India-US Export Performance: ट्रंप के टैरिफ राज में भारत ने लगाई जोरदार दहाड़, क्या सुपरपावर की पाबंदियों के आगे झुक गया अमेरिका…
India-US Export Performance: अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सख्त तेवरों ने पूरी दुनिया के व्यापारिक समीकरणों को हिला कर रख दिया है। भारत पर लगाए गए भारी-भरकम 50 फीसदी आयात शुल्क के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि द्विपक्षीय व्यापार में बड़ी गिरावट आएगी। हालांकि, नवंबर के चौंकाने वाले आंकड़ों ने सभी अनुमानों को गलत साबित कर दिया है। ट्रंप के टैरिफ (Global Supply Chain) के बावजूद भारत का अमेरिका को निर्यात पिछले साल के मुकाबले 22.6 फीसदी बढ़कर लगभग सात अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है। यह वृद्धि न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि अमेरिकी बाजार में भारतीय उत्पादों की पैठ कितनी गहरी है।
आयात शुल्क की दीवार और निर्यात का नया रिकॉर्ड
नवंबर 2025 का महीना भारतीय निर्यात क्षेत्र के लिए ऐतिहासिक साबित हुआ है। जहां एक ओर 50% टैरिफ की चुनौती सामने थी, वहीं दूसरी ओर भारत के कुल मर्चेंडाइज निर्यात ने पिछले एक दशक के रिकॉर्ड को ध्वस्त कर दिया है। इस महीने में कुल मर्चेंडाइज निर्यात (Export Growth Rate) 38.13 अरब डॉलर दर्ज किया गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 19.37% अधिक है। गौरतलब है कि अक्टूबर में निर्यात में 12% की गिरावट देखी गई थी, लेकिन नवंबर की वापसी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अमेरिकी उपभोक्ता ऊंची कीमतों के बावजूद भारतीय सामान को प्राथमिकता दे रहे हैं।
व्यापार घाटे में ऐतिहासिक गिरावट और गिरता सोना
भारत के लिए सबसे राहत की बात व्यापार घाटे में आई भारी कमी है। नवंबर 2024 में जो व्यापार घाटा 17.06 अरब डॉलर था, वह इस साल गिरकर मात्र 6.6 अरब डॉलर रह गया है। यह 61% की भारी गिरावट भारतीय विदेश व्यापार (Trade Deficit Management) नीति की एक बड़ी जीत मानी जा रही है। इसका एक प्रमुख कारण भारत में सोने के आयात में आई 60% की कमी भी है। शादी और त्योहारी सीजन की समाप्ति के बाद सोने की मांग कम होने से देश का विदेशी मुद्रा भंडार भी सुरक्षित हुआ है और व्यापार संतुलन में सुधार आया है।
भारतीय निर्यातकों की रणनीति और मार्जिन का त्याग
ट्रंप के कड़े प्रतिबंधों के बीच भारतीय निर्यातकों ने एक बेहद साहसी रणनीति अपनाई है। अपने सबसे बड़े बाजार को बचाने के लिए भारतीय व्यवसायी अब अपने लाभ के मार्जिन को कम कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, यदि किसी उत्पाद की लागत टैरिफ के कारण बढ़ रही है, तो निर्यातक उसे (Market Competition Strategy) बनाए रखने के लिए अपनी जेब से अतिरिक्त बोझ उठा रहे हैं। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि वियतनाम, थाईलैंड और बांग्लादेश जैसे देश अमेरिकी बाजार में भारत की जगह न ले सकें। हालांकि, यह दीर्घकालिक समाधान नहीं है, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में इसने भारत का पलड़ा भारी रखा है।
चीन और बांग्लादेश की अस्थिरता का भारत को लाभ
वैश्विक राजनीति में आए बदलावों ने भी अप्रत्यक्ष रूप से भारत की मदद की है। ट्रंप प्रशासन ने चीन पर पहले से ही भारी शुल्क लगा रखे हैं, जिससे अमेरिकी कंपनियां अब चीन के विकल्प की तलाश में हैं। दूसरी ओर, बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल के कारण आपूर्ति श्रृंखला (Global Logistics Network) बाधित हुई है। ऐसे में अमेरिका के पास भारत ही एकमात्र ऐसा देश बचता है जिसके पास बड़े पैमाने पर उत्पादन की क्षमता और विश्वसनीयता दोनों हैं। इसी विवशता के चलते अमेरिकी खरीदार टैरिफ का बोझ सहकर भी भारत से व्यापार जारी रखे हुए हैं।
इलेक्ट्रॉनिक्स और इंजीनियरिंग सेक्टर्स की धूम
भारत के निर्यात में आए इस उछाल के पीछे कुछ प्रमुख क्षेत्रों का बड़ा हाथ है। विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में 38.96% की अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई है। एप्पल के आईफोन का भारत में बढ़ता उत्पादन और अन्य तकनीकी उपकरणों की मांग ने इस सेक्टर को (Electronics Manufacturing Hub) नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है। इसके साथ ही इंजीनियरिंग सामानों जैसे ऑटो कंपोनेंट्स और मशीनरी के निर्यात में भी 23.76% की बढ़ोत्तरी हुई है। अमेरिकी कार निर्माता कंपनियां जैसे फोर्ड और जीएम अपनी जटिल सप्लाई चेन के लिए भारतीय पुर्जों पर ही निर्भर हैं।
रत्न, आभूषण और टेक्सटाइल की मिश्रित तस्वीर
नवंबर के दौरान रत्न और आभूषणों के निर्यात में भी 27.8% की तेजी देखी गई, जिसका श्रेय अमेरिका के ‘हॉलिडे सीजन’ को जाता है। हालांकि, टेक्सटाइल सेक्टर में स्थिति थोड़ी चिंताजनक है। यद्यपि निर्यात के आंकड़े बढ़े हुए दिख रहे हैं, लेकिन तमिलनाडु के तिरुपुर जैसे केंद्रों के निर्यातक (Textile Industry Pressure) भारी दबाव में हैं। अमेरिकी खरीदार पुराने ऑर्डर्स पर भी भारी डिस्काउंट की मांग कर रहे हैं, जिससे कई सूक्ष्म और लघु उद्योग बंदी के कगार पर पहुंच गए हैं। इस क्षेत्र में बढ़ता बोझ भविष्य में रोजगार संकट पैदा कर सकता है।
क्या फेल हो गई डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति?
अंत में सवाल यह उठता है कि क्या ट्रंप का दांव उल्टा पड़ गया है? इसके दो पहलू हैं। अगर ट्रंप का उद्देश्य केवल राजस्व वसूलना और भारत के मुनाफे में सेंध लगाना था, तो वे सफल रहे हैं क्योंकि भारतीय निर्यातक अब कम लाभ पर काम कर रहे हैं। लेकिन, यदि उनका उद्देश्य भारतीय सामानों को अमेरिकी बाजार (International Trade Policy) से बाहर करना था, तो वे पूरी तरह विफल रहे हैं। नवंबर की 22.6% की बढ़त ने यह साबित कर दिया है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था की भारत पर निर्भरता इतनी मजबूत है कि उसे टैरिफ की दीवारों से नहीं रोका जा सकता।