उत्तराखण्ड

Environmental Crisis and Health: जहरीली हुई देहरादून की हवा, नजर आया दिल्ली-एनसीआर जैसा स्मॉग

Environmental Crisis and Health: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून, जो कभी अपनी शुद्ध और ताजी हवा के लिए जानी जाती थी, आज प्रदूषण की भीषण मार झेल रही है। शहर की वायु गुणवत्ता (Hazardous Air Quality) की श्रेणी में पहुँच गई है, जिसने पिछले कई सालों के रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। हालिया आंकड़ों के अनुसार, देहरादून का वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एक्यूआई 294 के स्तर को छू गया है, जो बेहद चिंताजनक है। शाम ढलते ही शहर की पहाड़ियां और इमारतें धुंध की एक मोटी चादर में गुम हो जाती हैं। यह स्थिति केवल पर्यावरण के लिए ही नहीं, बल्कि दूनवासियों के स्वास्थ्य के लिए भी एक बड़ा खतरा बन गई है।

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दीपावली के प्रदूषण को भी पीछे छोड़ा

आमतौर पर माना जाता है कि दीपावली के बाद पटाखों के धुएं से प्रदूषण चरम पर होता है, लेकिन दिसंबर की इस सर्दी ने उस मिथक को तोड़ दिया है। अक्टूबर में अधिकतम (Pollution Levels) 254 दर्ज किया गया था, जबकि 16 दिसंबर को यह 299 के खतरनाक स्तर तक पहुँच गया। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट बताती है कि देहरादून की हवा अब दिल्ली-नोएडा जैसी ही दमघोंटू हो गई है। स्वच्छ आबोहवा का भ्रम टूट चुका है और अब लोगों को घर से बाहर निकलते समय मास्क का सहारा लेना पड़ रहा है।

सूक्ष्म कणों का हमला: पीएम 2.5 और पीएम 10 का बढ़ता स्तर

हवा में मौजूद प्रदूषक तत्वों की जांच करने पर पता चला है कि पीएम 2.5 और पीएम 10 का स्तर सामान्य से कई गुना अधिक है। (Particulate Matter Science) के अनुसार, पीएम 2.5 कण इतने सूक्ष्म होते हैं कि वे सांस के जरिए सीधे फेफड़ों में गहराई तक पहुँच जाते हैं और खून में मिल सकते हैं। उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बताया कि पीएम 2.5 का स्तर 119.83 दर्ज किया गया है, जो स्वास्थ्य मानकों के हिसाब से काफी ज्यादा है। वाहनों का धुआं, निर्माण कार्य की धूल और कचरा जलाने जैसी गतिविधियां इस संकट को और गहरा कर रही हैं।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों की गंभीर चेतावनी और बीमारियां

वायु गुणवत्ता के 200 का आंकड़ा पार करते ही चिकित्सकों ने (Respiratory Health Risks) के प्रति आगाह कर दिया है। विशेष रूप से बुजुर्गों, बच्चों और अस्थमा के मरीजों के लिए यह हवा ‘साइलेंट किलर’ का काम कर रही है। दून के अस्पतालों में सांस फूलने, आंखों में जलन और गले में संक्रमण के मरीजों की संख्या में 30% तक की वृद्धि देखी गई है। डॉक्टरों का मशवरा है कि लोग सुबह की सैर से बचें और जितना संभव हो घर के अंदर ही रहें। स्मॉग के कारण होने वाला इन्फेक्शन दिल की बीमारियों का खतरा भी बढ़ा सकता है।

ऋषिकेश और मैदानी जिलों में कोहरे का कहर

केवल देहरादून ही नहीं, बल्कि योग नगरी ऋषिकेश की हवा भी अब उतनी शुद्ध नहीं रही। वहां का एक्यूआई पहली बार 105 दर्ज किया गया है, जो (Environmental Concern) का विषय है। दूसरी ओर, हरिद्वार और उधमसिंह नगर जैसे मैदानी जिलों में घने कोहरे का ‘यलो अलर्ट’ जारी किया गया है। मौसम विभाग का कहना है कि अगले कुछ दिनों तक कोहरा और प्रदूषण का यह डबल अटैक जारी रहेगा। दृश्यता कम होने के कारण सड़क हादसों का खतरा भी बढ़ गया है, जिससे यातायात व्यवस्था चरमरा गई है।

प्राकृतिक सफाई का इंतजार: क्या बारिश देगी राहत?

प्रदूषण के इस जाल से बचने के लिए अब केवल प्रकृति का ही सहारा बचा है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक तेज हवाएं नहीं चलतीं या (Natural Rainfall) नहीं होती, तब तक प्रदूषक कण जमीन पर नहीं बैठेंगे। बारिश की बूंदें हवा से धूल और जहरीले कणों को धो देती हैं, जिसे वैज्ञानिक भाषा में ‘रेन वाशआउट’ कहा जाता है। फिलहाल देहरादून में बादल छाए हुए हैं, लेकिन बारिश की संभावना कम है। जब तक मौसम में बड़ा बदलाव नहीं आता, तब तक दूनवासियों को इस जहरीली हवा में ही सांस लेने को मजबूर होना पड़ेगा।

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