उत्तर प्रदेश

Religious Conversion Case: सोनभद्र के इस युवक ने चुना नया धर्म, बेहद चौकाने वाली है इसके पीछे की वजह…

Religious Conversion Case: उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में इन दिनों एक शख्स की बदली हुई पहचान को लेकर जबरदस्त चर्चा हो रही है। म्योरपुर ब्लॉक के रासपहरी गांव का रहने वाला 37 वर्षीय रामशकल, जिसे कुछ समय पहले तक लोग एक साधारण हिंदू युवक के रूप में जानते थे, अब मोहम्मद जहांगीर अशरफ (Spiritual Identity Transformation) के रूप में अपनी नई जिंदगी जी रहा है। रामशकल का इस तरह अचानक अपना धर्म और नाम बदल लेना न केवल उसके परिवार के लिए बल्कि पूरे गांव के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं था।

Religious Conversion Case
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ट्यूशन पढ़ाने वाले शिक्षक की रहस्यमयी बीमारी

रामशकल अपने चार भाइयों में सबसे छोटा है और उसके पिता जगरनाथ गांव के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं। अपनी शुरुआती जिंदगी में रामशकल बभनी क्षेत्र में रहकर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया करता था और एक शिक्षक के रूप में (Community Education Role) अपनी सेवाएं दे रहा था। हालांकि, इसी दौरान उसकी सेहत अचानक बिगड़ने लगी। लाख इलाज और कोशिशों के बावजूद जब उसे कोई आराम नहीं मिला, तो वह मानसिक और शारीरिक रूप से काफी परेशान रहने लगा।

अंबेडकरनगर की दरगाह और जिंदगी का वह मोड़

तबीयत खराब रहने के दौरान रामशकल कुछ ऐसे लोगों के संपर्क में आया जिन्होंने उसे आध्यात्मिक शांति का रास्ता दिखाया। उन्हीं के कहने पर वह अंबेडकरनगर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध दरगाह पर गया। बताया जाता है कि वहां जाने के बाद उसे अपनी बीमारी से (Health Recovery Beliefs) में काफी राहत महसूस हुई। इसी अनुभव से प्रभावित होकर उसने अपनी स्वेच्छा से इस्लाम धर्म अपनाने का फैसला किया और रामशकल से मोहम्मद जहांगीर अशरफ बन गया।

मस्जिद में अजान और नमाज का नया सफर

मजहब बदलने के बाद जहांगीर वापस अपने घर तो लौटा, लेकिन उसने अपने पैतृक गांव रासपहरी के बजाय बगल के गांव किरवानी को अपना नया ठिकाना बनाया। किरवानी गांव, जहाँ मुस्लिम आबादी काफी संख्या में है, वहां की (Mosque Religious Activities) में वह पूरी तरह रम गया है। वर्तमान में वह मस्जिद में मुअज्जिन के तौर पर काम करता है, जिसका मुख्य कार्य अजान देना है। वह न केवल पांचों वक्त की नमाज अदा करता है, बल्कि कुरान की आयतों में भी उसे गहरा सुकून मिलता है।

उर्दू-फारसी की तालीम और बच्चों का भविष्य

जहांगीर अब मस्जिद में रहकर केवल इबादत ही नहीं करता, बल्कि नई पीढ़ी को शिक्षा भी दे रहा है। वह गांव के बच्चों को उर्दू और फारसी (Language Teaching Skills) की बारीकियां सिखाता है। रामशकल के व्यक्तित्व में आए इस आमूल-चूल परिवर्तन को देखकर गांव के लोग हतप्रभ हैं। जो हाथ कभी स्कूली विषयों की किताबें पकड़ते थे, वे अब धार्मिक ग्रंथों के माध्यम से बच्चों का भविष्य संवारने में लगे हुए हैं, जिससे गांव में उसकी एक नई छवि बनी है।

परिवार की खामोश नाराजगी और स्वीकारोक्ति

रामशकल के इस फैसले से उसके परिवार के सदस्य शुरुआत में काफी आहत और नाराज थे। उनके लिए अपने सबसे छोटे भाई को दूसरे धर्म के रीति-रिवाजों को अपनाते देखना (Family Emotional Conflict) का विषय था। हालांकि, समय बीतने के साथ उन्होंने उसकी खुशी में ही अपनी सहमति दे दी है। परिजनों का कहना है कि हालांकि उन्हें यह पसंद नहीं आया, लेकिन वह जहां भी रहे और जिस रूप में भी रहे, यदि वह संतुष्ट है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।

न कोई लालच और न ही कोई दबाव

अपनी पहचान बदलने के सवाल पर मोहम्मद जहांगीर अशरफ उर्फ रामशकल का रुख बिल्कुल स्पष्ट है। वह दावे के साथ कहता है कि यह उसका पूरी तरह से निजी और (Voluntary Conversion Decision) था। उसने स्पष्ट किया कि न तो उसे किसी ने डराया और न ही किसी तरह का लालच दिया गया। वह कहता है कि जब वह मौत के करीब था और उसे राहत मिली, तो उसने अपनी रूह की पुकार सुनी। अब वह अपने घर में कुरान के साथ-साथ रामायण भी रखता है, क्योंकि उसका मानना है कि सभी धर्म मानवता का ही संदेश देते हैं।

सामाजिक सौहार्द और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सवाल

जहांगीर की शादी अब एक मुस्लिम महिला से हो चुकी है और उसके दो बच्चे भी हैं, जो उसकी नई पहचान को आगे बढ़ा रहे हैं। उसके परिजन सुदामा प्रसाद का कहना है कि उन्हें (Personal Freedom Rights) का सम्मान करना आता है। रामशकल ने किसके प्रभाव में आकर यह किया, इसकी उन्हें जानकारी नहीं है, लेकिन अब वह एक अलग गांव में अपनी मर्जी से रह रहा है। सोनभद्र का यह मामला आज के समाज में व्यक्तिगत आस्था और पारिवारिक बंधनों के बीच के द्वंद्व को साफ तौर पर उजागर करता है।

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