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Crime Investigation Mysteries: विनय त्यागी हत्याकांड की अनसुनी और डरावनी सच्चाई, रक्षक ही भक्षक या खूनी साजिश का मोहरा…

Crime Investigation Mysteries: हत्या, डकैती और लूट जैसे 38 संगीन मुकदमों का आरोपी एक कुख्यात अपराधी जब अचानक एक मामूली बैग चोरी के इल्जाम में जेल जाता है, तो सवाल उठना लाजमी है। विनय त्यागी का सफर जितना खौफनाक था, उसकी मौत का मंजर उससे भी कहीं ज्यादा रहस्यमयी बन गया है। पुलिस अभिरक्षा में हुआ वह घातक हमला (Criminal Justice System) की कार्यप्रणाली पर एक गहरा घाव छोड़ गया है। यह पूरी घटना किसी क्राइम थ्रिलर सीरीज की स्क्रिप्ट जैसी लगती है, जहां हर कदम पर एक नया मोड़ आता है और अंत में पुलिस की भूमिका ही सवालों के कटघरे में खड़ी नजर आती है।

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डॉक्टर दोस्त की कार से चोरी और गिरफ़्तारी का अजीब नाटक

इस रहस्यमयी कहानी का पहला अध्याय 15 सितंबर को लिखा गया, जब नेहरू कॉलोनी में विनय त्यागी के एक डॉक्टर दोस्त ने ही उसके खिलाफ बैग चोरी की एफआईआर दर्ज करवाई। पुलिस ने फुर्ती दिखाते हुए 29 सितंबर को उसे सोने-चांदी के सिक्कों और नकद राशि वाले बैग के साथ दबोच लिया। एक ऐसा अपराधी जिस पर (Underworld Crime Syndicate) से जुड़े होने के गंभीर आरोप हों, वह एक छोटी सी चोरी क्यों करेगा? जानकार मानते हैं कि डॉक्टर की छवि भी दूध की धुली नहीं थी, जिसके चलते इस पूरी गिरफ्तारी को एक सुनियोजित ‘सेफ पैसेज’ के रूप में देखा जाने लगा।

यूपी एसटीएफ का डर या जेल की सुरक्षित चारदीवारी की चाह

चर्चाएं आम थीं कि विनय त्यागी को उत्तर प्रदेश की एसटीएफ सरगर्मी से तलाश कर रही थी। ऐसे में खुद को बचाने के लिए उसने उत्तराखंड की जेल को एक सुरक्षित ठिकाना समझा। पुलिस सूत्रों और गलियारों में यह बात तैर रही थी कि उसने (Law Enforcement Coordination) से बचने के लिए अपने डॉक्टर दोस्त के साथ मिलकर खुद को इस चोरी के मुकदमे में फंसाया। यह एक ऐसा पैंतरा था जिसने उसे कुछ समय के लिए बाहरी दुश्मनों से तो बचा लिया, लेकिन उसे नहीं पता था कि मौत के सौदागर उसके सबसे करीब ही घात लगाए बैठे हैं।

लक्सर का वह खूनी मंजर और पुलिसकर्मियों की चुप्पी

जब विनय त्यागी पुलिस की कड़ी सुरक्षा में था, तब लक्सर में बेखौफ बदमाशों ने उस पर गोलियों की बौछार कर दी। सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह थी कि उस वक्त साथ मौजूद पुलिसकर्मियों ने जवाबी कार्रवाई में एक भी गोली नहीं चलाई। यह खामोशी (Police Professional Ethics) के उन दावों को खोखला साबित करती है जो पिछले दो वर्षों से एनकाउंटर की साहसिक कहानियों के दम पर गढ़े जा रहे थे। हमलावरों का इतनी आसानी से वारदात को अंजाम देकर निकल जाना किसी बड़ी मिलीभगत की ओर इशारा करता है।

तमंचों का गणित और पुलिस की कमजोर प्रेस विज्ञप्ति

पुलिस ने अगले दिन दो हमलावरों को गिरफ्तार करने का दावा किया और हत्या का कारण मामूली पैसों का लेनदेन बताया। लेकिन हकीकत की परतें कुछ और ही कह रही हैं। हमलावरों के पास से केवल दो देसी तमंचे बरामद हुए, जबकि विनय त्यागी को तीन गोलियां लगी थीं। एक सिंगल-शॉट तमंचे को दोबारा लोड करने में जो समय (Forensic Ballistics Analysis) के अनुसार लगता है, उस दौरान पुलिस क्या कर रही थी? क्या वहां कोई तीसरा हथियार था जो कभी बरामद ही नहीं हुआ, या फिर कहानी कुछ और ही लिखी गई थी जिसे छिपाने की कोशिश की जा रही है?

एनकाउंटर के शूरवीरों की वीरता पर उठे गंभीर सवाल

उत्तराखंड पुलिस पिछले कुछ समय से अपराधियों के खिलाफ अपने कड़े रुख और साहसिक एनकाउंटरों के लिए सुर्खियां बटोर रही थी। लेकिन विनय त्यागी पर हमले के दौरान उनके ‘शौर्य’ को जैसे लकवा मार गया। यह घटना पुलिस के उस (Public Trust Deficit) को बढ़ा रही है जिसे वे कम करने का दावा करते हैं। जब एक कुख्यात अपराधी पुलिस के घेरे में भी सुरक्षित नहीं है, तो आम जनता की सुरक्षा की गारंटी कौन लेगा? पुलिस के साधारण से बयान इस पूरे प्रकरण की गंभीरता को कम करने में नाकाम साबित हो रहे हैं।

दो जिलों की रिपोर्ट और जांच के नाम पर औपचारिकता

इस सनसनीखेज हत्याकांड के बाद अब शासन और उच्चाधिकारियों ने दोनों जिलों से विस्तृत रिपोर्ट तलब की है। सितंबर की चोरी की घटना से लेकर लक्सर में हुई फायरिंग तक के हर तथ्य को खंगाला जा रहा है। जांच में इस बात को भी शामिल किया जाएगा कि आखिर (Standard Operating Procedure) का पालन हमले के दौरान क्यों नहीं हुआ। हालांकि, अब तक की जांच की सुस्त रफ्तार और पुलिस के विरोधाभासी बयानों ने इस मामले को सुलझाने के बजाय और अधिक उलझा दिया है।

विलेन कौन है और असली पटकथा का लेखक कहां छुपा है?

अंततः सवाल वही बना हुआ है कि इस खूनी खेल का असली सूत्रधार कौन है? क्या विनय त्यागी को रास्ते से हटाने के लिए तंत्र और अपराधियों के बीच कोई गुप्त समझौता हुआ था? या फिर वह अपनी ही बुनी हुई जाल में फंसकर खुद का शिकार हो गया? पुलिस इस (Criminal Conspiracy Investigation) को अंजाम तक पहुंचाएगी या फिर फाइलों के ढेर में यह राज भी हमेशा के लिए दफन हो जाएगा। जब तक असली मास्टरमाइंड सामने नहीं आता, तब तक उत्तराखंड पुलिस की साख पर यह दाग चमकता रहेगा।

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