बिहार

Bihar Elections 2025: मतदान के लिए पड़ोसी राज्यों से बिहार के लिए चल रही हैं मुफ्त ट्रेनें, सभी पार्टियां कर रही हैं रहने-खाने की व्यवस्था

Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव अपने निर्णायक दौर में पहुँचते ही, राज्य की सीमाओं पर एक अनोखी हलचल देखने को मिल रही है। उत्तर प्रदेश, झारखंड, बंगाल, हरियाणा और दिल्ली से हज़ारों प्रवासी मज़दूर वोट डालने के लिए अपने गाँव लौट रहे हैं।

Bihar Elections 2025
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दिलचस्प बात यह है कि इन यात्राओं के लिए टिकट और खाने की थाली का प्रबंधन रेलवे विभाग नहीं, बल्कि राजनीतिक दल कर रहे हैं। स्टेशनों पर पार्टी काउंटर खुले हैं, कर्मचारी यात्रियों के नाम और निर्वाचन क्षेत्र दर्ज कर रहे हैं, और ट्रेन के डिब्बों में नारों के बीच “टिकट-मुक्त यात्रा” का एक नया अध्याय लिखा जा रहा है।

सीमावर्ती ज़िलों में बढ़ी चहल-पहल

सोमवार और मंगलवार से बिहार की सीमा से लगे उत्तर प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल के कई ज़िलों के रेलवे स्टेशनों पर भारी भीड़ देखी जा रही है। बनारस कैंट, बलिया, गाज़ीपुर, चंदौली, मिर्ज़ापुर और प्रयागराज से लेकर झारखंड के धनबाद, रांची, गिरिडीह और जमशेदपुर तक, लोग बिहार जाने वाली ट्रेनों में सवार हो रहे हैं।

कई राजनीतिक दलों ने यात्रियों के नाम, आधार नंबर, मोबाइल नंबर और निर्वाचन क्षेत्र की जानकारी एकत्र करने के लिए शिविर लगाए हैं। बताया जा रहा है कि पार्टी कार्यकर्ताओं ने इन स्टेशनों के बाहर अस्थायी काउंटर स्थापित किए हैं, जहाँ दिन-रात चहल-पहल रहती है।

टिकट, खाना और संदेश – सब कुछ मुफ़्त

पटना पहुँचने वाले मतदाताओं में उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के साथ-साथ हरियाणा, दिल्ली, जोगबनी और मध्य प्रदेश के लोग भी शामिल हैं। इन ट्रेनों में यात्रा सिर्फ़ मतदान तक ही सीमित नहीं है। यह एक राजनीतिक संदेश भी है कि प्रवासी बिहारी अब अपनी मातृभूमि के फैसलों में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं।

राजनीतिक दलों ने इसे “मतदान यात्रा”(“Voting Tour”) में बदल दिया है। कार्यकर्ता स्टेशनों पर यात्रियों को भोजन और पानी उपलब्ध करा रहे हैं, जबकि ट्रेनों में हल्का नाश्ता और चाय भी उपलब्ध कराई जा रही है। बताया जा रहा है कि इन यात्राओं के लिए नियमित ट्रेनों के अलावा विशेष ट्रेनों की व्यवस्था की गई है, ताकि मज़दूर सुरक्षित और समय पर अपने गंतव्य तक पहुँच सकें।

गौरतलब है कि इस बार यात्रियों में उत्साह के साथ-साथ राजनीतिक जागरूकता(awareness) भी साफ़ दिखाई दे रही है। कई यात्री खुलेआम यह कहते नज़र आए कि वे अपनी पार्टी के समर्थन में मतदान करने आए हैं। स्टेशन पर मौजूद कार्यकर्ता लगातार सभी से संपर्क में हैं और मतदाताओं को उनके क्षेत्र के मतदान केंद्रों की जानकारी भी दे रहे हैं।

रेलवे की चुप्पी और राजनीतिक बयानबाजी

रेलवे प्रशासन इस ‘विशेष व्यवस्था’ पर खामोश है। अभी तक किसी भी राज्य ने आधिकारिक तौर पर ‘मुफ़्त रेल सेवा’ की घोषणा नहीं की है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर जो हो रहा है, वह किसी जननीति से कम नहीं है। विपक्ष इसे आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन बता रहा है, जबकि सत्ताधारी दल इसे ‘लोकतांत्रिक भागीदारी’ बताकर बचाव कर रहा है।

“बिहार में चुनाव सिर्फ़ विचारों की नहीं, बल्कि संसाधनों की भी लड़ाई बन गए हैं। टिकट और सीटें अब सिद्धांत का नहीं, रणनीति का हिस्सा हैं।” यह परिदृश्य लोकतंत्र में गहरी आस्था की भी परीक्षा लेता है, जो मतदाता की स्वतंत्रता पर आधारित है। जब मतदान की प्रेरणा टिकट और भोजन से जुड़ी हो, तो सवाल उठना लाज़मी है: क्या यह जनभागीदारी है या जन प्रबंधन? बिहार में लोकतंत्र हमेशा से एक लोककथा रहा है – जहाँ हर चुनाव एक उत्सव होता है और हर मतदाता अपने गाँव लौटकर कहता है, “हम भी लोकतंत्र में भाग लेने आए हैं।”

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