उत्तर प्रदेश

Lucknow Student Suicide Case: मोबाइल की लत और पढ़ाई के दबाव ने छीन ली 10वीं के छात्र की सांसें, लखनऊ में मचा कोहराम

Lucknow Student Suicide Case: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के एक प्रतिष्ठित रिहायशी इलाके में मंगलवार की शाम ऐसी मनहूस खबर आई, जिसने माता-पिता और बच्चों के बीच के संवाद पर एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। विकास नगर थाना क्षेत्र के जानकीपुरम सेक्टर-सी में रहने वाले 10वीं कक्षा के एक मेधावी छात्र ने मौत को गले लगाकर अपने परिवार को कभी न भूलने वाला जख्म दे दिया है। यह (Teenage Mental Health) से जुड़ा एक ऐसा संवेदनशील मामला है, जिसने स्थानीय निवासियों और शिक्षा जगत को झकझोर कर रख दिया है। जिस उम्र में बच्चों के कंधों पर सुनहरे भविष्य का दारोमदार होना चाहिए था, उस उम्र में एक किशोर का फांसी के फंदे पर झूल जाना समाज के लिए किसी बड़ी त्रासदी से कम नहीं है।

Lucknow Student Suicide Case
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मोबाइल फोन की लत और परवरिश की चुनौतियों के बीच का द्वंद्व

घटना की जड़ में वह आधुनिक समस्या है जो आज हर घर की कहानी बन चुकी है। मृतक छात्र, जिसकी पहचान शानू जायसवाल के रूप में हुई है, वह पिछले काफी समय से मोबाइल फोन के अत्यधिक उपयोग को लेकर अपने परिवार के निशाने पर था। आधुनिक (Digital Addiction Impact) के दौर में बच्चे अक्सर वर्चुअल दुनिया में इतने खो जाते हैं कि उन्हें वास्तविक जीवन की जिम्मेदारियों का अहसास नहीं रहता। शानू के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ; वह अपना अधिकांश समय स्मार्टफोन पर बिताने लगा था, जिसके कारण उसके व्यवहार में बदलाव आने लगा था और वह पढ़ाई से दूर होता जा रहा था।

परीक्षा के अंक और उम्मीदों का बोझ बना मौत का कारण

शानू के सुसाइड करने के पीछे केवल मोबाइल ही एकमात्र कारण नहीं था, बल्कि पढ़ाई में खराब प्रदर्शन ने भी आग में घी का काम किया। हाल ही में आए परीक्षा के परिणामों में उसके नंबर उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे थे, जिसे लेकर घरवाले काफी चिंतित और नाराज थे। शैक्षणिक क्षेत्र में (Academic Pressure Issues) आज के दौर में बच्चों के लिए एक अदृश्य दुश्मन बनता जा रहा है। शानू के माता-पिता ने जब उसे बेहतर भविष्य के लिए डांटा और फटकार लगाई, तो उसे यह अपनी गरिमा और स्वतंत्रता पर प्रहार महसूस हुआ। वह यह नहीं समझ सका कि यह डांट उसके सुधार के लिए थी, न कि उसे प्रताड़ित करने के लिए।

जानकीपुरम के शांत माहौल में चीख-पुकार और बदहवास परिजन

जैसे ही शानू ने अपने कमरे के भीतर खौफनाक कदम उठाया, कुछ ही देर बाद जब परिवार के सदस्यों ने उसे आवाज दी और कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली, तो उन्हें अनहोनी का अंदेशा हुआ। कमरे का दरवाजा तोड़कर जब परिजन भीतर दाखिल हुए, तो वहां का मंजर देखकर उनकी रूह कांप गई। चीख-पुकार और (Family Crisis Management) की कोशिशों के बीच उसे तुरंत अस्पताल ले जाने का प्रयास किया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जानकीपुरम के सेक्टर-सी में रहने वाले पड़ोसी भी इस घटना से स्तब्ध हैं, क्योंकि शानू को एक शांत और मिलनसार लड़के के रूप में जाना जाता था।

पुलिसिया कार्रवाई और सुसाइड नोट की तलाश में जुटी टीम

सूचना मिलने पर विकास नगर थाने की पुलिस मौके पर पहुंची और शव को अपने कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। पुलिस इस मामले में हर पहलू की बारीकी से जांच कर रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इसके पीछे कोई अन्य बाहरी दबाव तो नहीं था। हालांकि, प्रारंभिक जांच में (Police Investigation Report) इसी बात की ओर इशारा कर रही है कि मोबाइल के लिए लगी डांट ही तात्कालिक कारण बनी। पुलिस की टीम छात्र के मोबाइल रिकॉर्ड और कमरे की तलाशी ले रही है ताकि अगर कोई सुसाइड नोट या डिजिटल सुराग मौजूद हो, तो उसे बरामद किया जा सके।

समाज और अभिभावकों के लिए एक गंभीर चेतावनी और सबक

शानू जायसवाल की इस असमय मौत ने उन अभिभावकों को एक कड़ा संदेश दिया है जो अपने बच्चों पर केवल दबाव के जरिए सुधार लाना चाहते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि किशोरावस्था में (Parenting Communication Skills) का बहुत महत्व होता है। मोबाइल की लत छुड़ाने के लिए बच्चों को डांटने के बजाय उनके साथ मित्रवत व्यवहार करना और उन्हें गैजेट्स के नुकसान प्यार से समझाना अधिक प्रभावी होता है। आज के प्रतिस्पर्धी युग में नंबरों की दौड़ इतनी अंधी हो चुकी है कि मासूम बच्चे तनाव को झेलने की शक्ति खोते जा रहे हैं और आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठाने पर मजबूर हो रहे हैं।

लखनऊ में बढ़ता तनाव और किशोरों में सुसाइडल टेंडेंसी की चिंता

राजधानी लखनऊ में पिछले कुछ समय में छात्रों द्वारा आत्महत्या करने की घटनाओं में इजाफा हुआ है, जो जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग के लिए चिंता का विषय है। स्कूलों और कॉलेजों में (Psychological Counseling Needs) की कमी के कारण बच्चे अपने मन की बात किसी से साझा नहीं कर पाते। शानू की मौत के बाद अब स्थानीय सामाजिक संगठनों ने मांग उठाई है कि हर क्षेत्र में बच्चों के लिए मुफ्त काउंसलिंग सेंटर खोले जाएं, ताकि वे पढ़ाई या निजी जीवन के दबाव में आकर ऐसे घातक कदम न उठाएं। शानू चला गया, लेकिन वह अपने पीछे कई अनुत्तरित प्रश्न छोड़ गया है जिनका समाधान तलाशना बेहद जरूरी है।

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