Samastipur Sadar Hospital: जिंदगी और मौत के बीच जूझते मरीजों के साथ हुआ खिलवाड़, समस्तीपुर में ताले में बंद मिला ब्लड बैंक
Samastipur Sadar Hospital: बिहार के स्वास्थ्य विभाग में सुधार के दावों के बीच समस्तीपुर से एक ऐसी खबर आई है जो मानवता और कर्तव्यनिष्ठा दोनों पर सवाल खड़े करती है। समस्तीपुर सदर अस्पताल, जो जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ माना जाता है, वहां का ब्लड बैंक अचानक किए गए औचक निरीक्षण के दौरान पूरी तरह बंद पाया गया। जब (Emergency Medical Services) की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, तब रक्त केंद्र का ताले में बंद होना किसी बड़े हादसे को दावत देने जैसा है। अस्पताल प्रशासन ने इस घटना को बेहद गंभीरता से लिया है और दोषियों के खिलाफ सख्त रुख अख्तियार कर लिया है।

औचक निरीक्षण में खुली पोल और उपाधीक्षक की सख्त कार्रवाई
मंगलवार को जब सदर अस्पताल (Samastipur Sadar Hospital) के उपाधीक्षक (डीएस) डॉ. गिरीश कुमार अपनी टीम के साथ अस्पताल परिसर का जायजा ले रहे थे, तब वे ब्लड बैंक पहुंचे। वहां का नजारा देखकर वे दंग रह गए क्योंकि पूरा विभाग बंद पड़ा था। अस्पताल की (Public Health Administration) को ताक पर रखकर किए गए इस कृत्य पर उन्होंने तुरंत संज्ञान लिया। एक ऐसे समय में जब किसी भी दुर्घटना या प्रसव के दौरान खून की तत्काल आवश्यकता पड़ सकती है, वहां किसी भी कर्मचारी का मौजूद न होना प्रशासनिक विफलता का बड़ा प्रमाण है।
हसनपुर कैंप का बहाना और बिना अनुमति मुख्यालय छोड़ने का मामला
निरीक्षण के दौरान जब मौके पर कोई नहीं मिला, तो डीएस ने संबंधित कर्मचारियों से फोन पर संपर्क साधा। कर्मियों ने अपना बचाव करते हुए दलील दी कि वे हसनपुर इलाके में आयोजित एक रक्तदान शिविर में भाग लेने गए हुए थे। हालांकि, प्रशासन ने इस दलील को सिरे से खारिज कर दिया क्योंकि (Departmental Protocol Violation) के तहत बिना किसी पूर्व लिखित सूचना या उच्चाधिकारियों की अनुमति के पूरे ब्लड बैंक को बंद करके जाना पूरी तरह अवैध और गैर-जिम्मेदाराना है। किसी भी कैंप के लिए बैकअप टीम का होना अनिवार्य है, जिसे यहां नजरअंदाज किया गया।
चार कर्मियों के नाम जारी हुआ कारण बताओ नोटिस
इस गंभीर लापरवाही के लिए चार विशिष्ट कर्मियों को चिन्हित किया गया है और उनसे जवाब-तलब किया गया है। जिन लोगों के खिलाफ (Disciplinary Action Inquiry) शुरू की गई है, उनमें परिचारिका श्रेणी-ए कुमारी निशा, लैब टेक्नीशियन सुशांत कुमार, लैब टेक्नीशियन दीपक कुमार और डाटा ऑपरेटर निशु कुमारी शामिल हैं। इन सभी को अगले 24 घंटों के भीतर अपना स्पष्टीकरण कार्यालय में जमा करने का आदेश दिया गया है। अस्पताल प्रबंधन का मानना है कि इन चारों की संयुक्त लापरवाही के कारण घंटों तक स्वास्थ्य सेवाएं बाधित रहीं।
जनहित से खिलवाड़ और विभागीय कार्रवाई की कड़ी चेतावनी
डॉ. गिरीश कुमार ने अपने आधिकारिक पत्र में बहुत कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि ब्लड बैंक एक जीवन रक्षक इकाई है और इसका बंद होना सीधे तौर पर जनहित के विरुद्ध है। उन्होंने इसे (Official Code of Conduct) का खुला उल्लंघन और व्यक्तिगत मनमानी करार दिया है। पत्र में साफ चेतावनी दी गई है कि यदि निर्धारित 24 घंटे की समय सीमा के भीतर संतोषजनक जवाब नहीं मिलता है, तो इन सभी कर्मियों के खिलाफ कड़ी विभागीय कार्रवाई की अनुशंसा की जाएगी, जिसमें निलंबन तक की नौबत आ सकती है।
मरीजों की जान पर मंडराता खतरा और अस्पताल की जवाबदेही
सदर अस्पताल में जिले के दूर-दराज के क्षेत्रों से गरीब मरीज इस उम्मीद में आते हैं कि उन्हें समय पर इलाज और रक्त मिल सकेगा। ब्लड बैंक बंद होने की स्थिति में अगर किसी मरीज को कुछ हो जाता, तो इसकी (Hospital Safety Standards) की जिम्मेदारी कौन लेता? स्थानीय लोगों में भी इस घटना को लेकर काफी आक्रोश है। लोगों का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों की इस तरह की मनमानी पहले भी कई बार देखी गई है, लेकिन इस बार मामला सीधे जीवन सुरक्षा से जुड़ा होने के कारण प्रशासन को कतई ढिलाई नहीं बरतनी चाहिए।
भविष्य के लिए सबक और बेहतर निगरानी का संकल्प
समस्तीपुर की इस घटना ने पूरे बिहार के स्वास्थ्य महकमे को सतर्क कर दिया है। प्रशासन अब यह सुनिश्चित करने में जुटा है कि भविष्य में किसी भी स्थिति में ऐसी (Administrative Monitoring Systems) की विफलता न दोहराई जाए। ब्लड बैंक जैसे संवेदनशील विभागों में अब रोटेशन ड्यूटी और उपस्थिति की डिजिटल ट्रैकिंग को और मजबूत करने पर विचार किया जा रहा है। सरकार और अस्पताल प्रबंधन का यह कड़ा रुख अन्य स्वास्थ्य कर्मियों के लिए भी एक बड़ा संदेश है कि ड्यूटी के प्रति लापरवाही किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं की जाएगी।



