Child Marriage: मासूम के सपनों को मिली नई जिंदगी, दोगुनी उम्र के दूल्हे से होने जा रही थी शादी, ऐन वक्त पर पहुंची पुलिस…
Child Marriage: बिहार के सहरसा जिले से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने समाज की पिछड़ी सोच और कानून की सतर्कता को एक साथ उजागर कर दिया है। नगर निगम क्षेत्र के वार्ड नंबर 4, पटुआहा में एक 16 वर्षीय नाबालिग लड़की की शादी उसकी मर्जी के खिलाफ जबरन (Child Marriage Awareness) की कमी के चलते की जा रही थी। गनीमत रही कि प्रशासन और चाइल्ड हेल्पलाइन की टीम को समय रहते इसकी भनक लग गई। कहरा प्रखंड विकास पदाधिकारी अभिलाषा पाठक के नेतृत्व में टीम ने मौके पर छापेमारी की और शादी की रस्में शुरू होने से ठीक पहले मासूम को रेस्क्यू कर लिया।
एक गुप्त फोन कॉल ने बचा लिया मासूम का भविष्य
इस पूरी कार्रवाई की शुरुआत ज्योति विवेकानंद संस्थान नामक एनजीओ की सदस्य ज्योति मिश्रा को मिली एक सीक्रेट कॉल से हुई। अज्ञात सूत्र ने फोन पर जानकारी दी कि पटुआहा गांव में एक (Minor Girl Rescue) की जरूरत है, क्योंकि उसकी शादी उसकी उम्र से लगभग दोगुने बड़े युवक से कराई जा रही है। ज्योति मिश्रा ने बिना देर किए इसकी सूचना चाइल्ड हेल्पलाइन की जिला कोऑर्डिनेटर टुसी कुमारी को दी। सूचना इतनी गंभीर थी कि तत्काल जिला प्रशासन और पुलिस बल को सक्रिय किया गया ताकि बच्ची के बचपन को उजड़ने से बचाया जा सके।
बीडीओ और भारी पुलिस बल की मौजूदगी में हुई छापेमारी
मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए गुरुवार को बीडीओ अभिलाषा पाठक और सदर थानाध्यक्ष सुबोध कुमार दलबल के साथ पटुआहा गांव पहुंचे। जैसे ही (Administrative Police Action) की गाड़ी गांव में पहुंची, शादी वाले घर में हड़कंप मच गया। अधिकारियों ने पाया कि शादी की तैयारियां जोरों पर थीं, लेकिन कानून के रक्षकों ने दखल देकर उन रस्मों को रुकवा दिया। पुलिस टीम ने नाबालिग को अपने संरक्षण में लिया और सुरक्षित तरीके से सदर थाने लेकर आई, ताकि किसी भी तरह के दबाव या विरोध से बचा जा सके।
दोगुनी उम्र का दूल्हा और परिवार की मजबूरियां
जांच के दौरान जो तथ्य सामने आए, वे बेहद चौंकाने वाले और चिंताजनक थे। 16 साल की जिस किशोरी का विवाह तय किया गया था, उसका होने वाला पति उससे दोगुनी उम्र का था। अधिकारियों ने (Social Legal Counseling) के दौरान पाया कि परिवार की आर्थिक स्थिति और अशिक्षा इस गलत फैसले के पीछे की मुख्य वजह थी। परिजनों को लगा कि कम उम्र में बेटी की विदा कर देने से उनकी जिम्मेदारी खत्म हो जाएगी, लेकिन वे यह भूल गए कि वे अपनी ही बेटी को एक अंधकारमय भविष्य की ओर धकेल रहे थे।
अज्ञानता और अशिक्षा ने मासूम को बनाया शिकार
थाने में घंटों चली पूछताछ और काउंसलिंग के दौरान यह बात साफ हुई कि पटुआहा के इस परिवार में शिक्षा और जागरूकता का घोर अभाव था। अधिकारियों ने (Legal Age Marriage) के महत्व को समझाते हुए परिजनों को बताया कि 18 वर्ष से कम उम्र में बेटी का विवाह करना न केवल एक सामाजिक बुराई है, बल्कि एक दंडनीय अपराध भी है। परिवार वालों को यह अहसास कराया गया कि शारीरिक और मानसिक रूप से अपरिपक्व उम्र में शादी करने से लड़की के स्वास्थ्य पर कितना बुरा असर पड़ सकता है।
लिखित बांड और सख्त चेतावनी के बाद मिली राहत
बीडीओ अभिलाषा पाठक ने इस मामले में बेहद सख्त रुख अपनाया। उन्होंने परिजनों से स्पष्ट रूप से कहा कि कानून का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। प्रशासन ने परिवार के सदस्यों से एक (Legal Undertaking Bond) भरवाया, जिसमें उन्होंने लिखित आश्वासन दिया कि वे अपनी बेटी की शादी 18 वर्ष की आयु पूरी होने के बाद ही करेंगे। यदि भविष्य में उन्होंने दोबारा ऐसा प्रयास किया, तो उन पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी। सख्त हिदायत और कानूनी कागजी कार्रवाई के बाद ही परिवार को घर जाने की अनुमति दी गई।
बाल विवाह (Child Marriage) मुक्त समाज के लिए अधिकारियों की अपील
सहरसा प्रशासन की इस सफल कार्रवाई ने आसपास के क्षेत्रों में भी एक कड़ा संदेश दिया है। बीडीओ ने (Village Development Officer) की हैसियत से ग्रामीणों से अपील की है कि वे अपने बच्चों को पढ़ाएं और उन्हें आत्मनिर्भर बनाएं, न कि बाल विवाह जैसी कुरीतियों की भेंट चढ़ाएं। उन्होंने कहा कि समय पर मिली सूचना ने एक बड़ी अनहोनी को टाल दिया है। प्रशासन अब गांव-गांव जाकर लोगों को बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के बारे में जागरूक करने के लिए विशेष अभियान चलाने की योजना बना रहा है।
बचपन को बचाने की इस मुहिम में जनता का सहयोग जरूरी
यह घटना साबित करती है कि अगर समाज जागरूक हो और समय पर सूचना दे, तो कई मासूमों की जिंदगी संवर सकती है। (Child Helpline Support) और जिला प्रशासन की यह संयुक्त जीत उन सभी के लिए एक मिसाल है जो बाल विवाह को अपनी नियति मान चुके हैं। सहरसा के इस मामले ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि कानून के हाथ लंबे होते हैं और वे हर उस घर तक पहुंच सकते हैं जहाँ बच्चों के अधिकारों का हनन हो रहा हो। अब वह 16 वर्षीय किशोरी दोबारा स्कूल जा सकेगी और अपना भविष्य खुद चुन सकेगी।