Noida Female Lawyer Case: वर्दी की आड़ में शर्मसार हुई इंसानियत, क्या नोएडा पुलिस के बंद कैमरों के पीछे छिपी है खौफनाक हकीकत…
Noida Female Lawyer Case: नोएडा के पॉश इलाके से निकलकर एक ऐसी खबर सामने आई है जिसने पूरे देश के कानूनी और प्रशासनिक ढांचे को झकझोर कर रख दिया है। एक महिला वकील, जिसका काम दूसरों को न्याय दिलाना है, खुद (Legal Rights in India) के लिए सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाने पर मजबूर हो गई है। मामला नोएडा के सेक्टर-126 थाने का है, जहां महिला वकील ने पुलिस हिरासत के दौरान यौन उत्पीड़न और अवैध नजरबंदी जैसे रूह कपा देने वाले आरोप लगाए हैं।
सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख और सरकारों को नोटिस
इस मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए उच्चतम न्यायालय ने बेहद सख्त तेवर अपनाए हैं। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया की पीठ ने इस (Supreme Court Intervention) को अनिवार्य मानते हुए केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि इस तरह के गंभीर आरोपों को हल्के में नहीं लिया जा सकता, खासकर तब जब आरोप कानून के रखवालों पर ही लगे हों।
सीसीटीवी फुटेज को सुरक्षित रखने का ऐतिहासिक आदेश
अदालत ने तकनीकी साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ की आशंका को भांपते हुए गौतम बुद्ध नगर के पुलिस आयुक्त को कड़े निर्देश दिए हैं। पीठ ने आदेश दिया है कि संबंधित समयावधि की (CCTV Surveillance Rules) वाली फुटेज को न तो हटाया जाए और न ही किसी भी स्थिति में नष्ट किया जाए। कोर्ट ने इसे सीलबंद लिफाफे में सुरक्षित रखने को कहा है ताकि सच्चाई को सामने लाया जा सके और दोषियों को बचने का कोई रास्ता न मिले।
7 जनवरी की तारीख और सुरक्षा का भरोसा
शुरुआत में अदालत ने याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय जाने का विकल्प दिया था, लेकिन जब सीसीटीवी कैमरों के जानबूझकर बंद किए जाने की बात सामने आई, तो सुप्रीम कोर्ट ने (Judicial Accountability) को प्राथमिकता दी। मामले की अगली सुनवाई 7 जनवरी को तय की गई है। सुनवाई के दौरान जब महिला की सुरक्षा पर चिंता जताई गई, तो पीठ ने आश्वस्त करते हुए कहा कि अब कोई उन्हें छूने की हिम्मत नहीं करेगा।
वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह की तीखी टिप्पणी
याचिकाकर्ता की ओर से दलीलें पेश करते हुए वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने इसे भारतीय लोकतंत्र के लिए एक काला अध्याय बताया। उन्होंने कोर्ट में जोर देकर कहा कि अगर (Police Misconduct) की ऐसी घटनाएं देश की राजधानी से सटे नोएडा में हो सकती हैं, तो दूरदराज के इलाकों में महिलाओं की स्थिति क्या होगी, इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। उन्होंने इसे पूरे सिस्टम के लिए एक शर्मनाक स्थिति करार दिया।
स्वतंत्र जांच के लिए एसआईटी और सीबीआई की मांग
पीड़िता ने अपनी याचिका में स्थानीय पुलिस पर भरोसा जताने से इनकार कर दिया है। उन्होंने मांग की है कि मामले की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए (CBI Investigation) या किसी विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया जाए। याचिका में दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ तत्काल प्रभाव से प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने और उन्हें सेवा से निलंबित करने की गुहार भी लगाई गई है।
14 घंटे का वो काला वक्त और यौन उत्पीड़न का दंश
पीड़िता के अनुसार, 3 दिसंबर की रात वह अपने मुवक्किल के लिए कानूनी कर्तव्यों का पालन कर रही थीं, तभी उन्हें जबरन थाने ले जाया गया। आरोप है कि उन्हें (Illegal Detention) में करीब 14 घंटे तक रखा गया, जहां उनके साथ शारीरिक हिंसा और यौन उत्पीड़न किया गया। इस दौरान उन्हें मानसिक रूप से इतना प्रताड़ित किया गया कि वह अब भी उस सदमे से उबर नहीं पाई हैं।
सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेशों की धज्जियां उड़ीं
याचिका में एक बड़ा खुलासा यह भी किया गया है कि घटना के वक्त थाने के सीसीटीवी कैमरे जानबूझकर बंद रखे गए थे। यह सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट के उस ऐतिहासिक (Param Vir Singh Judgment) का उल्लंघन है जिसमें हर थाने में चालू सीसीटीवी अनिवार्य किया गया था। पीड़िता का आरोप है कि पुलिस ने न केवल एफआईआर दर्ज करने से मना किया, बल्कि उन्हें शिकायत करने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकियां भी दीं।
खाकी पर लगे दाग क्या धुल पाएंगे?
यह मामला केवल एक महिला वकील का नहीं, बल्कि हर उस नागरिक का है जो पुलिस को रक्षक समझता है। क्या (Custodial Torture) के इस मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस अपनी साख बचा पाएगी? अब सबकी निगाहें 7 जनवरी की सुनवाई पर टिकी हैं, जहां यह तय होगा कि क्या कानून के रक्षक ही भक्षक बन गए थे या इसके पीछे कोई और गहरी साजिश है।