Bank Fraud Investigation: बैंकिंग सिस्टम की पीठ में धंसा विश्वासघात का खंजर, 1392 करोड़ के गबन की सनसनीखेज साजिश का हुआ पर्दाफाश
Bank Fraud Investigation: देश की आर्थिक स्थिरता को चुनौती देते हुए एक बार फिर सफेदपोश अपराधियों ने बैंकिंग व्यवस्था में सेंधमारी की है। प्रवर्तन निदेशालय की ताजा जांच में मेसर्स एलाइड स्ट्रिप्स लिमिटेड (ASL) द्वारा किए गए एक विशाल घोटाले का खुलासा हुआ है। कंपनी ने आपराधिक विश्वासघात और धोखाधड़ी के जरिए केनरा बैंक के नेतृत्व वाले (Banking Consortium Loss) बैंकों के समूह को लगभग 1392.86 करोड़ रुपये का तगड़ा चूना लगाया है। यह महज एक वित्तीय नुकसान नहीं है, बल्कि आम जनता के उस भरोसे का कत्ल है जो वे सरकारी बैंकों पर करते हैं।
स्टील मैन्युफैक्चरिंग की आड़ में काले धन का खेल
इस्पात उत्पादों के निर्माण में लगी मेसर्स एएसएल ने अपने निदेशकों और प्रमोटरों के साथ मिलकर एक ऐसी जालसाजी बुनी, जिसने सिस्टम को हिलाकर रख दिया। साल 2018 में यह कंपनी कॉर्पोरेट दिवालियापन समाधान प्रक्रिया के तहत आई थी, लेकिन इसके पीछे छिपे सच बहुत गहरे थे। ईडी की जांच (Money Laundering Scheme) में यह कड़वा सच सामने आया कि कंपनी ने विभिन्न विक्रेताओं और संस्थाओं को अग्रिम भुगतान के नाम पर भारी भरकम राशि ट्रांसफर की थी। यह पैसा व्यापार के लिए नहीं, बल्कि फंड को डायवर्ट करने के एक सुनियोजित तरीके के रूप में इस्तेमाल किया गया था।
रिकवरी का नाटक और जानबूझकर की गई अनदेखी
कंपनी के इरादे कितने दुर्भावनापूर्ण थे, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मेसर्स एएसएल ने उन संस्थाओं से कभी अग्रिम राशि वापस लेने की कोशिश ही नहीं की। वास्तव में, यह (Financial Fund Diversion) एक ऐसा रास्ता था जिसे जानबूझकर धन को ठिकाने लगाने के लिए अपनाया गया था। जांच एजेंसी ने पाया कि आरोपियों ने कंपनी के बैंक खातों से पैसा निकालकर उसे निजी संपत्तियों में बदलने के लिए कई शेल कंपनियों और फर्जी विक्रेताओं का सहारा लिया, जिससे बैंकों की देनदारी बढ़ती चली गई।
सीबीआई की एफआईआर से शुरू हुआ जांच का सिलसिला
इस पूरे मामले की नींव तब रखी गई जब 5 मार्च 2022 को सीबीआई ने केनरा बैंक की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की। इसी एफआईआर को आधार बनाकर ईडी ने अपनी कार्यवाही शुरू की और परत-दर-परत साजिश का खुलासा किया। जांच में (Criminal Breach of Trust) के पुख्ता सबूत मिले हैं, जो बताते हैं कि कंपनी के निदेशकों, प्रमोटरों और कर्मचारियों ने आपसी मिलीभगत से बैंकों को अनुचित नुकसान पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यह मामला कॉरपोरेट जगत (Bank Fraud Investigation) की उस नैतिकता पर भी सवाल उठाता है जो ऋण लेने के बाद उसे डकार जाने की प्रवृत्ति रखती है।
एंट्री ऑपरेटर का जाल और अचल संपत्तियों की खरीद
ईडी की टीम ने जब जांच को आगे बढ़ाया तो उन्हें कोलकाता स्थित एक शातिर एंट्री ऑपरेटर की जानकारी मिली। यह ऑपरेटर फर्जी बिलों और कागजों के जरिए काले धन को सफेद करने में माहिर था। आरोपियों ने विभिन्न संस्थाओं को अग्रिम के बदले नकद राशि (Shell Company Network) प्राप्त की और इस गुप्त नकदी का उपयोग कंपनी के नाम पर महंगी अचल संपत्तियां खरीदने के लिए किया। इस तरह बैंकों से लिया गया लोन व्यापार में लगने के बजाय प्रमोटरों की निजी विलासिता और संपत्ति संचय का जरिया बन गया।
बिना किसी व्यापारिक संबंध के करोड़ों का ‘अग्रिम’ दान
तलाशी अभियान के दौरान यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि मेसर्स एएसएल ने अपनी ऋण सीमा का उपयोग ऐसी फर्मों को पैसे देने के लिए किया जिनका उसके मुख्य व्यवसाय से कोई लेना-देना नहीं था। मेसर्स यूरेकस इंफ्रास्ट्रक्चर और सनसिटी प्रोजेक्ट्स जैसी कई (Unrelated Business Transactions) संस्थाओं को करीब 48.68 करोड़ रुपये का ऋण डायवर्ट किया गया। सबसे गंभीर बात यह है कि यह ऋण कभी वसूला ही नहीं गया और न ही कंपनी के रिकॉर्ड में इसे वापस लेने की कोई मंशा दिखाई दी, जो सीधे तौर पर गबन की पुष्टि करता है।
गुरुग्राम कोर्ट में ईडी की निर्णायक चार्जशीट
प्रवर्तन निदेशालय के गुरुग्राम क्षेत्रीय कार्यालय ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए 15 दिसंबर 2025 को विशेष पीएमएलए अदालत में अपनी अभियोग शिकायत दर्ज कराई है। इस चार्जशीट में (Legal Prosecution Process) के तहत कंपनी के तत्कालीन निदेशकों गौरव अग्रवाल, मोहिंदर अग्रवाल और कोलकाता के ऑपरेटर जगदीश प्रसाद पुरोहित सहित कई संस्थाओं को आरोपी बनाया गया है। एजेंसी ने अब तक लगभग 45.51 करोड़ रुपये की चल और अचल संपत्तियों को कुर्क और जब्त किया है, ताकि बैंकों के नुकसान की कुछ हद तक भरपाई की जा सके।
क्या वसूल हो पाएगा बैंकों का डूबा हुआ पैसा?
हालांकि ईडी ने संपत्तियों को अटैच करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, लेकिन 1392 करोड़ के भारी नुकसान के मुकाबले यह राशि काफी कम है। सनसिटी प्रोजेक्ट्स और अन्य संबंधित फर्मों से (Asset Seizure Action) के माध्यम से 44.09 करोड़ की संपत्ति जब्त की गई है। सवाल अब भी वही खड़ा है कि क्या भारतीय कानून की जटिलताओं के बीच इन रसूखदार प्रमोटरों से बैंकों का एक-एक पैसा वसूला जा सकेगा या यह भी पूर्व के बड़े घोटालों की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा।