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Dairy Industry Trends: आपकी थाली से गायब होने वाला है दूध और घी, जानें डेयरी संकट और बढ़ती कीमतों का पूरा सच

Dairy Industry Trends: भारतीय डेयरी क्षेत्र पिछले तीन वर्षों के जबरदस्त उतार-चढ़ाव के बाद अब एक ऐसे निर्णायक मोड़ पर खड़ा है जहां सप्लाई सीमित (Supply Chain Management) हो रही है और कंपनियां अपने मुनाफे के गणित को दोबारा ठीक करने में जुटी हैं। सिस्टमैटिक्स इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के हालिया सत्र में विशेषज्ञों ने साफ किया है कि अब उद्योग ‘रीकैलिब्रेशन’ यानी पुनर्संतुलन के दौर में प्रवेश कर चुका है। यह बदलाव न केवल उत्पादकों के लिए बल्कि आम उपभोक्ताओं की जेब पर भी सीधा असर डालने वाला है क्योंकि बाजार की गतिशीलता तेजी से बदल रही है।

Dairy Industry Trends
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कोविड काल की कड़वाहट और किसानों का टूटता भरोसा

डेयरी सेक्टर के लिए 2022-23 का समय किसी बुरे सपने से कम नहीं था जब कोविड के बाद की परिस्थितियों ने दूध की कीमतों को फर्श पर ला दिया था। स्थिति इतनी गंभीर (Agricultural Crisis) हो गई थी कि किसानों को दूध का जो दाम मिल रहा था, उससे उनके पशुओं के चारे और रखरखाव का खर्च भी नहीं निकल पा रहा था। इसका सीधा परिणाम यह हुआ कि किसानों ने पशुओं की संख्या बढ़ाना बंद कर दिया, जिससे देश के कुल दूध उत्पादन में एक बड़ी गिरावट दर्ज की गई और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गहरा धक्का लगा।

भरोसे की बहाली और उत्पादन में आया बड़ा उछाल

साल 2023 के मध्य से डेयरी जगत में नई जान फूंकने की कोशिशें शुरू हुईं जब बड़ी सहकारी समितियों और निजी दिग्गजों ने किसानों के साथ अपने संबंधों को फिर से मजबूत (Dairy Farming Growth) करना शुरू किया। टिकाऊ चारा कार्यक्रमों और बेहतर भुगतान के वादों ने किसानों का भरोसा दोबारा जीता, जिसका सुखद परिणाम 2024-25 के फ्लश सीजन में देखने को मिला। इस दौरान दूध के उत्पादन में लगभग 25 प्रतिशत की भारी वृद्धि दर्ज की गई, जिससे बाजार में कुछ समय के लिए दूध की प्रचुरता हो गई।

सरप्लस दूध को खपाने के लिए कंपनियों की नई रणनीति

जब बाजार में दूध की आवक बढ़ी, तो डेयरी कंपनियों ने इस अतिरिक्त सप्लाई को संभालने के लिए अपनी पूरी ताकत वैल्यू-ऐडेड प्रोडक्ट्स की ओर लगा दी। कोल्ड-चेन इंफ्रास्ट्रक्चर (Cold Storage Infrastructure) को आधुनिक बनाया गया और विज्ञापनों के जरिए पनीर, दही और मक्खन जैसे उत्पादों की मांग पैदा की गई। बड़े खिलाड़ियों ने न केवल बैकएंड निवेश बढ़ाया बल्कि ग्राहकों तक उत्पाद पहुंचाने की अंतिम कड़ी यानी लास्ट-माइल डिलीवरी को भी पूरी तरह दुरुस्त किया ताकि सरप्लस का सही उपयोग हो सके।

मौसम की मार और सप्लाई चेन में पैदा हुआ नया अवरोध

साल 2025 की शुरुआत डेयरी उद्योग के लिए अप्रत्याशित चुनौतियां लेकर आई जब बेमौसम और समय से पहले हुई बारिश ने गर्मी के मांग-आपूर्ति चक्र को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया। प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ भू-राजनीतिक (Geopolitical Impact) तनाव, विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों की हलचल ने पंजाब और हरियाणा जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में दूध के सुचारू प्रवाह को बाधित किया। इसी दौरान त्योहारों की भारी मांग ने कंपनियों के बचे-खुचे स्टॉक को भी तेजी से खत्म कर दिया, जिससे सप्लाई का संकट फिर गहरा गया।

बढ़ती लागत और कीमतों में इजाफे का कड़वा घूंट

वर्तमान स्थिति यह है कि 2025 के दूसरे हिस्से में उद्योग एक बार फिर सीमित सप्लाई के दौर में है, जिससे कंपनियों के लिए दूध की खरीद महंगी हो गई है। हालांकि जीएसटी में कटौती से कुछ राहत मिली थी, लेकिन बढ़ती लागत (Inflation Impact) के कारण बिहार और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में दूध की कीमतें 1 से 1.5 रुपये प्रति लीटर तक बढ़ चुकी हैं। उद्योग जगत अब अप्रैल 2026 के आसपास रमजान के समय खरीद लागत में थोड़ी नरमी आने की उम्मीद लगाए बैठा है, लेकिन तब तक मार्जिन पर दबाव बरकरार रहेगा।

मुनाफे के लिए वैल्यू-ऐडेड प्रोडक्ट्स पर टिका भविष्य

डेयरी कंपनियां अब अपने घटते मुनाफे को बचाने के लिए केवल तरल दूध पर निर्भर रहने के बजाय पनीर, घी और आइसक्रीम जैसे उत्पादों पर दांव लगा रही हैं। अब आइसक्रीम की मांग (Consumer Behavior) केवल गर्मियों तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि यह सालभर चलने वाला बिजनेस बन चुका है। विशेषज्ञ मानते हैं कि कंपनियां अब वॉल्यूम पर ध्यान देने के बजाय प्रीमियम उत्पादों के जरिए अपने बैलेंस शीट को सुधारने की कोशिश करेंगी, जिससे बाजार में प्रतिस्पर्धा और बढ़ेगी।

डिजिटल शॉपिंग और क्विक-कॉमर्स का बढ़ता साम्राज्य

आजकल दूध और दही खरीदने का तरीका भी पूरी तरह बदल चुका है क्योंकि लोग अब पास की दुकान के बजाय क्विक-कॉमर्स और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स को तरजीह दे रहे हैं। डिस्ट्रीब्यूशन के इस नए (Digital Transformation) दौर ने पारंपरिक जनरल ट्रेड के दबदबे को कम कर दिया है। हालांकि मॉडर्न ट्रेड ब्रांड्स को पहचान तो दिलाता है, लेकिन वहां कम मार्जिन होने की वजह से डेयरी कंपनियों को बहुत ही संभलकर अपनी रणनीतियां बनानी पड़ रही हैं ताकि बिजनेस लंबे समय तक टिकाऊ रह सके।

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