Jitan Ram Manjhi Rajya Sabha Seat Demand: राज्यसभा सीट के लिए एनडीए में बगावत के संकेत, जीतन राम ने याद दिलाया पुराना हिसाब
Jitan Ram Manjhi Rajya Sabha Seat Demand: बिहार की राजनीति में एक बार फिर पुराने खिलाड़ी और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के संरक्षक जीतन राम मांझी ने अपनी मांगों से हलचल मचा दी है। केंद्र और बिहार दोनों जगह एनडीए सरकार का अहम हिस्सा होने के बावजूद मांझी ने आगामी (April 2026 Rajya Sabha Elections) को लेकर अपनी दावेदारी ठोक दी है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि उनकी पार्टी का कद और योगदान केवल एक सांसद तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उन्हें उच्च सदन में भी प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है।
वादों का पिटारा और बकाया हिसाब
मांझी का दर्द केवल सीट की मांग तक सीमित नहीं है, बल्कि वह इसे एक पुराने वादे की याद दिला रहे हैं। उनका दावा है कि (2024 Lok Sabha Polls Promises) के दौरान एनडीए नेतृत्व ने उन्हें दो लोकसभा सीटें और एक राज्यसभा सीट देने का भरोसा दिया था। वर्तमान में मांझी खुद गया से लोकसभा सांसद हैं और केंद्र में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री (MSME) की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं, लेकिन राज्यसभा सीट का वादा अभी भी अधूरा है, जिसे वे अब पूरा होते देखना चाहते हैं।
जेडीयू, भाजपा और लोजपा के बीच ‘हम’ की तलाश
मीडिया रिपोर्ट्स और चर्चाओं के अनुसार, अप्रैल में खाली होने वाली 5 सीटों में से भाजपा और जेडीयू को दो-दो सीटें मिलने की संभावना है, जबकि एक सीट चिराग पासवान की पार्टी के खाते में जा सकती है। इसी समीकरण पर सवाल उठाते हुए मांझी ने पूछा कि (Hindustani Awam Morcha Political Space) इस बंटवारे में कहां है? उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि जब तक मांग नहीं करेंगे, तब तक अपना अधिकार नहीं मिलेगा, इसलिए उन्होंने राज्यसभा सीट के लिए अपनी आवाज बुलंद की है।
क्या एनडीए से राहें अलग करेंगे मांझी?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि यदि मांग पूरी नहीं हुई, तो क्या मांझी गठबंधन तोड़ देंगे? इस पर मांझी ने बहुत ही नपे-तुले अंदाज में (Strategic Alliance Response) देते हुए कहा कि फिलहाल अलग होने जैसा कोई विचार नहीं है। हालांकि, उन्होंने यह भी संकेत दिया कि वह केवल एक संरक्षक हैं और पार्टी के अन्य पदाधिकारी इस मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। उनके इस बयान ने भाजपा और जेडीयू के शीर्ष नेतृत्व को सोचने पर मजबूर कर दिया है।
मान्यता प्राप्त दल बनने की छटपटाहट
मांझी के आक्रामक रुख के पीछे की असली वजह उनकी पार्टी का ‘मान्यता प्राप्त दल’ न बन पाना है। चुनाव आयोग के मानकों के अनुसार, (Recognized Political Party Criteria) को पूरा करने के लिए कम से कम 8 विधायक या 6 प्रतिशत वोट शेयर होना जरूरी है। मांझी का मानना है कि यदि उन्हें गठबंधन में सम्मानजनक सीटें नहीं दी जातीं, तो उनकी पार्टी को 50 से 100 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ना चाहिए ताकि वे पर्याप्त वोट प्रतिशत हासिल कर सकें और अपना स्थायी चुनाव चिन्ह सुरक्षित कर सकें।
बेटे को दी ‘रिस्क’ लेने की नसीहत
गया में एक कार्यक्रम के दौरान मांझी ने अपने बेटे और बिहार सरकार में मंत्री संतोष कुमार सुमन को भी राजनीति में (Political Risk Taking) की सलाह दी। उन्होंने कहा कि राजनीति में आगे बढ़ने के लिए पदों के मोह से ऊपर उठना पड़ता है। मांझी ने अपने भाषण में ‘तेज’ और ‘कड़े’ फैसलों का संकेत देकर यह साफ कर दिया है कि वे केवल मंत्री पद पाकर शांत नहीं बैठने वाले, बल्कि अपनी पार्टी की जड़ों को और भी गहरा और मजबूत करना चाहते हैं।
भाजपा और जेडीयू का रुख और भविष्य की चुनौती
फिलहाल, भाजपा और जेडीयू ने मांझी की इस मांग पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि, (Bihar NDA Coalition Stability) के लिए मांझी एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं, विशेषकर महादलित वोट बैंक को देखते हुए। यदि मांझी की राज्यसभा सीट की मांग को नजरअंदाज किया जाता है, तो आगामी बिहार विधानसभा चुनावों के समय एनडीए के भीतर समीकरण बिगड़ सकते हैं। मांझी ने यह भी कहा कि भाजपा उन्हें हल्के में लेने की गलती न करे, क्योंकि कई संभागों में उनकी पकड़ बेहद मजबूत है।
अप्रैल 2026: शक्ति प्रदर्शन का असली मैदान
आगामी राज्यसभा चुनाव न केवल उच्च सदन के सदस्यों का चयन करेंगे, बल्कि यह एनडीए के भीतर आंतरिक लोकतंत्र और (Internal Coalition Dynamics) का लिटमस टेस्ट भी साबित होंगे। मांझी के तेवर बताते हैं कि वे इस बार अपनी मांग को लेकर पीछे हटने के मूड में नहीं हैं। अब गेंद एनडीए के शीर्ष नेतृत्व के पाले में है कि वे अपने इस पुराने और अनुभवी साथी को कैसे संतुष्ट करते हैं और गठबंधन की एकजुटता को बरकरार रखते हैं।