Fake GST Registration Crackdown: कागज पर कारोबार और करोड़ों की लूट, फर्जी GST नेटवर्क का हुआ भंडाफोड़
Fake GST Registration Crackdown: वित्त मंत्रालय ने देश की आर्थिक सुरक्षा को लेकर सोमवार को संसद के पटल पर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट पेश की है। सरकार द्वारा साझा की गई जानकारी के अनुसार, चालू वित्त वर्ष के दौरान अप्रैल से अक्टूबर के बीच देश में 489 ऐसे जीएसटी पंजीकरण पकड़े गए हैं, जिनका अस्तित्व केवल कागजों पर था। इन फर्जी रजिस्ट्रेशन को अंजाम देने के लिए (Financial Fraud Detection) प्रणालियों को चकमा देकर जाली पैन कार्ड और आधार कार्ड का सहारा लिया गया था। यह खुलासा न केवल टैक्स सिस्टम की खामियों को उजागर करता है, बल्कि यह भी बताता है कि किस तरह अपराधी तकनीक का दुरुपयोग कर सरकारी खजाने को चूना लगा रहे हैं।

3,000 करोड़ की कर चोरी और गिरफ्तारियों का सिलसिला
इस संगठित अपराध की गहराई का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पकड़े गए इन मामलों में 3,000 करोड़ रुपये से अधिक की कर चोरी होने का अनुमान है। वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने लोकसभा में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि इस सात महीने की अवधि में कड़ा रुख अपनाते हुए (Law Enforcement Actions) के तहत 16 मुख्य आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। यह जालसाज जाली बिलिंग के जरिए इनपुट टैक्स क्रेडिट का गलत लाभ उठा रहे थे, जिससे ईमानदारी से टैक्स भरने वाले व्यापारियों और सरकारी राजस्व, दोनों को भारी नुकसान हो रहा था।
भौतिक सत्यापन और डिजिटल स्ट्राइक से साफ हो रहा तंत्र
फर्जीवाड़ा करने वालों पर नकेल कसने के लिए कर अधिकारियों ने एक राष्ट्रव्यापी विशेष अभियान चलाया है। इस मुहिम के तहत अधिकारी संदिग्ध ठिकानों पर जाकर खुद भौतिक सत्यापन कर रहे हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पंजीकृत कंपनियां वास्तव में वहां काम कर रही हैं या नहीं। जांच के दौरान जो कंपनियां मौके पर मौजूद नहीं मिलीं, उनके (GSTIN Cancellation Process) को तत्काल प्रभाव से पूरा किया गया। सरकार अब डिजिटल डेटा में मौजूद छोटी से छोटी विसंगतियों की पहचान करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग कर रही है, ताकि फर्जीवाड़े को जड़ से खत्म किया जा सके।
सुरक्षित निवेश की तलाश और सोने-चांदी की कीमतों में लगी आग
एक ओर जहां घरेलू स्तर पर कर चोरी से मुकाबला किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों ने आम आदमी के लिए निवेश को महंगा कर दिया है। सरकार ने संसद में स्वीकार किया कि वैश्विक स्तर पर बढ़ता भू-राजनीतिक तनाव सोने और चांदी की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी का मुख्य कारण है। दुनिया भर में छाई (Global Market Uncertainty) की वजह से निवेशकों का भरोसा शेयर बाजार के बजाय इन कीमती धातुओं पर बढ़ गया है, क्योंकि इन्हें संकट के समय सबसे सुरक्षित निवेश माना जाता है। इसी मांग ने घरेलू बाजारों में भी कीमतों को आसमान पर पहुंचा दिया है।
विदेशी विनिमय दर और केंद्रीय बैंकों की सोने के प्रति बढ़ती भूख
वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने स्पष्ट किया कि सोने-चांदी की घरेलू कीमतें केवल स्थानीय मांग पर निर्भर नहीं करतीं। अंतरराष्ट्रीय बाजार के भाव के अलावा, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरती (Currency Exchange Rate) की स्थिति भी इन धातुओं को महंगा बना रही है। इसके अतिरिक्त, दुनिया भर के विभिन्न केंद्रीय बैंकों और बड़े संस्थानों ने अपने रिजर्व को मजबूत करने के लिए सोने की भारी खरीददारी शुरू कर दी है। इस संस्थागत मांग ने सप्लाई चेन पर दबाव डाला है, जिसका सीधा असर भारतीय सर्राफा बाजारों की कीमतों पर देखने को मिल रहा है।
कीमतों के निर्धारण में सरकार की भूमिका पर अहम स्पष्टीकरण
संसद में चर्चा के दौरान जब विपक्षी दलों ने बढ़ती कीमतों को लेकर सवाल उठाए, तो सरकार ने अपनी स्थिति पूरी तरह साफ कर दी। मंत्री महोदय ने कहा कि सोने और चांदी की कीमतें पूरी तरह से बाजार की शक्तियों यानी मांग और आपूर्ति द्वारा निर्धारित होती हैं। (Economic Policy Guidelines) के अनुसार, सरकार इन धातुओं की मूल्य निर्धारण प्रक्रिया में प्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप नहीं करती है। हालांकि, सरकार आयात शुल्क और अन्य करों के माध्यम से बाजार को संतुलित करने का प्रयास जरूर करती है, लेकिन वैश्विक कीमतों पर नियंत्रण पाना किसी भी सरकार के लिए संभव नहीं है।
भविष्य की रणनीति और करदाताओं की सुरक्षा का संकल्प
सरकार का मुख्य लक्ष्य अब एक पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त कर प्रणाली स्थापित करना है। आने वाले समय में जीएसटी पंजीकरण की प्रक्रिया को और अधिक सख्त बनाया जा सकता है, जिसमें बायोमेट्रिक सत्यापन जैसे कदम शामिल हो सकते हैं। (Tax System Modernization) के जरिए सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि भविष्य में कोई भी व्यक्ति जाली दस्तावेजों के आधार पर व्यापारिक पंजीकरण न करा सके। जहां एक ओर अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों से निपटने के लिए सुरक्षित निवेश के रास्ते तलाशे जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर आंतरिक व्यवस्था को मजबूत कर अर्थव्यवस्था को पटरी पर रखने की कोशिशें जारी हैं।



