ‘घोस्ट’ अब हिंदी में डब होकर उत्तर भारतीय सिनेमाघरों में आ चुकी है। इस सप्ताह बॉक्स ऑफिस पर तीन हिंदी और चार साउथ फिल्मों के बीच जबरदस्त भिड़न्त है।
इस सप्ताह अब तक लोगों की दिलचस्पी इस बात में बनी हुई है कि राष्ट्र के सबसे बड़े चोर कहे जाने वाले ‘टाइगर नागेश्वर राव’ पर आधारित फिल्म कैसी होगी। लेकिन, फिल्म ‘घोस्ट’ देखने आए लोगों के लिए आश्चर्य की बात ये है कि ये कोई हॉरर फिल्म नहीं बल्कि एक बड़ी डकैती पर आधारित फिल्म है। एक गैंगस्टर अपने साथियों के साथ कारावास में छिपे सोने के भंडार को लूटने के लिए एक कारावास पर कब्ज़ा कर लेता है। उधर, पुलिस प्रशासन यह पता लगाने में परेशान है कि आखिर किस मकसद से गैंगस्टर ने कारावास पर कब्जा किया है। जांच अधिकारी और गैंगस्टर के बीच चूहे-बिल्ली का खेल चलता रहता है। इससे पहले कि जांच अधिकारी गैंगस्टर के मकसद को समझ सके, उसे मुकदमा से हटा दिया जाता है और मुकदमा दूसरे जांच अधिकारी को सौंप दिया जाता है।
फिल्म के अंतिम पांच मिनटों को छोड़ दें तो फिल्म की पूरी कहानी कारावास के अंदर बुनी गई है। वहीं, सबसे घातक एक्शन सीक्वेंस के जरिए दर्शकों को बांधे रखने की प्रयास की गई है। फिल्म के निर्देशक एमजी श्रीनिवास ने गैंगस्टर के भूमिका को आम लोगों की नजर में देवदुत के तौर पर पेश किया है। एकदम ऐसा ही भूमिका साउथ सिनेमा के मास महाराजा अपनी फिल्म ‘टाइगर नागेश्वर राव’ में निभा रहे हैं। यह फिल्म भी डकैती से संबंधित है। जिसमें उनके समुदाय के लोग टाइगर नागेश्वर राव को अपना देवदुत मानते हैं।
फिल्म ‘घोस्ट’ में अदाकार शिव राजकुमार के गैंगस्टर के भूमिका को ऐसे पेश किया गया है जिसके आदेश पर राज्य का पूरा पुलिस प्रशासन चलता है। फिल्म की कहानी ऐसे मोड़ पर समाप्त होती है कि इस फिल्म का सीक्वल बनने की पूरी गुंजाइश है। इस फिल्म की सबसे बड़ी यूएसपी फिल्म के एक्शन सीन हैं। स्पेशल इफेक्ट्स और वीएफएक्स इस फिल्म की जान हैं। फिल्म के सिनेमैटोग्राफर महेंद्र सिम्हा ने एक्शन दृश्यों को बहुत कारगर ढंग से फिल्माया है। इंटरवल के बाद फिल्म थोड़ी लंबी हो जाती है और एक स्थान एक्शन सीन देखकर बोरियत महसूस होने लगती है, फिल्म के एडिटर दीपू एस कुमार कहते हैं, शायद ये महत्वपूर्ण नहीं है। सोचा कि फिल्म के कुछ सीन कम कर दिए जाएं।
शिव राजकुमार और जयराम की अभिनय अच्छी है। CBI अधिकारी की किरदार में प्रशांत नारायण और जेलर की किरदार में सत्य प्रकाश ने अपनी किरदार के साथ पूरा इन्साफ करने की प्रयास की है। अनुपम खेर फिल्म के अंत में सिर्फ़ तीन-चार दृश्यों में ही नजर आते हैं। फिल्म की डबिंग बहुत खराब है। सीएम के सीन में उनके डायलॉग उनकी लिप सिंक से एकदम भी मेल नहीं खाते। फिल्म के बाकी कलाकारों की डबिंग भी काफी जोरों पर है।
 
				
